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छह सौ साल पुराने गांव डाभली से बना डबलीराठान

आओ गांव चलें: छह सौ साल पुराने गांव डाभली से बना डबलीराठान माणेखां ने डाला था सबसे पहले यहां डेरा, अब रहते हैं कई जाति, धर्मों के लोग, अनेकता में नजर आती है एकता

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छह सौ साल पुराने गांव डाभली से बना डबलीराठान

डबलीराठान. डाभली नाम से शुरू हुए हनुमानगढ़ जिले के गांव को डबलीराठान के नाम से पहचान बनाने में लम्बा सफर तय करना पड़ा था। इसके लिए ग्राम पंचायत के पूर्व सचिव एवं दो बार रहे उप सरपंच दिवंगत दीवान चंद अरोड़ा की अथक मेहनत को जाता है। 1989 में पंच रहे अशोक गुम्बर एवं अन्य बुजुर्ग बताते हैं कि किसी जमाने इसे डाभली के नाम से जाना जाता था लेकिन बोलचाल की भाषा में इसे डभली फिर ढबली एवं डबली फिर राठों का वाली डबली, वर्तमान में डबलीराठान इसका नाम हो गया। विभिन्न जाति धर्मों के लोग इस कस्बेनुमा गांव में निवास करते हैं। कस्बा विविधता में एकता तथा ऐतिहासिक घटनाक्रमों को भी अपने आंचल में समेटे हुए है। कहा जाता है कि करीब छह सौ साल पहले पंजाब के मुक्तसर तहसील क्षेत्र से माणे खां के नेतृत्व में आए मुस्लिम जत्थे ने यहां अपना पड़ाव डाला, यहां की अनुकूल परिस्थितियों को देखते हुए यहीं बस गया। वर्ष 1947 में देश विभाजन के दौरान पलायन, विस्थापन, पुनर्वास के दौर में कई जातियों के लोग यहां के वाशिंदे होते गए। राठ मुसलमानों के वर्चस्व के कारण डबली नाम के साथ राठान शब्द जुड़ा। वर्तमान में कुम्हार, अरोड़ा, मुसलमान, बावरी, रायसिख, राजपूत, ओड राजपूत, जाट, मेघवाल, नाई, जटसिख, सुनार, ब्राहम्ण, लुहार,नायक, मजहबी, रामदासिया सहित कई जाति एवं धर्मों के लोग निवास करते हुए विविधता में एकता का दर्शन कराते हैंं। इस गांव के 52 कुएं यहां की अनमोल धरोहर थे। जो दशकों तक इलाके की प्यास बुझाते रहे। नहरी पानी एवं वाटर वक्र्स के दौर से कुओं के रखरखाव की तरफ ध्यान नहीं देने पर लगभग सभी कुएं लुप्त हो गए हैं। इनमें से दो कुएं अपने अस्तित्व की अंतिम सांसें ले रहे हैं।


