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जहां दिल्ली में समझौते पर चर्चा हो रही थी वहीं निचले असम के कई जिलों में कई गैर बोडो संगठनों की ओर से समझौते के खिलाफ बुलाए गए 12 घंटे के बंद ने सामान्य जनजीवन को प्रभावित किया। सुबह पांच बजे से बुलाए गए बंद का सर्वाधिक असर चिरांग और बंगाईगांव जिलों में दिखाई दिया। बंद समर्थकों ने कई स्थानों पर सड़कों पर टायर जलाकर वाहनों की आवाजाही ठप कर दी।
बंद में यह संगठन शामिल…
12 घंटे के बंद का आह्वान करने वाले संगठनों में मुख्य रूप से अखिल कोच-राजवंशी छात्र संस्था (अक्रासू), नाथयोगी छात्र संस्था, अखिल बोड़ो अल्पसंख्यक छात्र संस्था, अखिल आदिवासी छात्र संस्था, गैर बोड़ो सुरक्षा समिति और कलिता जनगोष्ठी संस्था शामिल हैं। अक्रासू के एक धड़े के नेता विश्वजीत राय ने कहा गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था को हम होने नहीं दे सकते। इसलिए विरोध कर रहे हैं। अक्रासू के अन्य धड़े के नेता गोपाल बर्मन ने कहा कि समझौते से शांति नहीं अशांति होगी। गैर बोड़ो सुरक्षा समिति के नेता ब्रजेन महंत ने कहा कि आज का दिन असम के लोगों के लिए काला दिन है। इन्हें समझौते के जरिए बोडो टेरोटेरियल रीजन दिया गया है। धीरे-धीरे ये एक-एक चीजें ले रहे हैं। कोकराझाड़ के सांसद नव शरणीया ने कहा कि अब हम अपने अधिकारों के लिए और अधिक सजग होंगे। हम अपना अधिकार खींच लाएंगे। समझौते के बाद की पूरी स्थिति की समीक्षा होगी।
बता दें कि लंबे समय से बोडो संगठनों की तरफ से अलग बोडोलैंड की मांग की जा रही थी। लंबे समय तक चले आंदोलन के दौरान कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने वाले कईं संगठनों को उग्रवादी संगठन करार दिया गया। अब समझौते के बाद सकारात्मक माहौल बनने की आशा है।
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बोडो समझौते का किसको होगा फायदा
बोडो टेरोटेरिलय कौंसिल (बीटीसी) के चुनाव होने हैं। इसके पहले समझौता हुआ है। अगले साल असम में अप्रैल में विधानसभा चुनाव होने हैं। समझौते से भाजपा को फायदा होने की संभावना है। फिलहाल बीटीसी की सत्ता में रहने वाली बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) असम की भाजपानीत सरकार में सहयोगी है। बोडो बहुल इलाकों में विकास की जो योजनाएं समझौते के तहत घोषित की गई है उससे बोडो बहुल इलाकों में भाजपानीत सरकार को चुनाव में फायदा होने के साथ ही बोडो इलाकों में बीपीएफ की स्थिति भी बेहतर होगी। हो सकता है फिर बीटीसी के चुनाव में वह परचम लहराए।