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जानिए उस दस्तावेज की 10 बातें, जिसने जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाया

locationनई दिल्लीPublished: Aug 08, 2019 10:37:44 am

Submitted by:

Navyavesh Navrahi

Jammu Kashmir Vilay Sandhi : जम्मू-कश्मीर ( J&K ) के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह ने किए थे हस्ताक्षर
संधिपत्र पर दस्तखत करने से रियासत का भारत में विलय हो गय
तत्कालीन गवर्नर लार्ड माउंटबेटन ( Lord Mountbatten ) ने स्वीकार किया था संधिपत्र

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जम्मू-कश्मीर ( Jammu-Kashmir ) में तनाव का माहौल है। धरती की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर ( Kashmir r ) के इतिहास के पन्नों पर नजर दोड़ाएं तो पाएंगे कि राजनीतिक तौर पर वो कभी शांत नहीं रहा। देश की आजादी के बाद तो ये अशांति और भी बढ़ गई। स्वतंत्रता के बाद भारतीय रियासतों का भारत में विलय होना था। रियासतों के शासकों के सामने यह विकल्प था कि वे भारत या पाकिस्तान, दोनों में से किसी एक के साथ हो जाएं। कश्मीर के सामने भी ये सवाल था। ऐसे में दो पेजों का एक दस्तावेज तैयार किया गया, जिसके आधार पर जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में हुआ। आइए जानते हैं इस दस्तावेज की 10 खास बातें…

1.साल 1947 में रियासतों के विलय के लिए दो पेजों का संधिपत्र तैयार किया गया। इसी के आधार पर जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय मानकर इसे भारत का हिस्सा बनाया गया।

2.एक रिपोर्ट के अनुसार- इस पत्र को जम्मू-कश्मीर के हालात को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया गया था। उस समय पांच सौ से ज्यादा रियासतें थीं। जिन्हें ध्यान में रखते हुए एक डॉक्युमेंट तैयार किया गया था, जिस पर 569 रियासतों के शासकों से साइन कराकर इंडिया डोमिनियन का अंग बनाया गया था। ये महज दो पन्नों का था।
3. एक भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ( Indian Independence Act ) बनाया गया था, जिसके अनुसार- रियासतों के शासक पाकिस्तान या भारत किसी के साथ भी अपनी रियासत को विलय कर सकते थे। तत्कालीन गृह मंत्रालय की ओर से एक फार्म बनाया गया था। इसमें खाली जगह छोड़ी गई थी ताकि रियासतों के नाम, उनके शासकों के नाम और तारीख भरी जा सकें।
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4. महाराजा हरि सिंह जम्मू-कश्मीर के डोगरा वंश के अंतिम शासक थे। दस्तावेजों के अनुसार उन्होंने 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र यानी ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर साइन किए। इसमें कश्मीर के शासक ने अपने प्रिंसले स्टेट को भारत में विलय पर सहमति जाहिर की थी।
5. विलय पत्र की शुरुआती लाइन में महाराजा हरिसिंह ने रियासत को विलय करने की सहमति जाहिर की थी। दस्तावेज में लिखा था- ‘मैं श्रीमन इंद्र महेंद्र राजराजेश्वर महाराजा श्री हरि सिंह जी, जम्मू- कश्मीर नरेश तथा तिब्बतादी देशाधिपति, जम्मू और कश्मीर का शासक, अपने राज्य की संप्रभुता के विलय पर मुहर लगा रहा हूं। मैं घोषित करता हूं कि मैं इंडिया के गर्वनर जनरल की इच्छा पर इंडिया डोमिनियन में विलय को स्वीकार करता हूं।’ पत्र में कुछ अन्य प्रावधान भी थे, जिन पर महाराजा हरि सिंह ने सहमति जताते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए।
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6. महाराजा हरि सिंह ने संधिपत्र हस्ताक्षर कब हस्ताक्षर किए, इस पर भी इतिहासकारों में मतभेजद हैं। कुछ का मानना है कि कश्मीर में रहते हुए ही उन्होंने इस पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जबकि कुछ का कहना है कि कश्मीर छोड़ने के बाद उन्होंने पर इस पर हस्ताक्षर किए। कालांतर में इस संधि पर भी आशंका जाहिर की जाने लगी है।
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7.दस्तावेजों के अनुसार- 27 अक्टूबर को भारत के तत्कालीन गर्वनर लार्ड माउंटबेटन ने इस संधि को स्वीकार किया। इस संबंधी अपने पत्र में उन्होंने टिप्पणी लिखी- कश्मीर में ज्यों ही कानून व्यवस्था ठीक हो जाती है और, हमलावरों को खदेड़ दिया जाता है, भारत में राज्य के विलय का मुद्दा जनता के हवाले से निपटाया जाएगा। उनकी इस टिप्पणी ने आने वाले समय में भारत और पाकिस्तान के बीच बड़े विवाद को जन्म दिया। भारत ने हमेशा दावा किया है कि विलय बेशर्त और अंतिम था। इसलिए हर साल इस दिन को विलय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
8.महाराजा हिंदू थे। देश के बंटवारे के दौरान बढ़े हुए सांप्रदायिक तनाव में राज्य रियासत को मुस्लिम राज्य का हिस्सा बनाना मुश्किल था। इसलिए उन्होंने भारत के साथ विलय स्वीकार किया। जबकि मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण अंग्रेज मानते थे कि जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के साथ जा सकता है।
9. देश की आजादी के समय पाकिस्तान से आने वाले कबायली लड़ाकों के ने कश्मीर में आक्रमण किया। पाकिस्तान की नई सरकार और सेना ने इन लड़ाकों का समर्थन किया और उन्हें हथियार मुहैया कराए। गैरमुस्लिमों की हत्या और लूट-पाट की खबरें आने लगीं। इस घटना ने महाराजा के फैसले को और बल दिया औन उन्होंने भारत के साथ विलय पर सहमति जताई।
10. अक्टूबर 27 के तड़के पहली बार भारतीय सेना कश्मीर पहुंची। हवाई जहाज से उसे श्रीनगर की हवाई पट्टी पर उतारा गया। कई तरह की मुश्किलों के बावजूद भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों को श्रीनगर में घुसने से रोक दिया। उन्होंने कबालियों को कश्मीर घाटी से बाहर धकेल दिया, पर वे उन्हें पूरी उन्हें रियासत से बाहर नहीं निकाल पाए।
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