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स्वयं श्री राम ने किया था इस मूर्ति का निर्माण! जो आज भी करती है पापों से मुक्त

भगवान राम के नाम की अपार महिमा...

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This idol was built by Shri Ram himself

Sri Rama himself built this idol, which still makes you free from sins

'राम' यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण है इसका उच्चारण। 'राम' कहने मात्र से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है, जो हमें आत्मिक शांति देती है। इस शब्द की ध्वनि पर कई शोध हो चुके हैं और इसका चमत्कारिक असर सिद्ध किया जा चुका है इसीलिए कहते भी हैं कि 'राम से भी बढ़कर श्रीरामजी का नाम है'। भगवान श्रीराम के नाम की इसी शक्ति के चलते वाल्मीकि और तुलसीदास जैसे नाम इतिहास में अमर हो गए। यह भगवान राम के नाम की अपार महिमा है कि विश्व में राम से ज्यादा उनके भक्त हनुमान के मंदिर हैं।

भारत में एक जगह ऐसी मूर्ति का पूजन किया जाता है जिसके बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण स्वयं श्रीराम ने किया था। यह मूर्ति मनुष्य को उसके पापों से मुक्त कर देती है, बशर्ते पश्चाताप सच्चा हो और भविष्य में वैसा पाप न करने का संकल्प पक्का हो।

यह 17वीं शताब्दी की बात है। उस जमाने में कुल्लू में राजा जगत सिंह का शासन था। जगत सिंह बहुत अहंकारी शासक थे। उन्हें अपनी शक्ति और सत्ता का अहंकार था। एक बार किसी ने जगत सिंह को सूचना दी कि गांव के एक पंडित दुर्गादत्त को घाटी में काम के दौरान कुछ हीरे-मोती मिले हैं।

राजा को यह सहन नहीं हुआ कि उनके होते कोई और व्यक्ति उन पर कब्जा करे। उन्होंने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि दुर्गादत्त से वे चीजें छीनकर उनके सामने पेश की जाएं। सैनिकों को आदेश देने भर की देर थी। वे दुर्गादत्त के पास गए, लेकिन उसके पास कोई हीरे-मोती नहीं थे।

सैनिकों ने उसके साथ मारपीट की, अपमानित किया, लेकिन दुर्गादत्त के पास ऐसा कुछ नहीं था। जब राजा का अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गया तो उसने अपने परिवार के साथ खुद को आग से जला लिया। साथ ही राजा को शाप दिया कि - जब तुम चावल खाओगे तो थाली में चावल की जगह कीड़े दिखाई देंगे और पीने का पानी खून बन जाएगा।

दुर्गादत्ता और उसके परिवार की मृत्यु हो गई। उधर राजा पर यह शाप असर दिखाने लगा। कीड़े और खून दिखाई देने से उसका जीना मुश्किल हो गया। उसे अब तक अपनी गलती का अहसास हो चुका था।

वह एक सिद्ध साधु के पास गया। साधु ने उससे कहा, तुम्हारा पाप अक्षम्य है लेकिन अगर तुम सच्चे मन से पश्चाताप कर रहे हो तो दुर्गादत्त के शाप का निवारण हो सकता है।

साधु ने राजा से कहा कि वह भगवान रघुनाथ का मंदिर बनवाए और उसमें अयोध्या से एक खास मूर्ति लाकर स्थापित करे। जो भगवान श्रीराम ने अपने हाथों से बनाई हो। राजा ने साधु की बात मान ली। उसने भगवान रघुनाथ का मंदिर बनवा दिया और मूर्ति भी उसमें स्थापित कर दी।

अब उसने अपना अहंकारी रवैया बदल दिया और भगवान श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप शासन चलाने लगा। इससे दुर्गादत्ता का शाप भी समाप्त हो गया। राजा का बनाया हुआ वह मंदिर और श्रीराम के हाथों से बनी वह मूर्ति आज भी यहां विराजमान है।

हर साल लाखों लोग यहां भगवान को नमन करते हैं। यह मंदिर और मूर्ति बहुत चमत्कारी माने जाते हैं। यहां आने से न केवल मनोकामना पूरी होती है, बल्कि सच्चे मन से क्षमा मांगी जाए तो पाप भी दूर होते हैं।

राम नाम का महत्व...
राम नाम सबसे सरल, सुरक्षित और निश्चित रूप से लक्ष्य की प्राप्ति करवाने वाला है। मंत्र जप के लिए आयु, स्थान, परिस्थिति, काल, जात-पात आदि किसी भी बाहरी आडंबर का बंधन नहीं है। किसी क्षण, किसी भी स्थान पर इसे जप सकते हैं।

जब मन सहज रूप में लगे, तब ही मंत्र जप कर लें। तारक मंत्र 'श्री' से प्रारंभ होता है। 'श्री' को सीता अथवा शक्ति का प्रतीक माना गया है। राम शब्द 'रा' अर्थात् र-कार और 'म' मकार से मिल कर बना है। 'रा' अग्नि स्वरूप है। यह हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है। 'म' जल तत्व का द्योतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर विजय का कारक है।

इस प्रकार पूरे तारक मंत्र - 'श्री राम, जय राम, जय जय राम' का सार निकलता है - शक्ति से परमात्मा पर विजय। योग शास्त्र में देखा जाए तो 'रा' वर्ण को सौर ऊर्जा का कारक माना गया है। यह हमारी रीढ़-रज्जू के दाईं ओर स्थित पिंगला नाड़ी में स्थित है। यहां से यह शरीर में पौरुष ऊर्जा का संचार करता है। 'मा' वर्ण को चंद्र ऊर्जा कारक अर्थात स्त्री ***** माना गया है। यह रीढ़-रज्जू के बाईं ओर स्थित इड़ा नाड़ी में प्रवाहित होता है।

इसीलिए कहा गया है कि श्वास और निश्वास में निरंतर र-कार 'रा' और म-कार 'म' का उच्चारण करते रहने से दोनों नाड़ियों में प्रवाहित ऊर्जा में सामंजस्य बना रहता है। अध्यात्म में यह माना गया है कि जब व्यक्ति 'रा' शब्द का उच्चारण करता है तो इसके साथ-साथ उसके आंतरिक पाप बाहर फेंक दिए जाते हैं। इससे अंतःकरण निष्पाप हो जाता है।