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बच्चे को पहले हो चुका है डेंगू तो दूसरी बार बढ़ सकती है दिक्कत, सावधानी बरतें

मौसम में बदलाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण बच्चों में सर्दी, जुकाम, खांसी, बुखार आदि की शिकायत ज्यादा देखी जाती है। इन्हें हल्के में न लें क्योंकि ये डेंगू के लक्षण भी हो सकते हैं। एडीज प्रजाति के मच्छर से फैलने वाली डेंगू बीमारी के एक चौथाई मामले छोटे और बड़े बच्चों में देखने को मिल रहे हैं। लक्षण के रूप में बुखार, सिरदर्द, पेट में दर्द, उल्टी और हाथ-पैरों में दर्द होता है। उल्टी न रुकें, पेट में दर्द ज्यादा हो, बेहोशी, शरीर में कहीं से ब्लीडिंग हो जाए तो गंभीरता से ध्यान दें।

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Divya Sharma

Nov 30, 2019

बच्चे को पहले हो चुका है डेंगू तो दूसरी बार बढ़ सकती है दिक्कत, सावधानी बरतें

बच्चे को पहले हो चुका है डेंगू तो दूसरी बार बढ़ सकती है दिक्कत, सावधानी बरतें

103 डिग्री फैरनहाइट से अधिक बुखार है तो मलेरिया, मेनिनजाइटिस, बोन व बैक्टीरियल इंफेक्शन की आशंका हो सकती है।
इस मौसम में बच्चे को बुखार आने के साथ गला खराब हो, सिर में दर्द, हाथ व पैरों में दर्द की शिकायत हो तो हल्के में न लें। अक्सर लोग इन्हें वायरल फीवर के लक्षण समझकर एंटीवायरल दवाएं देते हैं जिससे बुखार तो कम हो जाता है लेकिन डेंगू बुखार में जटिलता बुखार उतरने के बाद ही शुरू होती है। इस तरह समस्या धीरे-धीरे गंभीर हो जाती है और इलाज के लिए देरी से पहुंचने पर जान को जोखिम बढ़ जाता है।
बढ़ती गंभीरता
जिस बच्चे को पहले कभी डेंगू हो चुका हो तो उसमें दूसरे बार यदि डेंगू होता है तो गंभीरता अधिक हो जाती है। इसलिए सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसा ही कुछ होता है गर्भावस्था में। महिला को यदि प्रेग्नेंसी में डेंगू हुआ हो और जन्म लेने के बाद बच्चे को डेंगू होता है तो इसमें यह दूसरी बार होने वाला डेंगू माना जाएगा। पहली बार वह गर्भावस्था के दौरान डेंगू का सामना कर चुका होता है।
इलाज का तरीका
डेंगू में शरीर के अंगों को रक्त की पूर्ति नहीं होती है जिससे इनकी कार्यप्रणाली धीमी पड़ने लगती है। इलाज में आइवी फ्लूड के जरिए शरीर में तरल की मात्रा को संतुलित करते हैं। रोग की शुरुआत है तो बच्चे को पानी, ओआरएस, नींबू व नारियल पानी, छाछ आदि खूब पिलाएं। 6 माह से कम उम्र का शिशु है तो नियमित ब्रेस्टफीडिंग कराएं और पानी पिलाते रहें।
सिर गरम यानी बुखार नहीं ...

कई बार अभिभावक बच्चे का सिर हल्का गर्म देखकर उसे दवाई दे देते हैं जो कि गलत है। बुखार को मापें, 100 डिग्री फैरनहाइट तक या इससे नीचे बुखार है तो यह रोगों से लडऩे की क्रिया है। वहीं 100 डिग्री फैरनहाइट से ऊपर बुखार आने के साथ दौरे आएं तो प्लेन पैरासिटामॉल देकर उसके कपड़े ढीले कर पंखे के नीचे लेटा देने से बुखार में कमी आती है। डेंगू की स्थिति में बुखार उतरने का इंतजार न करें। बुखार उतरते ही जटिलताओं की आशंका बढ़ती हैं।
असल में बच्चे के दिमाग का विकास दो साल और बाकी पूरे शरीर का विकास 20 साल तक होता है। ऐसे में दिमाग का कार्य अधिक होने और यहां की हड्डियां कोमल होने से यहां का तापमान थोड़ा ज्यादा रहता है।
ऐसे करें बचाव
डेंगू से बचाव के लिए फिलहाल कोई वैक्सीन नहीं है। इसपर शोध चल रहा है। पुख्ता बचाव मच्छरों से दूरी है। इसके लिए बच्चों को ऐसे समय खेलने के लिए बाहर न भेजें जब आसपास मच्छर ज्यादा हों। पूरी बाजू के कपड़े और मोजे पहनाकर रखें। सोते समय मच्छर भगाने वाले क्रीम का प्रयोग करें। घर या आसपास पानी इकट्ठा न होने दें। पेड़ पौधों की छंटाई नियमित करते रहें।
ध्यान रखें
बुखार शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसलिए बुखार होने पर कभी भी कोल्ड स्पॉन्ज (ठंडी गीली पट्टी करना) न करें। यह शरीर पर विपरीत असर करता है।
डिजिटल थर्मामीटर से घर पर ही तुरंत बच्चे के शरीर का तापमान पता कर सकते हैं।
98.6 डिग्री फैरनहाइट शरीर का सामान्य तापमान है।
वायरल फीवर को हल्के में न लें।
एक्सपर्ट: डॉ. बी. एस. शर्मा, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ, जेके लोन अस्पताल, जयपुर