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इंटरनेट की बजाए यहां से मिल सकती है बच्चों को नॉलेज

काम की बातें हम पहले किताबों से सीखते थे, लेकिन आजकल इंटरनेट, मोबाइल एप्स और पोडकास्ट्स जैसे टेक्नोलॉजी से जुड़े कई माध्यम हो गए हैं।

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Amanpreet Kaur

Jul 21, 2018

kids playing on tablet

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काम की बातें हम पहले किताबों से सीखते थे, लेकिन आजकल इंटरनेट, मोबाइल एप्स और पोडकास्ट्स जैसे टेक्नोलॉजी से जुड़े कई माध्यम हो गए हैं। इन सबके बावजूद ये सवाल आज भी बार-बार चुभता है कि टीनेजर्स की नॉलेज बढ़ाने का दूसरा और क्या तरीका हो सकता है। यहां घड़ी की सुइयां उल्टी घूमाने की जरूरत है क्योंकि हमारे घर के बड़े-बुजुर्गों के पास नॉलेज की वह पोटली है जिसे आजकी पीढ़ी खोलना ही नहीं चाहती है। इन दादा-दादी, नाना-नानी को अब भी याद है कि उनके जमाने में गूगल और यूट्यूब से अलग कैसा जीवन होता था। बिना माइक्रोवेब के खाना पकता था। महिलाएं घर को बजट संभालती थीं आदि-आदि। जानते हैं कि बड़े-बुजुर्गों की उन पांच खुबियों के बारे में जिनसे टीनेजर्स अपने पढ़ाई और जीवन के लिए उपयोगी गुर सीख सकते हैं, लेकिन इसके लिए उनको बुजुर्गों के साथ क्वॉलिटी टाइम गुजारना जरूरी होगा।

कहानी कहना : अगर बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी से कहानियां सुनें और देखें कि उनके चेहरे के हाव-भाव, कहानी में बताई जा रही घटना, उससे उनका जुड़ाव, शब्दों का इस्तेमाल, फैक्ट, रिश्तों की बुनावट, उसकी मर्यादा, परिवार, सम्मान और प्रतिष्ठा को वो किस तरह से अपनी कहानियों में शामिल करते हैं। इससे युवाओं को किसी चीज की ड्राफ्टिंग, अच्छे लेख लिखने और विचारों को परिपक्व बनाने में मदद मिलेगी।

कम्युनिकेशन स्किल: युवाओं में मॉडर्न एप्रोच के कारण कम्युनिकेशन स्किल कम हो रहा है। पहले हमारे बुजुर्ग आपस में बातचीत और हाल-चाल लेने के लिए पत्र लिखा करते थे। अपने बच्चों को कहिए कि वो अपने बुजुर्गों से उस दौर की संचार प्रणाली, खत लिखने के तरीकों, उनमें लिखे जाने वाले अभिवादनों और शब्दों को दिखाएं। उनके बारे में बताएं। यह चीजें आप यट्यूब या सोशल मीडिया से नहीं सीख सकते

मेलजोल का तरीका: आज युवा औसतन हर महीने ६० घंटे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बिताते हैं। वे अपने करीबियों और रिश्तेदारों से बातें न करना और अपने मन की बात शेयर न करने से ही हिंसक मनोवृत्ति, एकांकीपन, अलगाव और संवाद न कर पाने जैसी परेशानियों से यूथ घिरे हुए हैं। इस समस्या का इलाज भी बुजुर्गों की कंपनी में मौजूद है। बुजुर्गों के संपर्क में आने से यह सब सीख सकते हैं।

लिखने की आदत: तकनीक ने आज हमारी लेखन क्षमता को प्रभावित किया है। पेन से लिखने पर हमें पूरा ध्यान विषय पर लगाना होता है। किसी भी विषय पर लिखने के लिए हमें अभ्यास और धैर्य की भी जरूरत होती है। कई शोधों में कहा गया है कि बुजुर्गों के साथ रहने से धैर्य बढ़ती और स्थिति में सुधार होता है।

पारिवारिक विरासत को संभालना: परिवार के बारे, उसका इतिहास, सिद्धांत, कहानियां, किंवदंतियां, निजी घटनाएं और बुजुर्गों के किए काम हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा को तय करते हैं। इसको केवल बुजुर्गों के पास बैठकर पाया जा सकता है। इन्हें सुरक्षित करवाकर आने वाली पीढिय़ों के लिए रखना चाहिए।