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राजगीर के भिखारियों में आज भी नालंदा के ज्ञान की झलक साफ दिखाई देती है, जानते हैं कई भाषाएं

इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी यहां वेद, वेदांत और सांख्य व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र पढऩे आते थे। उसी शिक्षा की झलक यहां राजगीर के भिखारियों में आज भी साफ दिखाई देती है।

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Navneet Sharma

Dec 16, 2019

राजगीर. पटना से 88 किलोमीटर दूर और राजगीर से महज 11 किलोमीटर दूर ज्ञान का बड़ा शिक्षा केंद्र रहा नालंदा विश्वविख्यात है। वर्तमान बिहार राज्य में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी यहां वेद, वेदांत और सांख्य व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र पढऩे आते थे। उसी शिक्षा की झलक यहां राजगीर के भिखारियों में आज भी साफ दिखाई देती है।

इस निर्वाण मार्ग से इतर राजगीर मार्ग में विदेशी सैलानियों के बीच भिखारियों का अद्भुत ज्ञान भंडार सीखने की प्रेरणा देता है। सैंकड़ों की संख्या में मौजूद भिखारी यहां आने वाले सैलानियों से उन्हीं की भाषा में याचना-संवाद करते मिल जाते हैं। रोजाना यहां दस से बारह सैलानी जत्थे ज़रूर पहुंचते हैं। इनसे याचना कर हर भिखारी हर दिन कम से कम हजार रुपये मांगकर जुटा लेता है। एक सफर के दौरान कम से कम छह विदेशी भाषाएं इनसे कोई भी सुन सकता है।
राजगीर के वल्चर पीक यानी गिद्धकूट पर्वत पर गिद्ध की चोंच की तरह बनी पर्वत चोटियों और 216 सीढिय़ों के फासलों के बीच मनोरम दृश्यों के साथ भगवान बुद्ध का धर्मचक्र प्रवर्तन और पद्मसूत्र की आध्यात्मिकता के सूत्र आत्माओं में समाहित मिलते हैं। हिंदू जैन धर्म की तरह बौद्ध में भी 108की विशेष महत्ता है। इसलिए की मनुष्यों में 108 तरह की भावनाएं उत्पन्न होती हैं। इसका त्याग ही निर्वाण का सुंदर मार्ग है।
कारो देवी सिथौरनी देवी, संजू देवी, बाधो देवी जैसी भिखारिनें बताती हैं कि सभी की योग्यताएं कम से कम तीन विदेशी भाषाएं जानने की हैं। ये सभी वृद्ध भिखारियों से ट्रेनिंग लेते हैं। महज़ भाषा की नहीं बल्कि बोलने और याचना के स्टाइल की भी। यहां आने वाले सैलानी अधिकतर बौद्ध देशों के या भारतीय होते हैं। लिहाजा भिखारी उनसे उन्हीं की देश भाषा में संवाद करते हैं। इन्हें जापानी, चीनी, कोरियाई, तिब्बती, अमेरिकी अंग्रेजी और दक्षिण भारतीय भाषाओं का ज्ञान है।
ये जानते हैं कि किस देश के सैलानी से किस भाषा में और कैसे मांगा जाना चाहिए। मसलन जापानी पर्यटकों के आते ही भिखारियों की टोली देखते समझ जाती है कि ये जापान से आए हैं। छूटते ही बोल पड़ेंगे,वातासी वो तोतेमो माजुसी ततुकेते। कमी गा अनत तसुकेते कुदासैमसु। सबका अर्थ यही है कि हमसब गरीब हैं। हमारी मदद करें। इन्हें विदेशी सैलानी भरपूर मदद न्यौछावर भी कर देते हैं।