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जानिए – कैसे जलाभिषेक एवं बरसात के पानी को व्यर्थ बहने के बजाय कुओं में कर रहे है रिचार्ज ?

शिवालय जल संरक्षण की मिसाल बन रहे हैं। छोटी काशी के शिवालय अब केवल पूजा—पाठ के स्थल ही नहीं, बल्कि अब भू जल संरक्षण की मिशाल भी बन रहे हैं।

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jalabhishek

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शिवालय जल संरक्षण की मिसाल बन रहे हैं। छोटी काशी के शिवालय अब केवल पूजा—पाठ के स्थल ही नहीं, बल्कि अब भू जल संरक्षण की मिशाल भी बन रहे हैं। भगवान आशुतोष के जलाभिषेक का जल अब नालियों में व्यर्थ ना बहकर मंदिर के निकट बने कुओं में संग्रहित किया जा रहा है।

इससे प्रतिवर्ष हजारों लीटर पानी इन कुओं के माध्यम से पुन:भूमि संग्रहित हो रहा है। इसमें चाहे ब्रह्मपुरी स्थित जागेश्वर महादेव मंदिर हो या फिर मोती डूंगरी रोड स्थित पातालेश्वर महादेव मंदिर या फिर तत्कालेश्वर महादेव मंदिर।

कुओं में जल संरक्षण क्षेत्र के जल स्तर में बढ़ोतरी हुई है। शहर के मंदिर यह मंदिर अन्य मंदिरों के लिए मिशाल बन रहे है। जमीन से निकले, पातालेश्वर कहलाए पातालेश्वर महादेव मंदिर अपने रोचक इतिहास के लिए खासा चर्चित है।

चैत्र शुक्ल पंचमी, 1864 शक संवत में जयुपर के महाराजा सवाई माधोसिंह ने आठवें दादू संप्रदाचार्य निर्भयराम महाराज को मोती डूंगरी रोड पर 5 बीघा भूमि भेंट की थी। करीब डेढ़ सौ साल पहले मंदिर के स्थान पर कुआं खुदवाने का काम शुरू किया।

जब कुएं की गहराई 12-13 फीट पहुंची तो खुदाई करने वालों को भूमि में कठोरता महसूस हुई। थोड़ी और खुदाई करने पर इसमें एक प्राचीन मंदिर निकला, जिसमें चतुर्मुखी शिवलिंग, गणेशजी एवं नंदी सहित शिव परिवार विराजित मिला। यहीं थोड़ी दूरी पर दीवार में भैरवजी की प्रतिमा स्थापित थी।

बाद में लश्करी परिवार ने यहां एक मंदिर बनवा दिया। मंदिर समिति के सुरेश कुमार लश्करी ने बताया कि मंदिर के जिर्णोद्धार के बाद मंदिर की छत के बरसाती नाले और जलहरी को नाली से कुए को जोड़ दिया।

इससे जलहरी से निकलने वाले पानी छत से आने वाले बरसात को पानी कुए में रिचार्ज किया जाता है। नींद से जगाया, तो जागेश्वर कहलाएं ब्रह्मपुरी में पुंडरिकजी की हवेली के सामने स्थापित जागेश्वर महादेव का इतिहास भी कम रोचक नहीं है।

मंदिर के पुजारी शंभुदयाल भट्ट ने बताया कि महाराजा जयसिंह के शाही पुरोहित रत्नाकर पुंडरिक प्रतिदिन ब्रह्मपुरी से आमेर पैदल चलकर अंबिकेश्वर महादेव के दर्शन करने जाते थे। सर्दी हो या बरसात उनका यह क्रम कभी नहीं टूटा, लेकिन वृद्धावस्था से शरीर अशक्त होने से उन्हें नित्य मंदिर जाने में कठिनाई आने लगी और नियम भंग होने की स्थिति पैदा हो होने से चिंतित रहने लगे।

तब एक दिन भगवान शिव ने स्वप्न में आकर उनको स्वयंभू शिवलिंग के रूप में हवेली के आगे ही बैठे होने का संकेत दिया। तब पुंडरिकजी ने बताए गए स्थान के चारों तरफ की मिट्टी हटवा कर शिवलिंग को निकलवा लिया। यहां मंदिर बनवाने के बाद वे यहीं सेवा-पूजा करने लगे।

मंदिर के जिर्णोद्धार के बाद शिवजी की जलहरी और मं​दिर के बरसाती नालों को मंदिर के पीछे बने कुए से जोड दिया गया। इससे कुएं का जल स्तर काफी बढ़ गया है। जलदाय विभाग ने मंदिर के निकट ट्यूबवेल बनवाया जो ब्रह्मपुरी की कई कॉलोनियों की प्यास बुझा रहा है। तत्काल पर्चा देने से कहलाए तत्कालेश्वर कुंदीगर भैरवजी का रास्ता स्थित प्राचीन तत्कालेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना जयपुर की बसावट के पहले की बताई जाती है। मंदिर जितना प्राचीन है उतना ही चमत्कारी भी है।

यहां पर शहर के दूर दराज के उपनगरों से भी बड़ी संख्या में शिव भक्त जलाभिषेक के लिए आते है। विशाल बरगद और पीपल के वृक्ष के नीचे दो शिव परिवार एवं हनुमान का मंदिर ​स्थापित है। जहां श्रद्धालु घंटो बैठ कर शिव आराधना करते हैं। दोनों शिवालयों की जलहरी से निकलने वाला पानी पास ही बने कुए में रिचार्ज होता है। इससे यहा के जल स्तर बढ़ा है।

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