
हेलो सर.....मैं स्कूल व कोचिंग में पिछड़ रहा हूं, समझ नहीं आ रहा क्या करूं
ग्वालियर। हेलो सर... मैं कक्षा 11वीं का छात्र हूं और नीट की कोङ्क्षचग कर रहा हूं...परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है... लोन लिया है...पर पढ़ाई में पिछड़ रहा हूं... समझ नहीं आ रहा क्या करूं। यह पीड़ा किसी एक की नहीं, विद्यालय में व कोङ्क्षचग में पढ़ रहे कर रहे सैकड़ों छात्रों की है। ऐसे विद्यार्थी हर दिन प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही उमंग किशोर हेल्पलाइन पर कॉल कर अपनी पीड़ा बयां कर रहे हैं। वहीं विद्यार्थियों की समस्या के निराकरण के लिए नियुक्त टीम सुबह 8 से शाम 8 बजे तक छात्रों की परेशानी सुनकर उन्हें उचित परामर्श भी दे रहे हैं। हेल्पलाइन पर ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना, श्योपुर, शिवपुरी, इंदौर, भोपाल व जबलपुर सहित अन्य जिले के विद्यार्थी व उनके अभिभावक भी कॉल कर रहे हैं।
इस तरह के सवाल पूछ रहे छात्र
- मैं गलत संगति में फंस गया हूं। मैं पढऩा चाहता हूं, अपना अच्छा करियर बनाना चाहता हूं, लेकिन बुरी संगति के चलते दोस्तों को नहीं छोड़ पा रहा हूं। अब समझ नहीं आ रहा है क्या करूं
- मुझे मेरे माता-पिता प्यार नहीं करते हैं। वह छोटे भाई बहन को अधिक प्यार करते हैं।
- मुझे मोबाइल पर गेम खेलने की लत गई है। कई बार पापा-मम्मी मारपीट भी कर चुके हैं। मैं अच्छे से पढक़र अपना करियर बनाना चाहता हूं।
- मोबाइल पर वीडियो देखने व गेम खेलने की आदत पड़ गई है। इससे मैं ठीक ढंग से पढ़ाई नहीं कर पा रहा हूं। मुझे अच्छा करियर बनाना है।
- मेरी अंग्रेजी व गंणित कमजोर है। आखिर उसे किस तरह मजबूत किया जाए।
- कोङ्क्षचग में सुबह से शाम तक कक्षाएं लगती हैं, खेलने के लिए समय नहीं निकाल पाते।
- स्कूल के साथ नीट कोङ्क्षचग में पढ़ाई के लिए लोन ले रखा है, पढ़ाई नहीं कर पा रहा लोन कैसे चुकाएं
- १०वीं कक्षा में गाइड करने वाला कोई नहीं है। समझ नहीं आ रहा क्या करूं।
- कोङ्क्षचग व स्कूल में परफॉर्मेंस के आधार पर ग्रुप बांट दिए, मैं दोस्तों से पिछड़ गया हूं।
- स्कूल टेस्ट में अच्छे अंक नहीं आ रहे हैं,आखिर कैसे बेहतर पढ़ाई की जाए।
छात्रों में डिप्रेशन के यह है कारण
- शारीरिक व मानसिक : अधिकांश छात्रों की उम्र 16 से 20 साल होती है। ऐसे में बच्चे स्कूल व कोङ्क्षचग में वहां के माहौल में ठीक ढंग से नहीं ढल पाते है।
- एकेडमिक : नीट व आईआईटी की तैयारी करने वाले अधिकतर बच्चों का कक्षा 9वीं व 11वीं के बाद ही फाउंडेशन कोर्स में एडमिशन कोङ्क्षचग इंस्टीट््यूट में करा दिया जाता है। ऐसे में बच्चों को 6 से 7 घंटे स्कूल में पढऩे के बाद 4 से 5 घंटे कोङ्क्षचग में भी पढऩा पड़ता है।
- आर्थिक कारण : प्राइवेट स्कूल व कोङ्क्षचग की फीस अधिक होती है। कई बार आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर अभिभावक कोङ्क्षचग अथवा स्कूल की फीस समय पर नहीं भर पाते। इसका बच्चों पर मानसिक दबाव रहता है।
- मार्गदर्शन की कमी : अधिकतर विद्यार्थियों को इंजीनियङ्क्षरग व मेडिकल के बारे में ही पता होता है। स्कूल व कोङ्क्षचग के दौरान जब उन्हें लगता है कि वह इस परीक्षा को अथवा इस विषय को पास नहीं कर पाएंगे तो वे अवसाद में आ जाते हैं।
एक्सपर्ट व्यू : पढ़ाई को लेकर बच्चों पर नहीं बनाना चाहिए दबाव
जेपी मौर्य, सेवानिवृत्त प्राचार्य
सभी अभिभावकों व माता-पिता को अपने बच्चों की योग्यता का शुरू से ही विश्लेषण करना चाहिए कि उनके बच्चे किस क्षेत्र व विषय में भविष्य बना सकते हैं। कक्षा 9वीं से 12वीं तक अभिभावकों को बच्चों पर विशेष नजर रखनी चाहिए और यदि बच्चा कोई प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है तो उससे पढ़ाई संबंधी जानकारी हमेशा समय-समय पर लेते रहना चाहिए और बच्चों पर कभी भी पढ़ाई को लेकर दबाव नहीं बनाना चाहिए। स्कूलों व कोङ्क्षचग में नियमित टेस्ट के आधार पर बच्चों के मानसिक स्तर के आधार पर ग्रुप बना देने से कम अंक लाने वाले बच्चे तनाव में आ जाते, इसे खत्म किया जाना चाहिए। वहीं बच्चों के दिमाग से यह गलतफहमी दूर करनी चाहिए कि विज्ञान विषय में ही ज्यादा संभावनाएं हैं, क्योकि हर विषय में कई संभावनाएं है और इनसे बेहतर भविष्य बनाया जा सकता है।
Published on:
08 Sept 2023 06:05 pm
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