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भगवान चित्रगुप्त जयंतीः सरल पूजा विधि एवं आरती

गुरुवार 30 अप्रैल को हैं भगवान चित्रगुप्त जयंती

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Shyam Kishor

Apr 29, 2020

भगवान चित्रगुप्त जयंतीः सरल पूजा विधि एवं आरती

भगवान चित्रगुप्त जयंतीः सरल पूजा विधि एवं आरती

हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान चित्रगुप्त का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस 30 अप्रैल दिन गुरुवार को हैं। जानें भगवान चित्रगुप्त की सरल पूजा विधि एवं आरती।

पूजा विधि

घर के पूजा स्थल को साफ़ करके एक आसन पर कपड़ा बिछाकर श्री चित्रगुप्त भगवान की तस्वीर स्थापित करें। अगर घर में तस्वीर न हो तो चित्रगुप्त जी के प्रतिक एक कलश को स्थापित कर पूजन करें। दीपक जलाकर सबसे पहले गणेश जी की पूजा अर्चना करने के बाद भगवान चित्रगुप्त जी को चन्दन, हल्दी, रोली अक्षत, पुष्प व धूप आदि से विधवत पूजन करें। इसके बाद ऋतुफल, मिठाई, पंचामृत (दूध, घी कुचला अदरक, गुड़ और गंगाजल) एवं पान सुपारी का भोग लगायें।

इस दिन इनका भी पूजन करने का विधान है

चित्रगुत जयंती के दिन विधिवत पूजन अर्चन के बाद परिवार के सभी सदस्य अपनी किताब, कलम, दवात आदि का पूजन करते हैं। पूजा में एक सफ़ेद कागज पर चावल का आंटा, हल्दी, घी, पानी व रोली से स्वस्तिक बनाकर उस पर नीचे दिए पांच देवी देवतावों के नाम लिखना का विधान है। श्री गणेश जी सहाय नमः, श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः, श्री सर्वदेवता सहाय नमः आदि।

उपरोक्त पूजन के बाद इस चित्रगुप्त मंत्र का जप 108 बार जरूर करें, एवं मंत्र जप के बाद भगवान चित्रगुप्त जी की आरती का श्रद्धापूर्वक गायन भी करें।

चित्रगुप्त मंत्र

मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम्! महीतले, लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते।

चित्रगुप्त! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं, कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त! नामोअस्तुते।।

।। श्री चित्रगुप्त जी की आरती ।।

जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम, शरणागतम।

जय पूज्य पद पद्मेश तव शरणागतम, शरणागतम।।

जय देव देव दयानिधे, जय दीनबंधु कृपानिधे।

कर्मेश तव धर्मेश तव शरणागतम, शरणागतम।।

जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनीधारी विभो।

जय श्याम तन चित्रेश तव शरणागतम, शरणागतम।।

पुरुषादि भगवत् अंश जय, कायस्थ कुल अवतंश जय।

जय शक्ति बुद्धि विशेष तव शरणागतम, शरणागत।।

जय विज्ञ मंत्री धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।

जय शांतिमय न्यायेश तव शरणागतम, शरणागतम।।

तव नाथ नाम प्रताप से, छूट जाएं भय त्रय ताप से।

हों दूर सर्व क्लेश तव शरणागतम, शरणागतम।।

हों दीन अनुरागी हरि, चाहें दया दृष्टि तेरी।

कीजै कृपा करुणेश तव शरणागतम, शरणागतम।।

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