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बाइपोलर डिसऑर्डर – : ज्यादा खुशी या ज्यादा गम होना, जानें इस समस्या के बारे में

अचानक अधिक खुश होना या अवसाद में चले जाना, ये बाइपोलर डिसऑर्डर की समस्या हो सकती है।

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बाइपोलर डिसऑर्डर - : ज्यादा खुशी या ज्यादा गम होना, जानें इस समस्या के बारे में

बाइपोलर डिसऑर्डर - : ज्यादा खुशी या ज्यादा गम होना, जानें इस समस्या के बारे में

बहुत ज्यादा खुशी या बहुत ज्यादा गम होना एक तरह की मानसिक बीमारी है। खुश हो जाना अचानक अवसाद में चले जाना बाइपोलर डिसऑर्डर की समस्या होती है। यह एक प्रकार की मानसिक बीमारी है, जिसमे मन लगातार कई हफ़्तो तक या महिनों तक या तो बहुत उदास या फ़िर अत्यधिक खुश रहता है । इस समस्या का इलाज संभव है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर आप इससे बच सकते हैं । इस बीमारी की शुरुआत अक्सर 14 साल से 19 साल के बीच होती है।

बाइपोलर डिसऑर्डर में दो तरह के होते हैं। एक उदासी और दूसरा खुश होने पर व्यक्ति इतना डिप्रेशन में चला जाता है कि आत्महत्या जैसी खतरनाक कोशिश भी कर बैठता है। खुश और दुखी होने पर रोगी कुछ भी कर सकता है। इसका असर हफ्तों, महीनों या सालों तक रह सकता है।
उदासी (डिप्रेशन) में मरीज के मन में अत्यधिक उदासी, कार्य में अरुचि, चिड़चिड़ापन, घबराहट, आत्मग्लानि, भविष्य के बारे में निराशा, शरीर में ऊर्जा की कमी, अपने आप से नफ़रत, नींद की कमी, सेक्स इच्छा की कमी, मन में रोने की इच्छा, आत्मविश्वास की कमी लगातार बनी रहती है।

कारण -
इस बीमारी का मुख्य कारण सही रूप से बता पाना कठिन है| वैज्ञानिक समझते है कि कई बार शारीरिक रोग भी मन में उदासी तथा तेजी कर सकते हैं । कई बार अत्यधिक मानसिक तनाव इस बीमारी की शुरुआत कर सकता है । इस बीमारी का कारण कोई निश्चित नहीं होता है। जेनेटिक, न्यूरोट्रांसमीटर इम्बैलेंस, एब्नॉर्मल थायरॉयड फंक्शन, स्टे्रस का हाई लेवल भी इसका कारण बन सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बीमारी से पीड़ित व्यक्तिनॉर्मल लाइफ जी सकता। ऐसे लोग नॉर्मल और फैमिली लाइफ एंजॉय करते हैं।

बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षण -
किसी बात को लेकर बहुत ज्यादा खुश हो जाना ।
हर समय गाना सुनते रहना, गाना गुनगुनाते रहना ।
बहुत ज्यादा दोस्त बनाना, तेज आवाज में जल्दी-जल्दी बातें करना, रात-रातभर जागना, अपने से छोटों पर रौब झाड़ना और उन्हें मारना-पीटना।
किसी भी चीज में मन न लगना, किसी बात पर ध्यान न देना।

इलाज -
बाइपोलर डिसऑर्डर का इलाज संभव है। इसके लिए मनोचिकित्सक को दिखाएं। ज्यादातर मामलों में दवाओं से पीडि़त को राहत मिल जाती है।
कई बार पर्याप्त नींद लेने के लिए कहा जाता है।
दवाइयों के साथ मनोचिकित्सक कुछ थैरेपी लेने की सलाह देते हैं।
रोजाना एक्सरसाइज और मेडिटेशन करें।
इस बात को याद रखें कि यह कोई बीमारी नहीं है।