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बॉडी बिल्डिंग में दवा-इंजेक्शन की जगह प्राकृतिक चीजें लेना बेहतर

आमतौर पर बॉडी बनाने की चाह में युवा जल्दी असर के लिए सप्लीमेंट्स लेना पसंद करते हैं। इन दिनों दवाओं और इंजेक्शन की मदद भी ली जा रही है। बिना किसी एक्सपर्ट की सलाह और टे्रनर की देखरेख में यदि इन्हें नियमित लेते हैं तो ये शरीर के विभिन्न अंगों खासकर दिमाग, आंखों, किडनी और हृदय को नुकसान पहुंचाते हैं। बॉडी बिल्डिंग के लिए सही उम्र 18 साल के बाद की है। इस उम्र से पहले आइसोमेट्रिक वर्कआउट (डंबल उठाना, पुशअप्स, बाइसेप्स व ट्राइसेप्स के लिए गतिविधि) करना हड्डियों के विकास को रोकता है।

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Divya Sharma

Dec 14, 2019

बॉडी बिल्डिंग में दवा-इंजेक्शन की जगह प्राकृतिक चीजें लेना बेहतर

बॉडी बिल्डिंग में दवा-इंजेक्शन की जगह प्राकृतिक चीजें लेना बेहतर

रायपुर निवासी 23 वर्षीय युवक ने बॉडी बनाने के लिए प्रोटीन पाउडर के अलावा दवाएं व इंजेक्शन लेने शुरू किए। इससे फायदा तो हुआ लेकिन ओवरडोज लेते ही शरीर में दुष्प्रभाव होने लगे जिस कारण वह आक्रामक हो गया। दिखाई देना बंद होने के साथ ही उसे बोलने में दिक्कत हुई। पिछले दिनों उसकी मृत्यु हो गई।

आर्टिफिशियल से ज्यादा बॉडी बिल्डिंग के प्राकृतिक स्रोत मांसपेशियों को मजबूती देने में मदद करते हैं।
मसल्स-ऐब्स बनाने के लिए इंजेक्शन आदि से नसें कमजोर हो जाती हैं
दवाएं, इंजेक्शन और सप्लीमेंट शरीर पर किस तरह से असर करते हैं?
जवाब : किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ आलोक जैन के अनुसार इंजेक्शन में मौजूद स्टेरॉइड शरीर पर तीन तरह से असर करता है। एनाबॉलिक स्टेज, मांसपेशियों का घनत्व बढ़ाता है। कैटाबॉलिक स्टेज में मांसपेशियां मजबूती के लिए इसका प्रयोग करती है। मेटाबॉलिज्म तीसरी स्टेज है। इसमें स्टेरॉइड नसों को कमजोर करते हुए मांसपेशियों में अवशोषित होने के बाद अन्य अंगों में पहुंचता है। दवाएं भी इसी तरह काम करती हैं। ये पेट में जाकर जब घुलती हैं तो पाचन के दौरान इनका असर शरीर के किसी भी अंग पर हो सकता है। आर्टिफिशियल प्रोटीन मसल्स को तुरंत ताकत देता है लेकिन प्राकृतिक न होने से जब भी इन्हें लेना बंद करते हैं तो मांसपेशियां वास्तविक रूप में आती हैं, जो नुकसानदायक है। न्यूट्रिशनिस्ट या सर्टिफाइड फिटनेस ट्रेनर की देखरेख में सप्लीमेंट्स लें।
किन लक्षणों को नजरअंदाज न करें?
जवाब : हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ गौरव सिंघल ने बताया कि बॉडी बिल्डिंग के लिए जिमिंग करने के साथ यदि नियमित सप्लीमेंट्स लेते हैं तो अपनी शारीरिक क्षमता पर ध्यान दें। रोजमर्रा का काम करने के दौरान यदि अचानक से थकान होने लगे तो सतर्क हो जाएं। असीमित मात्रा में सप्लीमेंट्स लेने से विभिन्न अंगों में पोषक तत्वों की मात्रा असंतुलित होती है। इसलिए नेचुरल चीजें फायदेमंद हैं।
दवाएं व सप्लीमेंट्स लेने से क्या समस्याएं होती हैं?
जवाब : सप्लीमेंट के तौर पर विशेषकर प्रोटीन नियमित रूप से ज्यादा लेने पर मसल्स तो मजबूत होती हैं लेकिन हड्डियों में क्षति होने से भविष्य में जॉइंट रिप्लेसमेंट की जरूरत पड़ सकती है। किडनी का काम बढऩे से ये धीरे-धीरे कमजोर होकर फेल हो जाती हैं। प्रोटीन फैट भी बढ़ाता है। मल्टीऑर्गन फेल्योर की अहम वजह अधिक वजन भी है।
डाइट में प्राकृतिक चीजों का कितना हो अनुपात?

जवाब : प्राकृतिक चीजें शरीर पर धीरे-धीरे असर करती हैं। डाइट में 55-60 % कार्बोहाइड्रेट, 25-30 % प्रोटीन, 10-15 % फैट, विटामिन व मिनरल्स हो। डाइट में प्रोटीन की अधिक मात्रा लेने से अंदरुनी अंगों को नुकसान पहुंचता है। इसे संतुलित करने के लिए कार्बोहाइडे्रट व प्रोटीन 4:1 अनुपात में लें। जैसे 20 ग्राम प्रोटीन है तो 80 ग्राम कार्बोहाइड्रेट युक्त चीजेंं लें ताकि कैलोरी भी मिलती रहे।
इनसे करें पूर्ति
प्रोटीन : सोयाबीन, अंकुरित अनाज (मूंग, मोठ, चना), दूध, दही, मौसमी फल व सब्जियां जैसे पालक, ब्रॉकली, कीवी, अमरूद, बादाम, पनीर, अंडा (पीला भाग निकालकर), छेना, दाल, राजमा, मटर व बेसन प्रोटीन के प्राकृतिक स्रोत हैं।
कार्बोहाइड्रेट : अनाज (गेहूं, बाजरा, चावल), आलू, चीनी, दालें, बीन्स, मक्का, केला, चुकंदर, संतरा, ओट्स, खीरा।
फैट, विटामिन व मिनरल : घी, मूंगफली, चिया सीड्स, अखरोट, एवोकेडो, डार्क चॉकलेट, ऑलिव ऑयल, नारियल का तेल, दही आदि बेहतरीन स्रोत हैं।