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उम्रकैद कैदियों को समय से पहले नहीं छोड़ा जा सकता

कैदियों को छोडऩे के लिए 2012 में बनी नीति ही लागू रहेगी

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उम्रकैद कैदियों को समय से पहले नहीं छोड़ा जा सकता

ग्वालियर. उच्च न्यायालय ने कहा है कि जेल में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे आरोपी को समय से पहले नहीं छोड़ा जा सकता है, इसके लिए राज्य शासन द्वारा बनाई गई 2012 की नई नीति का पालन करना होगा। न्यायमूर्ति संजय यादव एवं न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने यह महत्वपूर्ण आदेश उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा दिए गए आदेश को खारिज करते हुए दिया है। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में आरोपियों को छोड़े जाने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत को देखते हुए एकलपीठ द्वारा दिए गए आदेश पर मोहर नहीं लगाई जा सकती। उच्च न्यायालय की एकलपीठ द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ राज्य शासन ने अपील प्रस्तुत करते हुए कहा था कि एकलपीठ के आदेश से कई विसंगतियां उत्पन्न हो रही हैं। इस कारण इसे खारिज किया जाए। इस मामले में शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी एवं शासकीय अधिवक्ता पवन रघुवंशी ने पैरवी की।
जेल अधीक्षक ने खारिज कर दिए थे आजीवन कारावास भुगत रहे आरोपियों के आवेदन
राज्य शासन द्वारा आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों के लिए 2008 में जो नीति बनाई थी उसमें अपराधी की सजा 14 साल पूरी होने पर जेल से रिहा करने के आदेश दिए गए थे। इसके बाद 2012 में नई नीति में 20 साल की सजा पूरी होने पर छोड़े जाने के आदेश जारी किए गए। जेल में विभिन्न मामलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आरोपियों द्वारा हरियाणा राज्य विरुद्ध जगदीश के मामले में पारित आदेश के आधार पर जेल अधीक्षक को आवेदन दिए कि उन्हें इस आदेश के आधार पर जेल से छोड़ा जाए, जबकि वे 14 साल से अधिक की सजा काट चुके हैं। जेल अधीक्षक ने सभी के आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिए कि उन्होंने 2012 में लागू की गई नीति के अनुसार अपनी सजा पूरी नहीं की है इसलिए उन्हें नहीं छोड़ा जा सकता। इस आदेश के खिलाफ दोहरे हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सोबरन सिंह ने उच्च न्यायालय में अपील की, जिस पर उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने हरियाणा राज्य विरुद्ध जगदीश के मामले में सजा सुनाए जाने के दिनांक की जो पॉलिसी है उस आदेश के आधार पर जेल अधीक्षक को आरोपियों के आवेदनों पर विचार कर निर्णय लेने के आदेश दिए। एकलपीठ के इस आदेश के खिलाफ शासन ने यह अपील की, जिसे युगलपीठ ने स्वीकार करते हुए उक्त आदेश दिया है।


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