
Urine obstruction dysfunctional voiding
बच्चों में यूरिन ऑब्सट्रक्शन (डिसफंक्शनल वॉयडिंग) की समस्या भी अधिक पाई जाती है जिसे पेशाब में रुकावट भी कहते हैं। इस कारण बच्चे को यूरिन तो लगती है लेकिन जाने पर यह रिलीज नहीं होती। ऐसे में ब्लैडर व यूरेटर में भरे होने से यूरिन धीरे-धीरे लीक होता है। यूरिन लीकेज की समस्या से ग्रस्त बच्चे को संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। आमतौर पर ब्रेन और ब्लैडर आपस में कनेक्ट होते हैं लेकिन डिसफंक्शनल वॉयडिंग की समस्या में ब्लैडर ब्रेन को यूरिन का सिग्नल नहीं दे पाता है। इसका कारण ब्रेन व ब्लैडर के बीच सही कॉर्डिनेशन का न होना है जिससे बच्चा यूरिन नहीं कर पाता और लीकेज की समस्या उभरती है। इस समस्या के निदान के लिए विशेषज्ञ अलग-अलग थैरेपी देते हैं।
बायो फीडबैक -
डिसफंक्शनल वॉयडिंग लीकेज की समस्या से राहत दिलाने के लिए बायो फीडबैक टेक्नीक प्रयोग में लेते हैं। इसमें बच्चे को कंप्यूटर पर ब्रेन और ब्लैडर के कॉर्डिनेशन से यूरिन रिलीज करने की प्रक्रिया दिखाते हैं। फिर उसे वही प्रक्रिया स्क्रीन पर देखते हुए दोहराने के लिए कहते हैं। बच्चा जब प्रक्रिया को दोहराता है तो वह आसानी से यूरिन पास करता है। यह इलाज का एक तरीका है।
बोटोक्स इंजेक्शन -
कुछ बच्चों में ब्लैडर की मांसपेशियां कठोर होने से यूरिन पास होने में तकलीफ होती है। ऐसे में दूरबीन की मदद से बच्चे के ब्लैडर में बोटोक्स इंजेक्शन लगाते हैं। इससे ब्लैडर की मांसपेशियां सामान्य हो जाती हैं और बच्चे को यूरिन पास करने में तकलीफ नहीं होती है।
न्यूरो मॉड्युलेशन -
ब्रेन व ब्लैडर के बीच कॉर्डिनेशन बनाने के लिए न्यूरो मॉडयुलेशन तकनीक उपयोगी है। इसमें पल्स जनरेटर की मदद से ब्लैडर-ब्रेन को जोडऩे वाली नर्व को स्टीमुलेट करते हैं। जिससे बच्चे के ब्लैडर-ब्रेन के बीच सिग्नल काम करने लगता है। ऐसे में ब्लैडर में पेशाब भरने पर ब्लैडर ब्रेन को यूरिन रिलीज करने का सिग्नल देगा। 8-10 फीसदी बच्चों में इस थैरेपी से तकलीफ ठीक हो जाती है।
2-4 दिन अस्पताल में भर्ती -
थैरेपी के लिए बच्चे को 2-4 दिन अस्पताल में भर्ती रखते हैं ताकि वह सभी चीजों को आसानी से सीख सके। छोटे बच्चों के साथ उनके पेरेंट्स भी इस दौरान खास ध्यान रखें।
Published on:
22 Oct 2019 01:31 pm
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