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युवाओं में ब्रेन स्ट्रोक की समस्या

हैमरेजिकस्ट्रोक रक्तधमनियों में सिकुडऩ या क्लॉटिंग (नलियों में वसा का जमना) के कारण मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है जिसे इस्कमिक स्ट्रोक कहते हैं। लेकिन जब मस्तिष्क के भीतर धमनियां फट जाती हैं तो इसे हैमरेजिक स्ट्रोक या ब्रेन हैमरेज कहते हैं।

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brain stroke

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20-35 वर्ष के युवा भी प्रभावित हो रहे हैं
पहले जहां 60-70 साल के उम्र के बुजुर्गों में ब्रेन स्ट्रोक की समस्या देखने को मिलती थी, वहीं अब 20-35 वर्ष के युवा भी इस रोग से प्रभावित हो रहे हैं। इसकी वजह तेजी से बिगड़ती जीवनशैली है। हाल ही एनल्स ऑफ इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी जर्नल (जनवरी-मार्च 2016 का अंक) में युवाओं में ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढऩे की बात सामने आई है। 'फिफ्टी ईयर्स ऑफ स्ट्रोक रिसर्च इन इंडिया' शीर्षक नाम से प्रकाशित रिसर्च पेपर में कई शोधों के हवाले से कहा गया है कि युवाओं में स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कुल ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में लगभग 30 फीसदी तक युवा (40 साल से कम) हैं। इन युवा मरीजों में 80 फीसदी पुरुष हैं। शोध में कहा गया है कि इसका मुख्य कारण नशे की लत, खराब जीवनशैली और जागरुकता का अभाव है। आइए जानते हैं दिमाग में होने वाली इस गड़बड़ी और इससे बचने के उपायों के बारे में।
प्रमुख लक्षण
शरीर के आधे हिस्से में कमजोरी। आधे चेहरे, एक हाथ या पैर में सुन्नपन या कमजोरी महसूस होना। आवाज में तुतलाहट या बंद होना। चाल में लडख़ड़ाहट। हाथ-पैर का संतुलन बिगडऩा। बेहोशी आना। सिर में तेजदर्द के साथ उल्टी और चक्कर आना। भ्रम की स्थिति होना। आंख से धुंधला या डबल दिखना। निगलने में परेशानी।
फौरन मिले इलाज
उपरोक्त लक्षण 24 घंटे से अधिक समय तक बने रहें तो ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है। मरीज को तुरंत ऐसे अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए जहां फौरन सीटी स्कैन और ब्लड टैस्ट की व्यवस्था हो। अगर किसी व्यक्ति में स्ट्रोक के लक्षण दिखते हैं और स्वत: ही (24 घंटे के अंदर) ठीक भी हो जाते हैं तो इसे ट्रांजियंट इस्कमिक स्ट्रोक (टीआईए) कहते हैं। यह ब्रेन स्ट्रोक की चेतावनी है। ऐसे में तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।
शुरू के 3 घंटे महत्त्वपूर्ण
ब्रेन स्ट्रोक में शुरू के 3 घंटे अहम होते हैं। इस दौरान मरीज को सही इलाज मिलने पर रिकवरी जल्दी होती है। इलाज में देरी से जान जाने का भी खतरा रहता है। इसका इलाज मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है।
प्रमुख जांचें
ब्रेन स्ट्रोक की प्रारंभिक जांचों में कुछ ब्लड टैस्ट और सीटी स्कैन किए जाते हैं। जरूरत पडऩे पर डॉक्टर एमआरआई, एंजियोग्राफी और २डी ईको भी कराते हैं।
इनसे है खतरा
हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज की समस्या, मोटापा, ज्यादा तनाव, हार्ट अटैक, कोलेस्ट्रॉल ज्यादा होना, रक्त में होमोसिस्टीन (एक प्रकार का प्रोटीन) अधिक होना, खून की कमी (एनीमिया), धूम्रपान की आदत, शराब व तंबाकू की लत, स्ट्रोक की फैमिली हिस्ट्री, कुछ हार्मोनल दवाओं का अधिक इस्तेमाल और ज्यादा जंकफूड खाने वाले लोगों को ब्रेन स्ट्रोक की आशंका रहती है।
सावधानी ही बचाव
हाई रिस्क फैक्टर को पहचानें और उससे बचें। अगर हार्ट, बीपी और शुगर के मरीज हैं तो इसे नियंत्रण में रखें व नियमित दवाइयां लें। शराब, तंबाकू और धूम्रपान से दूरी बनाएं। वजन नियंत्रित रखें। एक्सरसाइज और योग करें। शरीर में पानी की कमी न होने दें। जंकफूड से परहेज करें।
यहां इलाज है उपलब्ध
जयपुर स्थित एसएमएस अस्पताल की इमरजेंसी में सीएन (कार्डियो-न्यूरो) सेंटर है। जहां हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों को 24 घंटे इलाज मिलता है। अगर किसी मरीज को ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण दिखते हैं तो तत्काल सीएन सेंटर में दिखाएं। यहां 24 घंटे एक न्यूरोलॉजिस्ट उपलब्ध रहते हैं। यहां डीएसए जांच और मस्तिष्क की एंजियोप्लास्टी समेत आवश्यक सुविधाएं भी मौजूद हैं।
डॉ. आर.एस. जैन, सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट