
basant panchami 2018 date and shubh muhurta
गोविंद चौहान। होशंगाबाद. वास्तव में बसन्त का आगमन प्रकृति का उल्लास पर्व है। बसंत में मौसम खुशनुमा और ऊर्जावान होता है, न ज्यादा ठंडा होती है और न गर्म। गुलाबी धूप के साथ प्रकृति के बीच बासन्ती छटा सौंदर्य की अलख जगाता है। प्रकृति में सनी फूलों की मादक गंध, घर आंगन, खेत, खलिहान में नये सृजन का अहसास कराती है। इसीलिए तो कवियित्री महादेवी वर्मा ने लिखा है....
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत,
मैं अग-जग का प्यारा बसंत।
मेरी पगध्वनि सुन जग जागा,
कण-कण ने छवि मधुरस मांगा।।
नव जीवन का संगीत बहा,
पुलकों से भरा दिंगत।
मेरी स्वप्नों की निधि अनंत,
मैं ऋतुओं में न्यारा बसंत।
बसंत के आने का मतलब है, सर्दियों की लंबी रातों की विदाई और गुनगुने मौसम का ख़ूबसूरत एहसास। बसंत के आने का मतलब है बहारों का आना, परिंदों की चहचहाहट, पेड़ों पर नई कोपलों का आना और रंग बिरंगे फूलों से प्रकृति का संवरना, अप्रवासी पक्षियों का अपने घरों को लौटना। आम में अमराईयों का आना, कोयल की मधुर आवाज का कानों में रस घोलना और फूलों पर भंवरों का मंडराना। बसंत के आते ही क़ुदरत मानो अंगड़ाई लेती है, सर्दियों का आलस पीछे छोड़ जि़ंदगी को नई रफ़्तार देती है. कलियां खिल उठती हैं, फूल महकने लगते हैं।
यही कारण है कि इस दौरान रचनात्मक व कलात्मक कार्य अधिक होते हैं। इस दौरान प्रकृति लोगों की कार्यक्षमता बढ़ा देती है, और लोगों की सृजन क्षमता बढ़ जाती है। वसंत को ऋतुओं का राजा कहा गया है। इस ऋतु में चारों तरफ रंग-रंगीले फूलों से धरती सज जाती है. खिले हुए फूल बसंत के आगमन की घोषणा करते हैं। खेतों में फूलों से लदी सरसों हवा के झोकों के साथ ऐसी मोहकता बिखेरती है कि देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार बसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है। कवियों ने बसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है। पेड़ उसके लिए नव पल्लव का पालना डालते है, फूल वस्त्र पहनाते हैं पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है। भारतीय संगीत, साहित्य और कला में बसंत का महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत में एक विशेष राग बसंत के नाम पर बनाया है जिसे राग बसंत कहा जाता हैं।
भगवान् कृष्ण ने स्वयं गीता में कहा है- में सामवेद के गीतों में बृहत्साम हूं, छंदों में गायत्री हूं , महीनों में मार्गशीष अगहन और ऋतुओं में फूल खिलाने वाली बसंत ऋतु हूं।
शीशम के पेड़ हरी कोमल पत्तियों से ढक जाते हैं। केसरिया रंग प्रकृति के रंगों में घुलमिल जाता है, सेमल के फूल अपनी अलग छटा बिखरने लगते हैं, आमों पर छाई अमराइयों की खुशबू के बीच कोयल की सुरीले स्वर कानों में रस घोलन लगते हैं। वहीं मार्च के आते-आते बसंत का यौनन ढाक के पत्तों और फूलों से झांकने लगता है। नारंगी-लाल रंग के फूलों से लदे हुए ढाक के पेड़ प्रकृति को और शोभायमान बनाते देते हैं। पौधो पर गुंजन करते भंवरे रंग बिरंगे फूलों की गंध-रस के आनंद में डूब जाते हैं। चमेली की खिली हुई कलियां अपनी सुगंध से हवा को सुगंधित करती हैं. वहीं आकाश झील की तरह नीला हो जाता है, और सूर्य-चन्द्रमा भी बसंत के स्वागत में शीलता बिखेरने लगते हैं।
ऐसे में आप भी दूर नहीं जा सकते तो अपने कऱीब ही किसी गांव में जाकर कुछ वक्त इन क़ुदरती नज़ारों के बीच गुज़ारिए। जि़ंदगी के तमाम रसों से सराबोर इस मौसम को अपने नैनों में संजोइए, दिल से महसूस कीजिए प्रकृति की इस अनुपम देन को। मैं हर वर्ष आता हूं, और आता ही रहूंगा क्योंकि मैं बसंत हूं....।
Published on:
20 Jan 2018 09:00 am
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