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‘मिट्टी के मोलÓ से कम हो गया देशी फ्रिज का क्रेज

मटका और सुराही निर्माण में आई कमी, प्रजापति समाज की सरकार से मांग- मटका व सुराही को दें लघु कुटीर उद्योग का दर्जा

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Keep water safe and cool in an earthen pot

Keep water safe and cool in an earthen pot

सोहागपुर। सोहागपुर की सबसे पुरानी और आज भी कायम पहचान हैं, यहां के मटके और सुराही। जो कि अंग्रेजों के शासन काल में मुंबई तक गोरों की प्यास बुझाने पहुंचती थी तथा धूम तो सात समंदर पार तक पहुंच चुकी थी। लेकिन अब यही पहचान सीमित हो गई है तथा शासन व प्रशासन की अपेक्षा के चलते यह कारोबार सिमट रहा है।
मटका व सुराही निर्माण करने वाले प्रजापति समाज के लोगों ने बताया कि किसी समय यह कारोबार हुआ करता था, लेकिन अब मजबूरी में की जाने वाली मजदूरी हो चला है, क्योंकि उदरपोषण के लिए कुछ तो करना पड़ेगा ही। यदि सरकार सुराही व मटका निर्माण प्रक्रिया को विधा व कला माने तो माटी कला बोर्ड के माध्यम से प्रजापति अर्थात कुम्हार समाज के मिट्टी के बर्तन निर्माताओं को विभिन्न सहायताओं सहित ऋण प्राप्ति जैसी सुविधा मिल सकती है। मिलती भी है, लेकिन इसके लिए प्रदेश की राजधानी के चक्कर काटने पड़ते हैं, जबकि विकेंद्रीकरण प्रक्रिया के तहत जिला अथवा ब्लॉक मुख्यालय स्तर पर भी मिट्टी कला बोर्ड के कार्यालय खोले जाने चाहिए। फिलहाल तो यह कारोबार सिमट रहा है तथा युवा पीढ़ी धीरे-धीरे इस पुश्तैनी रोजगार व धंधे से विमुख हो रही है।

भर जाती थी लगेज बोगी
प्रजापति समाज के वरिष्ठजनों सहित नगर के अन्य जानकारी भी बताते हैं कि किसी समय गर्मी के मौसम में प्रतिदिन सुबह की पैसिंजर व शटल ट्रेन की लगेज बोगियां मात्र सुराही से ही भर जाया करती थीं। तथा इलाहाबाद से लेकर बंबई तक के प्राय: सभी बड़े बाजारों में सोहागपुर की सुराही भेजी जाती थी। लेकिन अब तो जिले के बाजारों में ही सोहागपुरी सुराही की मांग बहुत कम हो गई है। यद्यपि जानकार लोग जरूर यदि पचमढ़ी, मढ़ई आदि क्षेत्रों में आते हैं तो सोहागपुर में रुककर सुराही जरूर खरीदकर ले जाते हैं।

बढ़े मिट्टी के दाम
प्रजापति समाज के मुट्टा प्रजापति, हेमंत प्रजापति आदि ने बताया कि मिट्टी के दाम बढऩे के कारण इस साल मटका व सुराही निर्माण का कार्य धीमा हो गया है। मुट्टा ने बताया कि गत वर्ष तक ढाई से तीन हजार रुपए में एक ट्राली मिट्टी मिल जाती थी। अब वही मिट्टी साढ़े चार हजार रुपए में एक ट्राली मिल रही है। यकायक ही लगभग दो हजार रुपए प्रति ट्राली की हुई इस वृद्धि से मटका व सुराही निर्माण कार्य पर प्रभाव बुरा पड़ा है। तथा प्रत्येक यूनिट पर काम भी कम किया गया है और लोगों ने कम संख्या में दोनों बर्तन बनाए हैं। और जो बनाए भी हैं, तो उनके दाम में गत वर्ष की अपेक्षा अधिकतम 10 रुपए की बढ़ोतरी ही की जा सकी है, क्योंकि दाम में अधिक बढ़ोतरी पर बर्तन बिकना मुश्किल हो जाएगा।