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कर्नाटक के छात्रों के लिए 10 अतिरिक्त सीटें आरक्षित करेगा एनएलएसआइयू

इससे पहले बीयू ने शर्त रखी थी कि एनएलएसआइयू को अतिरिक्त सात एकड़ जमीन देने के लिए 50 फीसदी सीटें कर्नाटक के छात्रों के लिए आरक्षित होनी चाहिए। बाद में सरकार के विरोध के चलते बीयू ने इस शर्त को वापस ले लिया और सीटों के आरक्षण का मुद्दा सरकार के विवेक पर छोड़ दिया।

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-बीयू परिसर में विस्तार के लिए अतिरिक्त सात एकड़ भूमि आवंटित

बेंगलूरु.

नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआइयू) ने अपने परिसर के विस्तार के लिए ज्ञान भारती में बेंगलूरु विश्वविद्यालय (बीयू) से सात एकड़ अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण के बदले में कर्नाटक के छात्रों के लिए अतिरिक्त 10 सुपरन्यूमरेरी (अतिरिक्त) कोटा सीटें आरक्षित करने पर सहमति व्यक्त की है। अतिरिक्त सीटें, कॉलेज में प्रवेश पाने वाली कुल सीटों की संख्या के अतिरिक्त होती हैं। सरकार Karnataka Government और एनएलएसआइयू के बीच हुए समझौते के अनुसार, अगले शैक्षणिक वर्ष से कर्नाटक के विद्यार्थियों के लिए विधि डिग्री पाठ्यक्रमों में अतिरिक्त 10 सीटें उपलब्ध होंगी।

उच्च शिक्षा मंत्री एम. सी. सुधाकर ने कहा, NLSIU में पहले से ही कर्नाटक के छात्रों के लिए क्षैतिज आधार पर 25 फीसदी सीटें आरक्षित हैं। हालांकि, हम परिसर के विस्तार के लिए सात एकड़ जमीन मुफ्त में नहीं देना चाहते। इसलिए, हमने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों से राज्य के छात्रों के दृष्टिकोण से अतिरिक्त सीटें प्रदान करने का अनुरोध किया। वे सुपर न्यूमेरिक कोटा के तहत 10 अतिरिक्त सीटें प्रदान करने के लिए सहमत हुए हैं।

यह कर्नाटक के लिए एक विशेष कोटा है। वर्ष 2021 से कर्नाटक के छात्रों को क्षैतिज आरक्षण प्रदान कर रहे एनएलएसआइयू ने बीए एलएलबी (ऑनर्स), एलएलबी (ऑनर्स) और एलएलएम पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए 2021-22 में कुल 43 सीटें, 2022-23 में 78 और 2023-24 में 115 सीटें दी हैं।

सरकार ने बीयू Bengaluru University के ज्ञानभारती परिसर में एनएलएसआइयू को 30 वर्ष की अवधि के लिए 50,000 रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष की दर से पट्टे पर सात एकड़ भूमि आवंटित की है। इससे पहले बीयू ने शर्त रखी थी कि एनएलएसआइयू को अतिरिक्त सात एकड़ जमीन देने के लिए 50 फीसदी सीटें कर्नाटक के छात्रों के लिए आरक्षित होनी चाहिए। बाद में सरकार के विरोध के चलते बीयू ने इस शर्त को वापस ले लिया और सीटों के आरक्षण का मुद्दा सरकार के विवेक पर छोड़ दिया।