6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

जन्म के समय जीभ मोटी व शरीर में सूजन थायरॉइड की समस्या के संकेत

गर्भावस्था में शुरू के तीन माह रेगुलर कराएं थायरॉइड टेस्ट, हार्मोन पर निर्भर होता है शिशु का विकास

2 min read
Google source verification

जयपुर

image

Vikas Gupta

Dec 07, 2019

जन्म के समय जीभ मोटी व शरीर में सूजन थायरॉइड की समस्या के संकेत

thyroid disorder in child

थायरॉइड ग्रंथि से रिलीज होने वाले थायरॉक्सिन हार्मोन की कमी या अधिकता से बच्चे का मानसिक विकास बाधित होता है। यह हार्मोन शरीर के हर हिस्से के विकास के लिए जरूरी होता है। ऐसे बच्चों के बाल भी बहुत कमजोर होते हैं। सिर की मालिश से ही ये टूटते हैं। इनकी त्वचा भी बेहद रूखी हो जाती है। इसके अलावा यह कैंसर का भी कारण बन सकता है।

लाइफस्टाइल और आनुवांशिक कारणों से थायरॉइड की समस्या होती है। गर्दन में थायरॉइड ग्रंथि होती है। इससे टीएसएच और टी3 और टी 4 हार्मोन निकलते हैं। थायरॉइड ग्रंथि से टी4 हार्मोन ज्यादा निकलता है। इससे ही मेटाबोलिक एक्टिविटी और शरीर का विकास प्रभावित होता है। इससे पाचन भी गड़बड़ाता है। एक साल तक के बच्चे का शारीरिक विकास थायरॉइड हार्मोन पर ही निर्भर करता है। यदि मां को गर्भ के समय थायरॉइड की परेशानी है तो गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क का विकास प्रभावित हो सकता है। ऐसे में गर्भावस्था के दौरान चिकित्सक की सलाह पर थायरॉइड की जांच कराते रहना चाहिए।

85 फीसदी बच्चों में समस्या आनुवांशिक -
थायरॉक्सिन हार्मोन अधिक बनता है तो हाइपर थायरॉडिज्म और कम बनना हाइपोथायरॉडिज्म है। हाइपर थायरॉडिज्म शरीर में गांठें बनने, कई दवाइयों, ग्रेव डिजीज से होता है। हाइपोथाइरॉडिज्म ऑटो इम्यून डिजीज, आयोडीन की कमी, कुछ सर्जरी व कैंसर के इलाज के दौरान कम हार्मोन बनने की स्थिति है। 85 फीसदी बच्चों में यह समस्या आनुवांशिक होती है। हाइपर थायरॉडिज्म के मरीज में थॉयराइड हार्मोन अधिक बनता है। उन्हें आयोडीनयुक्त नमक की जगह सेंधा नमक (रॉक सॉल्ट) खाना चाहिए।

प्रेग्नेंसी में शुरू के तीन माह महत्त्वपूर्ण -
प्रेग्रेंसी प्लान करने से पहले महिलाओं को थायरॉइड जांच करानी चाहिए। टीएसएच लेवल सही नहीं आने पर दवा लें। सामान्य होने के बाद प्रेग्रेंसी प्लान करें। प्रेग्रेंसी के तीन माह में बच्चे के दिमाग का विकास होता है। मां को थायरॉइड की समस्या होगी तो बच्चे का दिमाग विकसित नहीं होगा। प्रेग्रेंसी में शुरू के तीन माह तक नियमित थायरॉइड की जांच कराने की सलाह दी जाती है।

इसके लिए ब्लड टेस्ट कराते हैं। इसमें टीएसएच हार्मोन के साथ टी3 और टी4 की जांच होती है। बच्चे के जन्म के 48 से 72 घंटों में जांच कराते हैं। यदि टी 4 का लेवल 40 से अधिक आता है तो दवा शुरू कर देते हैं। एक सप्ताह बाद दोबारा जांच करते हैं। प्री मेच्योर बच्चे का सैंपल जन्म के 7-8 दिन बाद ही लेते हैं। बड़े लोगों को ब्लड शुगर की तरह इसकी भी नियमित जांच करानी चाहिए। टीएसएच लेवल सामान्य से ज्यादा है तो चिकित्सक की सलाह से इलाज कराएं। छह सप्ताह बाद जांच करानी चाहिए। यदि हार्मोन लेवल सामान्य हो गया है तो 3-6 माह पर भी करा सकते हैं। जांच के बाद डॉक्टर की सलाह से दवा बदल सकते हैं।

भोजन संतुलित व तय समय पर लें -
आयुर्वेद में थायरॉइड को मेदोधातु रोग बताया गया है जो कि शरीर में अग्नि मंद होने पर होती है। यह बीमारी बंध और अबंध दो प्रकार की होती है। मरीज को व्यायाम और खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। गले से जुड़े व्यायाम करने चाहिए। संतुलित मात्रा में और तय समय पर भोजन करना चाहिए। न ज्यादा और न ही कम आहार लेना चाहिए।