
नींद से जुड़ी कुछ ऐसी भ्रांतियां जो आपकी सेहत को डाल सकती हैं खतरे में
नींद हमारे स्वास्थ्य, मनोदशा और शरीरिक विकास के लिए बहुत जरूरी है। नींद पूरी न होने पर हमारी अगली सुबह चिड़चिड़ी और सुस्ती के साथ शुरू होती है। कभी-कभी तो ऐसा चल जाता है लेकिन लंबे समय तक ऐसा होता है तो इसका हमारी कार्य क्षमता और प्रदर्शन पर गहरा असर पड़ता है। इतना ही नहीं नींद की कमी से गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भीं हो सकती हैं, इसमें दिल का दौरा पडऩा और मृत्यु दर (Early Mortality) में वृद्धि शामिल है। नींद की आदतों और उससे जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि अच्छी नींद के बारे में आम लोगों को जागरूक किया जाना बेहद जरूरी है। हाल ही स्लीप हैल्थ नामक पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में सामने आया कि नींद के बारे में लोगों में समुचित जानकारी का अभाव है और वे भ्रांतियों को ही सच मानते हैं। अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने नींद की गलत धारणाओं की एक विस्तृत सूची बनाई जिसमें २० से ज्यादा मिथकों को शामिल किया गया था। इन मिथकों को उनकी अलग-अलग विशेषताओं के आधार पर दो श्रेणियोंमें बांटा गया था। पहला नींद से जुड़े इन मिथकों में कितनी सच्चाई थी और दूसरा उनका हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? सूची में शामिल ऐसी ही ८ सबसे हानिकारक और सबसे कॉमन मिथकों के बारे में हम आपको बता रहे हैं।
मिथक 01. सेहतमंद रहने के लिए 5 घंटे की नींद काफी है
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के आधार पर नींद से जुड़े इस मिथक को सबसे हानिकारक मिथक बताया है। उनका कहना है कि ज्यादातर वयस्कों को लगता है कि उनके लिए सामान्य रूप से ५ घंटे या उससे कम की नींद लेने पर भी वे स्वस्थ रहेंगे। जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं। लगातार कम नींद लेना और असामान्य निद्रा चक्र या नींद न आना हमारे शरीर पर दूरगामी हानिकारक प्रभाव डालते हैं। ऐसा करने से उच्च रक्तचाप और दिल के दौरे का जोखिम बढ़ जाता है। साथ ही हमारे दिमाग की कार्य क्षमता घट जाती है और हम अवसाद का भी शिकार हो सकते हैं। इतना ही नहीं लगातार कम नींद लेने से मधुमेह और मोटापे का खतरा भी बढ़ जाता है। अमरीकी रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC) ने वयस्कों के लिए कम से कम सात से नौ घंटे की नींद लेने की सलाह दी है।
मिथक 02. सोने से पहले टीवी देखने से जल्दी आती नींद
शोधकर्ताओं को इस मिथक ने काफी हैरान किया कि सोने से पहले टीवी देखने से नींद अच्छी कैसे आ सकती है? वैज्ञानिकों का कहना है कि सोने से कम से कम एक घंटा पहले मोबाइल, लैपटॉप, टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का बिल्कुल उपयोग नहीं करना चाहिए। शोधकर्ताओं का कहना है कि इन डिवाइस से निकलने वाली नीली रोशनी हमारी नींद की दुश्मन है। क्योंकि इससे दिमाग को यह संदेश मिलता है कि उसे सोना नहीं है और हमारा दिमाग न चाहते हुए भी जागने को मजबूर रहता है।
मिथक 03. दिन में सोना भरपाई नहीं कर सकता
शोधकर्ताओं को पता लगा कि जो लोग रात की नींद पूरी करने के लिए दिन में सोते हैं वे इसे स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा मानते हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। दरअसल हमारा शरीर सूर्योदय और सूर्यास्त के बाद सोने और जागने के लिए अभ्यस्त होता है। इस लय का बरकरार रहना बेहद जरूरी है। इसलिए आपके स्वास्थ्य के संदर्भ में यह मायने नहीं रखता कि आप दिन में कितना सोते हैं। अध्ययन के लेखक कहते हैं कि जो व्यक्ति रात की शिफ्ट में काम करते हैं, वे अक्सर सर्कैडियन रिदम (SCARDIAN RHYTHEM) डि-सिंक्रोनाइज़ेशन और कम गुणवत्ता वाली नींद की शिकायत करते हैं। साथ ही उन्हें अवसाद और मधुमेह सहित अन्य स्वास्थ्य परेशानियों का भी हाईरिस्क होता है। अध्ययन की लेखिका रेब्बेका रॉबिन्सन का कहना है कि रात में ड्यूटी करने वालों या लगातार जागने वालों में हैल्थ रिस्क क्लस्टर के लक्षण दिखाई देते हैं।
मिथक 04. आंखें बंद होना ही नींद नहीं होती
