
गाडरवारा। जिले की गाडरवारा तहसील को प्रबुद्धजनों की भूमि कहा जाता है। ओशो रजनीश से लेकर आशुतोष राणा एवं अनेक लोगों ने देश विदेश में नगर का नाम रौशन किया है। इसके साथ ही तहसील क्षेत्र हिंदी की बिंदी अर्थात हिंदी के गौरव में भी वृद्धि कर रहा है।
जिले में सर्वाधिक हिंदी साहित्य सृजन, तीन दिनों में 21 पुस्तकें विमोचित
स्थानीय साहित्यकारों के बताए अनुसार जिले भर में सबसे अधिक हिंदी में रचनाओं का प्रकाशन गाडरवारा से ही होता है। बीते दिनों नगर में संपन्न हुए पुस्तक विमोचन समारोह में तीन दिन में इक्कीस पुस्तकों का विमोचन हुआ। इसमें सात पुस्तकें नरेंद्र श्रीवास्तव की, छह सुशील शर्मा, पांच कुशलेंद्र श्रीवास्तव एक एक पुस्तक कमला नगरिया, संतोष भावरकर एवं चाणक्य दुबे की हुई। नगर के साहित्यकारों को देश भर के अनेक मंचों से सम्मानित किया जा चुका है। वहीं हिंदी कविता एवं साहित्य से जुड़ी गतिविधियों का संचालन भी निरंतर नियम से होता रहता है। कहते हैं कि अंग्रेजी के आगे हिंदी बांझ होती जा रही है। लेकिन गाडरवारा तहसील में ऐसा नही है। यहां युवाओं से लेकर वरिष्ठ साहित्यकार हिंदी के प्रचार प्रसार में योगदान दे रहे हैं। यहां तो अंग्रेजी के अध्यापक सुशील शर्मा जैसे साहित्यकार भी हैं जिन्होंने विभिन्न विषयों पर सात पुस्तके प्रकाशित कराई हैं आठ प्रकाशनाधीन हैं। वहीं कुशलेंद्र श्रीवास्तव, नरेंद्र श्रीवास्तव समेत अनेकों नाम ऐसे हैं जो जिले के हिंदी साहित्य में आदर से लिए जाते हैं।
ओशो से आशुतोष तक हिंदी पर मजबूत पकड़
गाडरवारा ओशो रजनीश के बचपन की क्रीड़ा भूमि एवं अध्ययन स्थली रही है। इनके प्रवचनों एवं पुस्तकों में ओशो की उच्च स्तर की हिंदी सराहनीय है। ऐसे ही नगर के फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा की हिंदी बोलने की कला देश भर में प्रख्यात है।
एसडीएम के रिटायर्ड रीडर ने मप्र गान की तर्ज पर रचा नरसिंहपुर गान
सभी ने मप्र गान मां की गोद पिता का आंचल मेरा मध्यप्रदेश है जरूर सुना होगा। इसी की तर्ज पर नरसिंहपुर गान भी जिले में नरसिंहपुर एंथम के रूप में मान्य है। इसे नगर के रिटायर्ड एसडीएम रीडर रोहित रमन ने रचा है। साहित्यकार एवं गजलकार रोहित रमन को वर्षों से हिंदी साहित्य के प्रति लगाव रहा है। यह वर्तमान में साहित्य सृजन परिषद के अध्यक्ष भी हैं। नरसिंहपुर एंथम को यूटयूब पर देखा सुना जा सकता है। इस प्रकार आज हिंदी दिवस के दिन कहा जा सकता है कि गाडरवारा तहसील में हिंदी आज भी प्रासंगिक एवं विचार संप्रेषण का सशक्त माध्यम बनी हुई है।
Published on:
13 Sept 2018 06:22 pm
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