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Holi 2018: होली में बन रहा है यह संयोग, ऐसे पूजा करने पर मिलेंगे अच्छे परिणाम

ये करें उपाय तो फलदायी होगी होली  

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ग्रेटर नोएडा. होली का त्यौहार आने वाला है। होली को लेकर हर वर्ग में उत्साह रहता है। इस बार की होली खास है। होलिका दहन के दिन पूर्णिमा होने से खास संयोग बन रहा है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस साल होलिका दहन के लिए बहुत ही शुभ स्थिति बनी हुई है। एक मार्च को होलिका दहन के दौरान सुबह 8.58 बजे से पूर्णिमा लग जाएगी। साथ ही 7.37 पर भद्रा काल भी समाप्त हो जाएगा। भद्रा काल समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन करें।

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ज्योतिषाचार्य शिवा गौड ने बताया कि पूर्णिमा के साथ—साथ में भद्रा भी लगी हुई है। शिवा गौड ने बताया कि शास्त्रों और पुराण में साफ लिखा है कि भद्रा काल के समय होलिका दहन नहीं करना चाहिए। ऐसा करना से बेहद अशुभ फल मिलता है। भद्रा काल शाम 7.37 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। उसके बाद में होलिका दहन करना शुभ होगा। उन्होंने बताया कि होलिका दहन के दिन एक और अच्छा संयोग बन रहा है। यह संयोग होली को काफी शुभ बना रहा है। उन्होंने बताया कि ग्रंथों में साफ है कि पूर्णिमा, प्रदोष काल और भद्रा ना लगा हो तो बेहद शुभ संयोग होता है। तीनों ही संयोग होलिका दहन को शुभ बना रहे है।

ऐसे करें पूजा

एक थाली में पूजा की सामग्री रख लें और एक जल से भरा हुआ लोटा भी। होली पूजन के स्थान पर होलिका पर जल छिड़कें और परिक्रमा कर हाथ जोड़े। वहीं थाली में चावल, जल, फूल रुपये भी रख लें। उसके बाद ऊं विष्णु का जाप करें। इनके अलावा गणेशजी का ध्यान करते हुए मंत्रोच्चरण करें। उसके बाद में चावल व फूल चढाएं। बाद में होली के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं तथा पूजा में जाने-अनजाने हुई अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते हुए मनोकामनाओं की पूर्ण करने की प्रार्थना करें।

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ज्योतिषाचार्य शिवा गौड ने बताया कि भद्रा काल में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। हालांकि भद्रा काल में तंत्र-मंत्र, राजनीतिक और अदालती जैसे कार्य फलदायक बताए गए है। भद्रा काल की शुरूआत और समाप्ति भी अशुभ होती है। लिहाजा इस दौरान कोई मांगलिक कार्य नहीं होते है। पुराणों के अनुसार भद्रा शनिदेव की बहन और सूर्य की पुत्री मानी गई है। भद्रा का स्वभाव भी शनि की तरह कड़क बताया जाता है। दिन की भद्रा रात के समय और रात्रि की भद्रा दिन के समय आ जाए तो भद्रा को शुभ मानते हैं। पूर्णिमा के पूर्वार्द्ध में भद्रा रहती है। भद्रा के स्वभाव को नियत्रंण करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचाग में एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दिया है। उन्होंने बताया कि भद्रा का अर्थ कल्याण करने वाला होता है, लेकिन विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य नहीं करने चाहिए।

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