
फाल्गुन पौराणिक कथा
फाल्गुन अमावस्या की कथा के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा इंद्र देव और अन्य देवताओं पर नाराज हो गए। इसके बाद उन्होंने इंद्र देव और दूसरे देवताओं को श्राप दे दिया था। ऋषि दुर्वासा के श्राप से सभी देवता कमजोर हो गए और इसका फायदा उठाकर आक्रमण कर दिया और देवताओं के अशक्त होने से युद्ध जीत गए। असुरों से हारने के बाद सभी देवता मदद के लिए जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु के पास गए। उस समय श्रीहरि विष्णु ने सभी देवताओं की बात सुनी और दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने की सलाह दी। सभी देवताओं ने समुद्र मंथन करने के लिए असुरों से बात की और उनको इसके लिए राज़ी किया,आखिरकार असुर मान गए देवताओं के साथ संधि कर ली।
इसके बाद जब समुद्र से अमृत निकला तब इंद्र का पुत्र जयंत अमृत का कलश अपने हाथों में लेकर आकाश में उड़ गया। इसके बाद सभी दैत्य जयंत का पीछा करने लगे और दैत्यों ने जयंत से अमृत का कलश छीन लिया। इससे फिर युद्ध शुरू हो गया और बारह दिनों तक अमृत का कलश पाने के लिए देवता और असुर घमासान युद्ध करते रहे। इस भीषण युद्ध के दौरान कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती पर प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिर गईं। इस समय चंद्रमा, सूर्य, गुरु, शनि ने अमृत कलश की असुरों से रक्षा की थी। इधर जब यह कलह बढ़ने लगा, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप रखकर असुरों का ध्यान भटकाते हुए देवताओं को छल से अमृतपान करा दिया, तब से ही अमावस्या की तिथि पर इन जगहों पर स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है।
Updated on:
10 Mar 2024 12:14 pm
Published on:
10 Mar 2024 12:12 pm
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