29 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

जानिए कैसे पता लगाते हैं कितना भरना होता है Income Tax, कुछ इस तरह से किया जाता है कैल्कुलेशन

इनकम टैक्स के नियमों के अनुसार पांच भागों में बंटी होती है ग्रॉस सैलरी सैलरी, हाउस प्रॉपर्टी, बिजनेस का मुनाफा, आदि होते हैं इसमें शमिल

3 min read
Google source verification

image

Saurabh Sharma

Sep 29, 2020

Know how to find out how much income tax has to be paid

Know how to find out how much income tax has to be paid

नई दिल्ली। इनकम टैक्स जल्द आपको इससे रूबरू होना पड़ सकता है। जैसे-जैसे देश में अनलॉक और सरकार द्वारा छूट बढ़ती जाएंगी। वैसे-वैसे इनकम टैक्स को लेकर दी जा रही रियायतें खत्म हो जाएंगी। ऐसे में आपको इस बात की जानकारी जरूर होनी चाहिए कि इनकम टैक्स फाइल करने के लिए आपको किन दस्तावेजों की जरुरत होती है, साथ ही टैक्स कटौती बचाने के लिए कुल आय का पता लगाना होता है। इनकम टैक्स के नियमों के अनुसार ग्रॉस सैलरी पांच पार्ट में डिवाइड होती है। जिसमें सैलरी, हाउस प्रॉपर्टी, बिजनेस के मुनाफे से आय, प्रोफेशन और अन्य साधनों से होने वाली आय को शामिल किया जाता है। जिसके बाद आपको अपने इनकम सोर्स की पहचान करते हुए वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए आयकर भरना होगा। आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर इसका पता कैसे लगाते हैं।

यह भी पढ़ेंः-आपका बच्चा भी बच्चा भी बन सकता है भविष्य का Warren Buffett, स्मार्ट इंवेस्टर बनाने के लिए ऐसे करें ट्रेंड

फॉर्म-16 से मिलती है पूरी जानकारी
- इस फॉर्म में सालाना आय के बारे पूरी जानकारी के होने के साथ टैक्स डिडक्शन के बारे में भी जानकारी होती है।
- इसमें टोटल सैलरी पर कितने फीसदी टैक्स लगेगा इसके बारे में बताया जाता है।
- कितना टैक्स कटा है इस बात की भी जानकारी होती है।
- टैक्स छूट के लिए टैक्सपेयर्स को अपने कुछ इन्वेस्टमेंट डॉक्युमेंट्स जमा कराने होते हैं।
- इनमें हाउस रेंट, स्टैंडर्ड डीडक्शन, लीव या ट्रैवल भत्ता पर टैक्स छूट मिलती है।
- हाउस रेंट एक साल में एक लाख से ज्यादा है तो टैक्स छूट के लिए मकान मालिक का पैन कार्ड ऑफिस में देना होगा।
- 50 हजार रुपए के स्टैंडर्ड डिडक्शन के लिए किसी दस्तावेज की जरुरत नहीं होगी।
- अगर आपको अपने ऑफिस से फॉर्म 16 नहीं मिला है, तो टैक्स कटौती के बारे में सैलरी स्लिप से पता चल जाएगा।

घर से होने वाली आय
- घर को किराए पर दिया है तो उस आय को इसके अंतर्गत दिखाना होता है।
- अगर किसी के पास एक घर है जिसमें वह खुद रहते हैं तो आय जीरो होगी।
- किसी घर का लोन चल रहा है तो उसके ब्याज को लेकर दो लाख रुपए तक की कटौती के लिए क्लेम किया जा सकता है।
- दो या तीन घर में अगर खुद ही रहते हैं तो उन पर टैक्स नहीं लगता. यह व्यवस्था 2019-20 के वित्त वर्ष से लागू हुई है।

घर से आय पर ऐसे होता है टैक्स कैल्कुलेशन
- अपेक्षित किराए और नगरपालिका मूल्यांकन की तुलना करें और दोनों का उच्च मूल्य लें, जिसे अपेक्षित किराया कहा गया है।
- वास्तविक किराये को अपेक्षित मूल्य से तुलना करें और जो इसमें उच्च होगा वह वार्षिक ग्रोस वैल्यू मानी जाएगी।
- जीएवी के दौरान नगरपालिका टैक्स में कटौती करके नेट एनुअल कॉस्ट की गणना करें।
- एनुअल कॉस्ट से 30 फीसदी घर के रखरखाव के लिए काट दें।
- लोन में ब्याज दिया है, तो काट दें और उसके बाद जो राशि आती है, वह प्रोपर्टी से आय होती है जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकती है।

यह भी पढ़ेंः-वेटिंग पीरियड से लेकर क्लेम रिजेक्शन तक अक्टूबर से होने जा रहे हैं Health Insurance को लेकर बड़े बदलाव

बिजनेस के मुनाफे और प्रॉपर्टी से प्राप्त आय
- संपत्ति जैसे कि घर, म्यूचुअल फंड आदि की बिक्री से प्राप्त आय पर टैक्स होता हैै।
- इसमें यह भी देखा जाता है कि व्यक्ति ने कितने समय तक इन संपत्तियों को बेचा है।
- शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म दो प्रकार के कैपिटल गेन्स होते हैं।
- इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड और इक्विटी शेयर को अगर एक साल से ज्यादा समय तक रखा जाता है तो यह लांग टर्म कैपिटल टैक्स कहा जाता है और बिना सूचीकरण के इसमें 10 फीसदी टैक्स कटता है।
- अगर एक साल से पहले बेचे पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस के तहत 15 फीसदी की कटौती होती है।
- वहीं घर को खरीदने के दो साल बाद बेचा जाता है तो उस पर एलटीसीजी लगेगा।
- मुनाफे का आंकलन कर 20.8 फीसदी तक टैकस लगेगा।
- दो साल से पहले बेचने पर एसटीसीजी लगेगा और टैक्स स्लैब के अनुसार कटौती होगी।

बिजनेस और प्रोफेशन से होने वाली आय
- वकील या अन्य इस प्रकार के प्रोफेशनल व्यक्तियों को अपने मुनाफे को दिखाना होता है।
- स्टॉक मार्केट के ट्रांजेक्शन भी दिखाने होते हैं।
- इसमें कैश सिस्टम और एक्रुअल सिस्टम से टैक्स काउंट होता है।
- कैश सिस्टम में खर्चों का भुगतान कब हुआ और कब उन्हें मुनाफा प्राप्त हुआ आदि आता है. एक्रुअल सिस्टम में वे ड्यू होते हैं, भुगतान हुआ या नहीं हुआ इससे मतलब नहीं होता है।