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बेटों से ज्यादा है यह बेटी, किडनी डैमेज होने के बाद भी बीमार मां की सेवा में नहीं छोड़ती कोई कसर

दोनों किडनी डैमेज होने के कारण जिन्दगी के लिए संघर्ष कर रहीं लक्ष्मी मेहरा पर उनकी मां के गंभीर बीमारी से पीडि़त होने के कारण दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है

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बेटों से ज्यादा है यह बेटी, किडनी डैमेज होने के बाद भी बीमार मां की सेवा में नहीं छोड़ती कोई कसर

ग्वालियर। बेटे की चाहत में न जाने कितनीं बेटियों को जन्म से पहले गर्भ में ही मार दिया जाता है, लेकिन बेटियां किसी भी रूप मेंे बेटों से कम नहीं होतीं, बल्कि उनसे अधिक संवेदनशील होती हैं। यही कारण है कि बेटियां अपने माता-पिता के सबसे करीब होती हैं और अपनी चिंता किए बगैर उनकी देखभाल करती हैं। कुछ इसी तरह हैं शहर की बेटी लक्ष्मी मेहरा।


दोनों किडनी डैमेज होने के कारण जिन्दगी के लिए संघर्ष कर रहीं लक्ष्मी मेहरा पर उनकी मां के गंभीर बीमारी से पीडि़त होने के कारण दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। परिवार में अन्य कोई सहारा नहीं होने के कारण घर चलाने के साथ अपने और मां के इलाज की जिम्मेदारी भी उन पर है।


वह अपना असहनीय दर्द भूलकर मां की सेवा में जुटी हैं, लेकिन दोनों के इलाज में बहुत पैसा खर्च होने के कारण उन्हें बेहद कठिन दौर से गुजरना पड़ रहा है। इलाज के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता नहीं मिलने से कर्ज लेने को भी मजबूर होना पड़ा है।

आइटीआइ में ट्रैनिंग ऑफिसर लक्ष्मी मेहरा की वर्ष 2015से दोनों किडनी डैमेज हैं। हफ्ते में तीन दिन उन्हें डायलिसिस के लिए जाना पड़ता है, लेकिन मां सुखदेवी की बीमारी के कारण बेहद परेशानी होने से वह दिल्ली के एम्स अस्पताल में अपनी जांच के लिए भी नहीं जा पा रही हैं।

लक्ष्मी अपने इलाज पर ही अब तक 9 लाख रुपए खर्च कर चुकी हैं। कुछ कर्ज भी लेना पड़ा है। दिसम्बर 2017 में मां सुखदेवी की बीमारी का पता चलने के बाद उनके इलाज में वह करीब 1 लाख से ज्यादा खर्च कर चुकी हैं।

डायलिसिस पर 20 हजार प्रति माह खर्च
लक्ष्मी की दोनों किडनी डैमेज हैं, इसलिए उन्हें डायलिसिस कराना पड़ता है। डायलिसिस के लिए प्रतिमाह 20 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं। मां की गंभीर बीमारी सामने आने के बाद वह अपनी बीमारी भूलकर मां की देखरेख में लग गई हैं।

संघर्ष के बाद मिला सरकारी आवास
इलाज का खर्च उठाने के साथ मकान का किराया देने के चलते लक्ष्मी की आर्थिक स्थिति बिगडऩे लगी। उसने सरकारी आवास के लिए आवेदन दिया, लेकिन बहुत संघर्ष करने के बाद आइटीआइ कैम्पस में उन्हें सरकारी आवास मिल सका।

वेतन इलाज में हो रहा खर्च
लक्ष्मी का वेतन मां और स्वयं के इलाज में खर्च हो जाता है। पैसा न होने पर उन्हें आर्थिक सहायता के लिए मंत्री और अफसरों के चक्कर काटने पड़ते हैं। आर्थिक सहायता न मिलने पर उन्हें कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ता है।