
सनातन धर्म में हर साल हिंदू कैलेंडर के प्रतिमाह के आधार पर 12 अमावस्या तिथि आती हैं, लेकिन जिस वर्ष अधिकमास होता है, उस वर्ष में 13 अमावस्या तिथियां पड़ती हैं और एक अमावस्या तिथि बढ़ जाती है। हर अमावस्या का माह के हिसाब से नाम भी अलग अलग होता है, साथ ही इनका प्रभाव भी अलग अलग माना जाता है।
साल में अमावस्या कार्तिक अमावस्या का जैसे खास महत्व माना जाता है, कुछ वैसा ही महत्व मार्गशीर्ष अमावस्या का भी माना गया है। मार्गशीर्ष अमावस्या हिंदू कैलेंडर के नौवें माह मार्गशीर्ष की अमावस्या तिथि को आती है। ऐसे में साल 2022 में यह बुधवार, 23 नवंबर को रहेगी।
मान्यता है कि मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय यमुना नदी में स्नान करने से महापुण्यफल की प्राप्ति होने के साथ जीवन से दुख भी दूर हो जाते हैं। वहीं जब कोई इस अमावस्या के दिन व्रत उपवास रखने के साथ भगवान श्री सत्यनारायाण भगवान की कथा का पाठ भी करता है तो उसकी सभी कामनाएं भी पूर्ण होने लगती है।
इसके अलावा जो भी इस दिन विधि विधान से यह पूजा करते हुए व्रत रखकर अपने पूर्वजों की प्रसन्नता के लिए तर्पण, दान पुण्य आदि कर्म करते हैं उनके सारे पाप कर्म भी नष्ट हो जाते हैं, और पितरों का सुक्ष्म रूप में मदद करते हैं।
मार्गशीर्ष अमावस्या 2022 पर ऐसे करें पितरों का तर्पण...
पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं। सबसे पहले हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद उन्हें आमंत्रित करते हुए इस मंत्र को बोलें- ॐ आगच्छन्तु में पितर एवं गृह्णन्तु जलान्जलिम’ यानी हे पितरों, आइए और जलांजलि ग्रहण करें।
वहीं पिता का तर्पण करते समय अपने गोत्र का नाम लेते हुए इस मंत्र को बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र को बोलने के साथ ही गंगाजल या फिर जल के साथ दूध, तिल और जौ को मिलाकर 3 बार पिता को जलांजलि दें।
इसी तरह पितामह को दे रहे हैं तो अस्मत पिता की जगह अस्मतपितामह का इस्तेमाल करें।
माता का ऐसे करें तर्पण...
शास्त्रों के अनुसार, माता का तर्पण पिता से अलग होता है। क्योंकि माता का ऋण सबसे बड़ा होता है। इसलिए उन्हें अधिक बार जल देने का विधान है। जानिए माता का तर्पण करने की विधि।
माता को जल देने का मंत्रः-
अपने गोत्र का नाम लें लेते हुए कहे कि गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
Published on:
22 Nov 2022 07:47 pm
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