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शादी से पहले दुल्हा-दुल्हन के लिए ये जांच है जरूरी, नहीं तो बच्चे की हो सकती है मौत

थैलेसीमिया का परीक्षण कराने से बच सकते हैं बड़ी मुसीबत से

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नोएडा. अगर आपकी होने वाली है शादी तो वैवाहिक बंधन में बधंने से पहले अपना और अपनी होने वाली दुल्हन का ब्लड टेस्ट करा लेना चाहिए। नहीं तो भविष्य में बच्चे के साथ ही परिवार के लोग भी मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित हो सकते हैं। दरअसल, लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है। थैलेसीमिया की बीमारी की वजह से लाल रक्त कणों की उम्र कम हो जाती है। इसकी वजह से इस बिमारी से पीड़ित बच्चे को बार-बार बाहरी खून चढ़ाना पड़ता है,जो बच्चे के साथ ही परिवार के लोग के लिए भी मानसिक और आर्थिक रूप से किसी प्रताड़ना से कम नहीं है। ऐसी स्थिति में ज्यादातर माता-पिता बच्चे का इलाज नहीं करा पाते हैं, जिससे बच्चे की 12 से 15 साल की उम्र में ही मौत हो जाती है। यह एक ऐसी बीमारी है कि अगर सही से इलाज कराया भी गया तो भी 25 साल या उससे कुछ अधिक में ही इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की मौत हो जाती है।

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डॉक्टरों के मुताबिक शादी से पहले वर-वधु के खून की जांच कराई जानी चाहिए। अगर दोनों में ही माइनर थैलेसीमिया पाया जाए तो ऐसे जोड़े को आपस में शादी से बचना चाहिए। अगर माइनर थैलेसीमिया से पीड़ित युवक-युवती की शादी होती है तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने की पूरी संभावना बन जाती है। अगर माइनर थैलेसीमिया पीड़ित युवक युवती की अंजाने में शादी हो गई है तो ऐसी हालत में मां के 10 हफ्ते तक गर्भवती होने पर पल रहे शिशु की जांच भी करानी चाहिए। ऐसा करके गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया की बीमारी का पता लगाया जा सकता है। अगर गर्भ में शिशु के मेजर थैलेसीमिया से पीड़ित होने की पुष्टि होती है तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट पद्धति से उसकी जिंदगी को सुरक्षित किया जा सकता है।

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गाजियाबाद के विजयनगर इलाके में के रहने वाले एक युवक की शादी 201० में हुई। जब उनका पहला बच्चा हुआ तो वह सालभर जीने के बाद ही उसकी मौत हो गई। परिवार के लोग समझ नहीं पाए कि उनके साथ क्या हो गया। इसके बाद दूसरे बच्चे के साथ ही ऐसा ही हुआ। जब तीसरे बच्चे के होने पर जब उसकी हालत भी बिगड़ने लगी तो परिवार के लोगों ने गाजियाबाद के चाइल्ड स्पेशलिस्ट को दिखाया। बच्चे की बीमारी का लक्षण देखने के बाद चिकित्सक ने थैलेसीमिया की जांच कराई। इस जांच में थैलेसीमिया की रिपोर्ट पॉजीटिव आई और इसके बाद वह बच्चा भी चंद दिन बाद ही इस दुनिया से चल बसा। इसके बाद जब पति-पत्नी दोनों की जांच कराई गई तो दोनों में माइनर थैलेसीमिया की पुष्टि हुई।

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ऐसे पहचाने थैलेसीमिया को

थैलेसीमिया से पीड़ित शिशु के नाखून और जीभ पीली पड़ जाते हैं ।
थैलेसीमिया से पीड़ित शिशु के जबड़े-गाल असामान्य हो जाते हैं।
थैलेसीमिया से पीड़ित शिशु का विकास रुक जाता है और वजन बढ़ना भी बंद हो जाता है।
थैलेसीमिया से पीड़ित शिशु अपनी उम्र से काफी छोटा नजर आए।
थैलेसीमिया से पीड़ित शिशु का चेहरा सूखा-सूखा नजर आता है।
थैलेसीमिया से पीड़ित शिशु कमजोर होने के साथ ही बीमार रहने लगता है ।
थैलेसीमिया से पीड़ित शिशु को सांस लेने में तकलीफ होती है।
थैलेसीमिया से पीड़ित शिशु पीलिया का भ्रम होने लगता है।


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इस बीमारी में सबसे खराब बात ये है कि जब बीमारी का तब पता चलता है,तब उसका इलाज संभव नहीं होता। माता-पिता को सचेत रहना चाहिए। इस बीमारी से पीड़ित बच्चे को बाहरी खून चढ़ाना ही एक मात्र इलाज है। इसलिए शादी से पहले सावधानी ही एक मात्र उपाय है।


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