
If the guru extended his hand, then the rocky road also became easy
नरेन्द्र वर्मा @ बांसवाड़ा। स्कूल का भारी बस्ता, पांच से सात किलोमीटर दूर तक की पथरीली राह, घाटियों का दर्रा। इसके बावजूद चेहरें पर मुस्कान एवं जल्द से जल्द स्कूल पहुंचने के जज्बे में दौड़ते कदम। यह सुखद नजारा उस वक्त और खुशनुमा हो जाता है, जब शिक्षक भी उन्हें जल्द से जल्द स्कूल पहुंचाने के लिए प्रेरणास्त्रोत बन उनके साथ दौड़ पड़ते हैं। जटिल परििस्थतियों बावजूद पढ़ाई के लिए ऐसी जीवटता और उत्साह शायद ही कहीं और नजर आए। लेकिन ये बांसवाड़ा जिले का प्राकृतिक सौंदर्य ही है जो तकलीफों को पीछे छोड़ भविष्य की सुनहरी इबारत लिखने का जज्बा देता है। और ऐसा ही जज्बा देखने को मिला काकनसेजा िस्थत राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चाचाकोटा में। If the guru extended his hand, then the rocky road also became easy
खुशनुमा माहौल ने भुलाई तकलीफें
सौ टापुओं के नाम प्रचलित बांसवाड़ा के काकनसेजा व चाचाकोटा क्षेत्र के नैर्सिंगक सौंदर्य के बीच पढाई के जज्बे से लबरेज ये बच्चों ने राह की तकलीफें तो दरकिनार ही कर दीं। करें भी क्यों न। जब प्रकृति ने वादियों को देश के प्रमुख पर्यटन स्थल कश्मीर, केरल एवं शिमला की तरह नवाजा हो तो तकलीफें दरकिनार करना लाजमी है। हालांकि यहां तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को पथरीली राह, घाटा, सूनसान रास्ते से गुजरना पड़ता है, लेकिन इसी काकनसेजा िस्थत राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चाचाकोटा में सुबह साढ़े सात बजे पहुंचने के लिए आसपास के गांवों के करीब सौ बच्चों को रोजाना यह विकट बाधा भारी बस्ते को लादकर पैदल ही पार करनी पड़ती है।
बच्चों ने यों सुनाया दर्द
पत्रिका से बातचीत में बच्चों ने बताया कि कक्षा पांचवीं से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई के लिए आसपास के आधा दर्जन गांवों के तकरीबन सौ बच्चे विद्यालय पहुंचते हैं। इनमें स्कूल से चाचाकोटा की दूरी सात किलोमीटर है, जबकि हिंडोला चार, मालपाड़ा तीन व रकोड़ा पाड़ा की दूरी एक किलोमीटर है। मालपाड़ा और चाचाकोटा की राह सर्वाधिक दुष्कर है। वन क्षेत्र होने से स्कूल के रासते के नाम पर यहां पगडंडी ही है। बारिश में तो हालत अधिक विकट हो जाती है। क्षेत्र में पैंथर और अन्य वन्य जीवों की आवाजाही भी होने से अनचाहा भय राह से गुजरते वक्त रहता है। जाे स्कूल से जुड़े गांव की सूनी सड़कों को और भी भयावह बना देता है।
अफसर बनना चाहते हैं
बच्चों ने बताया कि वह पढ़ लिख कर अफसर, इंजीनियर, वकील, पुलिस बनाने चाहते हैं। इस लिए वह अकेले या फिर समूह में वह लम्बी दूरी तय करके पढ़ाई करने के लिए काकनसेजा आते है। रास्ता विकट एवं दुष्कर है, लेकिन स्कूल के सभी गुरुजी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। स्कूल में मिड डे मील ही उनका टिफिन बॉक्स है। रास्ते में प्यास लगने पर हैंडपम्प ही उनकी प्यास बुझाने का एकमात्र साधन।
यहां समस्या भी कम नहीं
गांव का नाम काकनसेजा है, लेकिन यहां सात किलोमीटर दूर चाचाकोटा को आवंटित स्कूल इसी गांव में संचालित है। इस स्कूल में कुल छह गांव के 312 बच्चे पढ़ते हैं। लेकिन यहां कक्षा-कक्ष का अभाव है। ऐसे में स्कूल के बरामदे में एक साथ तीन कक्षा के बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल भवन भी खस्ताहाल है, लेक्चरार, लेबल टू शिक्षक के भी पद रिक्त हैं। प्रधानाचार्य धर्मेंद्र शुक्ला के अनुसार यहां रमसा व राज्य मंत्री अर्जुन लाल बामणिया के विधायक कोटे से आवंटित कक्षों का निर्माण कार्य जल्द करवा लिया जाएगा। शिक्षकों के रिक्त पद पर नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भिजवा रखे हैं।
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Published on:
23 Sept 2022 05:19 pm
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