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स्लीपर बसों में मनमाना मॉडिफिकेशन, यात्रियों की सुरक्षा से खुला खिलवाड़

ग्वालियर से इस वक्त जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वे यात्रियों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। शहर से लेकर लंबी दूरी के रूटों पर दौड़ रही

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ग्वालियर. ग्वालियर से इस वक्त जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वे यात्रियों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। शहर से लेकर लंबी दूरी के रूटों पर दौड़ रही स्लीपर बसें सुविधा नहीं, बल्कि खतरे का सबब बनती जा रही हैं। मौके पर मौजूद हमारी टीम ने जब कंपू और रेलवे स्टेशन के पास स्थित बस स्टैंड क्षेत्र में खड़ी कई मॉडिफाइड वीडियो कोच स्लीपर बसों का जायजा लिया, तो हालात बेहद चिंताजनक नजर आए।

बस के अंदर का हाल: चलना तक मुश्किल

अभी हम जिस बस के अंदर खड़े हैं, यहां बर्थ इतने पास-पास लगाए गए हैं कि एक व्यक्ति को करवट बदलने में भी परेशानी हो रही है। गलियारे इतने संकरे हैं कि दो यात्री आमने-सामने से निकल ही नहीं सकते। साफ दिख रहा है कि ज्यादा मुनाफे के लिए सीटों और स्लीपर बर्थ के बीच की दूरी घटा दी गई है। ऐसे में किसी आपात स्थिति में बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो सकता है। बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे यहां सबसे ज्यादा असुरक्षित दिखाई दे रहे हैं।

आग से सुरक्षा के इंतजाम नदारद

लाइव जांच में सबसे गंभीर लापरवाही आग से सुरक्षा को लेकर सामने आई है। नियमों के मुताबिक हर बस में फायर एक्सटिंग्विशर और इमरजेंसी एग्जिट अनिवार्य हैं, लेकिन ज्यादातर बसों में ये इंतजाम या तो मौजूद नहीं हैं या सिर्फ नाम के लिए रखे गए हैं। कई फायर उपकरण खराब हालत में पड़े मिले। खिड़कियों पर लगे पर्दे भी आग लगने की स्थिति में बड़ा खतरा बन सकते हैं। इलेक्ट्रिक फिटिंग्स बिना किसी मानक के की गई हैं, जिससे शॉर्ट सर्किट का जोखिम और बढ़ जाता है।

छत पर लदा अज्ञात सामान

लगभग सभी वीडियो कोच बसों के ऊपर भारी सामान लदा हुआ है। इन बंडलों में क्या है, इसकी न तो यात्रियों को जानकारी है और न ही किसी तरह की जांच होती दिख रही है। क्षमता से ज्यादा सामान लोड किया गया है और बताया जा रहा है कि कई बसें सामान ढोकर ही अतिरिक्त कमाई कर रही हैं। ये बसें शहर के प्रमुख मार्गों से होकर गुजरती हैं, लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई होती नजर नहीं आती।

सीधी बात

विक्रम जीत सिंह कंग, आरटीओ ग्वालियर
प्रश्न:
पहले बसों के बॉडी मॉडिफिकेशन के लिए किसकी स्वीकृति जरूरी थी, और अब क्या बदलाव हुआ है?
उत्तर: पहले बसों के बॉडी मॉडिफिकेशन के लिए क्षेत्रीय परिवहन विभाग (आरटीओ) से स्वीकृति प्राप्त करना जरूरी था। अब, प्राइवेट बॉडी बनाने वालों को यह अधिकार दे दिया गया है कि वे खुद ही सर्टिफिकेट जारी कर सकते हैं, जिसके आधार पर परमिट जारी किया जाता है।
प्रश्न: यदि बसों की बॉडी नियमों के खिलाफ मॉडिफाई की जाती है तो क्या होता है?
उत्तर: यदि बसों की बॉडी नियमों के खिलाफ मॉडिफाई की जाती है और इसकी शिकायत आती है, तो आरटीओ इस मामले में कार्रवाई करता है। नियमानुसार, ऐसी बसों को फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं दिया जाना चाहिए।
प्रश्न: बसों की बॉडी मॉडिफिकेशन के संबंध में आरटीओ की भूमिका क्या होती है?
उत्तर: यदि बसों की बॉडी मॉडिफिकेशन नियमों के विरुद्ध की जाती है, तो उन्हें फिटनेस सर्टिफिकेट जारी न किया जाए और जुर्माने की कार्रवाई की जाए।