एक वक्तथा जब घग्घर नदी का पानी गांव के पास से होकर निकलता था परंतु वक्त बीतने के साथ घग्घर का दायरा सिमटता गया। गांव से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित थेहड़, जो किसी जमाने में घग्घर के बहाव एरिया में था, की खुदाई से कालीबंगा के समान सभ्यता होने के अवशेष मिलने की संभावनाएं भी हैं। गांव का अन्य अजूबा 25 फीट व्यास की बेरी का पेड़ है, जो इतिहास के थपेड़ों को सहते सहते अपना अस्तित्व खो चुका है। किसी जमाने में इस वृक्ष की पत्ती एवं लकड़ी जलाना भी पाप समझते थे। परंतु इस विरासत से भी नई पीढी को कोई सरोकार नहीं है। इस बेरी के वृक्ष के साथ किंवदंती जुड़ी हुई थी कि गुरूनानकदेव जी जब देशाटन पर इधर से गुजर रहे थे तो उन्होने अपने शिष्यों के साथ यहां विश्राम किया था। वर्तमान में स्थित स्टेट बैंक के सामने की जगह पक्षियों के लिए एक परिवार की बदोलत चुग्गा डालने का चौक बना हुआ था। जहां ग्रामीण रोजाना पक्षियों के लिए चुग्गा डाला करते थे। इस एरिया में बाजार बन जाने एवं चुग्गा डालने की परंपरा लुप्त होने पर चुग्गा स्थल का नामोनिशान नहीं है। ग्रामीण बताते हैं कि इस स्थान पर जयपुर राज घराने की महारानी गायत्री देवी द्वारा चुनावी सभा को सम्बोधित किया गया था। वर्तमान में पंचायत भवन एवं बालिका माध्यमिक विद्यालय के स्थान पर कच्चा किला होने की बात भी कही जाती है। कस्बे के वार्ड 6 में स्थित पीर बाबा की दरगाह सैंकड़ों वर्ष पुरानी है, संम्प्रादायिक सद्भाव की प्रतीक इस दरगाह पर प्रत्येक गुरुवार को सभी जाति धर्मों के लोग मत्था टेक मनौतियां मांगते हैं। वर्ष 2000 में आठ अप्रैल को जम्मू कश्मीर में आंतकवादियों से हुई मुठभेड़ में शहीद हुए बीएसएफ के हैड कांस्टेबल चमकौर सिंह का स्मारक शहादत की कहानी कह रहा है। आजादी से पूर्व चिकित्सा की सुविधाओं से महरूम इस इलाके में भारत पाक विभाजन के बाद पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए गुम्बर परिवार के मुखिया वैद्य जट्टूराम गुम्बर ने आयुर्वेद एवं युनानी चिकित्सा पद्धिति से लोगों का इलाज कर इलाके में अपनी पहचान बनाई। उसके बाद उनके पुत्र वैद्य लधुराम गुम्बर ने भी इलाके के नाड़ी वैद्य के रूप में प्रसिद्धि पाकर लोगों का इलाज किया था। वहीं एलोपैथी के क्षेत्र में निजी चिकित्सक रंगलाल ठक्कर, एमएल बतरा एवं 1970 दशक में एमबीबीएस डॉ. एम.पी.सिंह शेखावत की निजी ओर सरकारी सेवाओं को भी भुलाया नहीं जा सकता है।


दो ग्राम पंचायतें

डबलीराठान गांव में दो ग्राम पंचायतें डबलीवास मौलवी एवं डबलीवास कुतुब है। कमाना गांव डबलीवास चुगता, नुरपुरा गांव डबलीवास सरदारा, बावरियों वाली ढाणी डबलीवास मिढा रोही, भांभूवाली ढाणी डबलीवास पेमा चैना के नाम से जानी जाती है। डबलीराठान मौलवी वास के प्रथम सरपंच सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश बद्रीप्रशाद व्यास (बीकानेर) रहे हैं। उसके बाद क्रमश: लेख राम भांभू, रिटायर्ड तहसीलदार सूरज कर्ण हर्ष (बीकानेर), चंद्रभान अरोड़ा आदि सूझवान सरपंचों का नेतृत्व मिला है। अनेक संभावनाओं के बावजूद भी गांव विकास की द्दष्टि से पिछड़ा हुआ है। वर्ष 1982 से 91 के दौर में सरपंच चंद्रभान अरोड़ा तथा दीवान चंद अरोड़ा के कार्यकाल में वर्तमान की फोरलेन मार्ग पर राज्य वेयर हाउस की सौगात बड़ी उपलब्धि साबित हो रही है। वर्ष 1995 दशक में पंचायतों के परिसिमन एवं आरक्षण के दोर के बाद तत्कालीन सरपंच रामेश्वर वर्मा के कार्यकाल में 1996 में यहां उपतहसील स्थापित हुई। प्रथम महिला सरपंच के रुप में इंद्र जीत कौर, उसके बाद अब्दुल हक राठ एवं इसके बाद फिर महिला सिमरजीत कौर सरपंच रही। वहीं तत्कालीन विधायक आदराम के प्रयास से वर्ष 2013 में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का दर्जा मिला। सरपंच करमा बानो के कार्यकाल में नये चिकित्सालय भवन का निर्माण शुरू हुआ। हालांकि यह आज भी अधूरा है। वर्तमान में सरपंच बेअंत कौर के कार्यकाल में उम्मीदों का पिटारा बहुत बड़ा होने से ग्रामीणों को स्वतंत्र मंडी यार्ड का दर्जा मिला। शहीद चमकौर सिंह राउमावि में विज्ञान, कृषि, वाणिज्य, व्यवसायिक शिक्षा का अभाव अखर रहा है। सत्र 2022-23 से अंग्रेजी माध्यम विद्यालय एवं बालिका स्कूल को क्रमोन्नत कर उच्च माध्यमिक के दर्जा की सौगात मिली है।