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि केवल आंखें बंदकर शांत पड़े रहना नींद नहीं है। यह स्वयं से झूठ बोलने जैसा है। ऐसा करते समय हमें महसूस होगा कि हम आराम का अनुभव कर रहे हैं, भले ही आपको नींद न आ रही हो। शोधकर्ताओं ने इस मिथक को प्रमुख रूप से गलत और संभावित रूप से हानिकारक माना है। दरअसल जब हम स्वाभाविक रूप से सोते हैं तो हमारा दिमाग, दिल और फेफड़े जैसे अंग अलग तरह से काम करते हैं जबकि जागते रहने की अवस्था में ये अलग तरह से काम करते हैं। इसलिए आप आंख बंदकर अगर बिस्तर पर लेटे हुए हैं तो इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप सो रहे हैं क्योंकि आपका शरीर अब भी जाग रहा है।
मिथक 05. कभी भी कहीं भी सोना सेहत की निशानी है
लोगों में यह भी एक भ्रम है कि अगर कोई व्यक्ति कभी भी और कहीं भी सो जाने में सक्षम है तो यह स्वस्थ नींद की निशानी है। वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। दरअसल, एक स्वस्थ शरीर सोने में कुछ मिनटों का ही समय लेता है। लेकिन बिस्तर पर जाते ही सो जाने वालों की यह आदत इस बात की ओर भी इशारा हो सकती है कि उनमें पर्याप्त नींद की बहुत कमी है। यह कइयों को किसी गॉड गिफ्ट जैसा लग सकता है लेकिन गहराई से सोचने पर हम पाएंगे कि हवाई सफर या ऑफिस मीटिंग्स में तुरंत सो जाने का साफ मतलब है कि हम नींद की कमी से जूझ रहे हैं। यह बेहद खतरनाक मिथक है क्योंकि हमें लगता है हम स्वस्थ हैं जबकि ऐसा होता नहीं है।
मिथक 06. सोने से पहले धूम्रपान करने से नींद अच्छी आती है
अक्सर कुछ लोग रात में सोने से पहले धूम्रपान करने, शराब पीने या अन्य किसी प्रकार का नशा अथवा बुजुर्ग पुरानी खांसी की दवा पीकर सोना पसंद करते हैं। उनकी धारणा होती है कि इससे उन्हें अच्छी नींद आएगी। लेकिन वास्तव में इससे अगली सुबह और भी बुरी शुरुआत होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसा करना न केवल गलत है बल्कि सेहत के लिहाज से भी यह बहुत खतरनाक है। यह वास्तव में नींद के लिए किसी भयानक सजा की तरह है। यह आदत स्लीप एपनिया का कारण बन सकती है।
मिथक 07. दिमाग-शरीर कम नींद के साथ काम करने को ट्रेंड हो सकते हैं
ऐसा सोचने वालों की भी इस दुनिया में कमी नहीं है। ऐसा सोचने वालों को लगता है कि थोड़े कठोर प्रशिक्षण से वे अपने शरीर और दिमाग को कम नींद लेने के बावजूद लगातार काम करने के लिए ट्रेंड कर सकते हैं और अपर्याप्त नींद के परिणामों से बच सकते हैं। एयर कंडीशन के बीच गर्मागर्म कॉफी पीकर हम कम नींद लेकर भी ज्यादा देर तक काम कर सकते हैं। लेकिन असल में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि विज्ञान हमारे इस सिद्धांत के विपरीत काम करता है। इसलिए 5 से 6 घंटे से कम की नींद लेना शरीर को जल्द ही किसी काम का नहीं छोड़ता।
मिथक 08. साथी के खर्राटे लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता
सोते समय जीवन साथी, पार्टनर या दोस्त अथवा भाई-बहन के खर्राटे हमारी नींद में कोई खलल नहीं डालते या इसका हमारे स्वास्थ्य पर कोई खास असर नहीं पड़ता। अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो आप पूरी तरह से गलत हैं। जोर से खर्राटे लेना वास्तव में स्लीप एपनिया के सबसे आम लक्षणों में से एक है। यह एक ऐसा विकार है जिसमें किसी व्यक्ति की सोते समय सांस भी रुक सकती है। खर्राटे यह संकेत भी देते हैं कि रात में सोते समय हमारी नाक से सांस लेने का वायु मार्ग अवरुद्ध हो रहा है। हालांकि, सभी खर्राटे स्लीप एपनिया का संकेत नहीं है।
स्लीप एपनिया नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। इसलिए यदि आप जोर से खर्राटे लेते हैं, साथ ही अगर आप थकान या नींद की कमी से भी पीडि़त हैं तो खर्राटे के बीच सोना आपके लिए सेहतमंद विकल्प नहीं है। अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त होने पर, उच्च रक्तचाप होने या धूम्रपान करने सहित अन्य खराब स्वास्थ्य स्थितियों वाले व्यक्तियों में स्लीप एपनिया का खतरा बढ़ जाता है।
Updated on:
03 Jul 2020 03:24 pm
Published on:
03 Jul 2020 03:21 pm
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