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प्राण चिकित्सा में नाडिय़ों के ऊर्जा केंद्र को सक्रिय कर होता है उपचार

मन और शरीर के संतुलन के लिए प्राण चिकित्सा की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसे शरीर की आंतरिक ऊर्जा कहते हैं जो शरीर में मौजूद कई प्रमुख नाडिय़ों में पाई जाती है। रीढ़ की हड्डी और दिमाग इसका प्रमुख भंडार है। प्राणों का स्वरूप कई कारणों से निर्मित होता है। इसमें खानपान, अन्य प्राणियों व पदार्थों से उसका संबंध व संपर्क आदि अहम रूप से शामिल हैं। इसमें व्यक्ति के विचारों से लेकर व्यवहार, आदत, मननशीलता साथ मिलकर कार्य करते हैं।

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Divya Sharma

Oct 25, 2019

प्राण चिकित्सा में नाडिय़ों के ऊर्जा केंद्र को सक्रिय कर होता है उपचार

प्राण चिकित्सा में नाडिय़ों के ऊर्जा केंद्र को सक्रिय कर होता है उपचार

प्राणों के स्तर का पता व्यक्ति के स्वस्थ दिखने और महसूस करने से लगाया जा सकता है। व्यक्ति जब मानसिक या शारीरिक किसी एक स्तर पर कमजोर हो तो उसके प्राण के स्तर में कमी पाई जाती है। आयुर्वेद के विभिन्न संहिताओं में प्राण को एक तरह से ऊर्जा का पर्याय माना गया है। ऐसे में किसी प्रकार की बीमारी से ग्रस्त होने, तनाव या आसपास का माहौल यदि नकारात्मकता से भरा होगा तो व्यक्ति की ऊर्जा प्रभावित होगी। ऐसे मामलों में प्राण चिकित्सा काफी कारगर मानी गई है। जानें इस बारे में -
ऊर्जा के केन्द्र हैं चक्र
प्राण चिकित्सा पद्धति के अनुसार मानव शरीर में मौजूद सप्तचक्र (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा व सहस्रार) ऊर्जा की कुंडली कहलाते हैं। असल में हमारे शरीर में लगभग ७२ हजार नाडिय़ां होती हैं। इनमें शरीर का संचालन करने वाली प्रमुख १२ नाडिय़ां दिमाग में होती हैं। आध्यात्मिक रूप से तीन नाडिय़ां ईडा, पिंगला व सुषुम्ना में भी ईडा व पिंगला के सक्रिय होने के बाद ही सुषुम्ना जागृत होती है जो कि सप्तचक्रों को सक्रिय करना प्रारंभ करती है। जैसे कि ऊर्जा प्राण का अभिप्राय है, ऐसे में रोगमुक्त होने के साथ ही यदि शरीर के सभी चक्र नियमित रूप से कार्य करेंगे तो मन और शरीर के बीच प्राणक्रिया सुचारू रहेगी। व्यक्ति के रोगग्रस्त होने से इस क्रिया का तालमेल गड़बड़ा जाता है।
सकारात्मक सोच बनाएं
आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति का मन यदि शुद्ध नहीं है तो उसके व्यवहार व सोच में सकारात्मकता नहीं आएगी। प्राण चिकित्सा के तहत मंत्रोच्चारण, ध्यान, ऊं का उच्चारण, सच बोलना, संगीत थैरेपी से शरीर रिलेक्स होता है। रोगमुक्त रहने के लिए खुश रहना अहम है और इसके लिए खुश व्यक्ति से मेलजोल रखना और अच्छे विचार रखना जरूरी है।
प्राण चिकित्सा के प्रकार
प्राणायाम : सांस लेने व छोडऩे की क्रिया के दौरान दिमाग को काफी आराम मिलता है। ऐसे में दिमाग में मौजूद नाडिय़ों में रक्तप्रवाह सुचारू होने से सप्तचक्रों में ऊर्जा का संचालन होता है।
योग : शरीर के शिथिल रहने से कई रोगों की उत्पत्ति होती है। संतुलित गति में की गई क्रियाओं (योग व सूक्ष्म व्यायाम) से ऊर्जा के केन्द्रों पर दबाव पडऩे से ये उत्तेजित होते हैं व रोगों की आशंका घटती है। प्राण ऊर्जा का संचार सही रहता है।
स्पर्श : आयुर्वेद के अनुसार जब हम अपनी हथेलियों से अपना ही शरीर छूते हैं तो उस जगह पर विद्युतीय तरंगें प्रवाहित होती हैं, यह महसूस भी होता है। यह एक तरह से हीलिंग का काम करता है। इसलिए जब भी कहीं दर्द महसूस हो तो स्पर्श करें। एक्यूप्रेशर पद्धति इसका एक बेहतरीन विकल्प है। इसमें शरीर की प्रभावित जगह पर स्पर्श के साथ नियंत्रित ताकत से दबाव दिया जाता है।
एक्सपर्ट : डॉ. जे. एस. त्रिपाठी, प्रोफेसर, कायाचिकित्सा , इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, बीएचयू, बनारस