
Madhya Pradesh's elderly Wrestler dies
सोहागपुर। कुछ दिनों पूर्व की ही बात है जब क्षेत्र के शेर दादा के नाम से ख्यात अखाड़ा परंपरा के स्वयं सिद्ध हस्ताक्षर कन्हैयालाल चौरसिया का देहांत 100 वर्ष की करीब पहुंचने के पूर्व हुंआ। वहीं रविवार को गुड़ी पणवा के दिन बनेटी व कुश्ती कला परंपरा के ख्यात संवाहक व संरक्षक शंकरलाल पटवा का करीब 105 वर्ष की आयु में निधन हो गया। स्वर्गीय पटवा की अंतिम यात्रा सोमवार को धूमधाम से निकाली गई, जिसमें पहलवान व दादा के परिजनोंं ने शेर नृत्य कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
दादा के पुत्र राकेश पटवा के अनुसार अंतिम दिनों में भी काफी अस्वस्थ होने के पूर्व उनके पिता अखाड़ों की ही बातें किया करते थे तथा 100 साल की उम्र में भी जहां कहीं कुश्ती होती थी, वहां जरूर जाते थे तथा पहलवानों को टिप्स दिया करते थे। पटवा दादा को वर्षों से जानने वाले तो बताते हैं कि जब कभी कुश्ती के दौरान खास बाजे बजा करते थे तो दादा अपने साथ में रखी लाठी को बनेटी का रूप देकर घुमाने लगते थे तथा 100 साल की उम्र में भी बिना बाजों की ताल से भटके शेर नृत्य करते थे। क्षेत्र के कुश्ती कला संरक्षक डॉ. अरविंद सिंह चौहान व क्षेत्र के इतिहास की खासी जानकारी रखने वाले पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष अभिलाष सिंह चंदेल के अनुसार सोहागपुर ने स्वर्गीय पटवा को नहीं खोया है, बल्कि कुश्ती कला का एक पूरा युग सोहागपुर से बीत गया है। चंदेल ने बताया कि पूरी शवयात्रा में कुश्ती के समय बजाए जाने वाले बाजे से कहरवा की धुन बजाई गई, जो कि पहलवानों में जोश भरने के लिए बजाई जाती है।
अखाड़े ले गए पार्थिव देह
पटवा दादा की अंतिम यात्रा को रेलवे लाइन करीब रामप्रसाद वार्ड स्थित उनके निवास से निकालकर हनुमान व्यायाम शाला रेलवे स्टेशन के करीब लाया गया। यह वही व्यायाम शाला है, जिसकी आधारशिला रखने में दादा पटवा व उनके साथियों ने दिनरात एक किए तथा यहां अभी भी पहलवान वर्जिश व कुश्ती का अभ्यास करते हैं। पटवा दादा इसी अखाड़े के खलीफा हुआ करते थे तथा कभी-कभी यहां भी आकर पहलवानों से बातें किया करते थे। इसी अखाड़े में उनका शव घर से सबसे पहले लाया गया तथा यहां पहलवानों ने उनके अंतिम दर्शन किए। इसके बाद मातापुरा वार्ड की दादा दरयाब सिंह व्यायाम शाला में भी पार्थिव देह ले जाई गई तथा यहां क्षेत्र के पहलवानों ने दादा की देह पर पुष्प अर्पित किए। दादा की पार्थिव देह को दोनों अखाड़ों मेें पहलवानों ने बनेटी घुमाकर सलामी भी दी।
किया शेर नृत्य
पटवा दादा की पार्थिव देह को पालकी बनाकर इसमें रखा गया था तथा इसके आगे डीजे पर रामधुन बजाई गई व बाजे बजाए गए। जिस पर पहलवानों व परिजनों ने पूरे रास्ते शेर नृत्य किया। इसके बाद शव को जमनी मुक्तिधाम ले जाया गया, जहां दादा के सभी पुत्रों ने उन्हें मुखाग्रि प्रदान की। पूरे नगर में दिनभर इस बात की चर्चा रही कि अखाड़े की मिट्टी में शेरों को तैयार करने वाला बब्बर शेर अब दुनिया से चला गया। पूरे शहर में पटवा दादा की यादें अब चर्चाओं के रूप में कई दिनों तक होती रहेगी। व्यापारी संघ अध्यक्ष राजेंद्र पालीवाल ने कहा कि अभूतपूर्व रूप से गुलाल उड़ाते हुए शेर नृत्य के साथ दादा की शव यात्रा निकाली गई। उन्होंने कहा कि शहर में जब-जब कुश्ती आयोजन होंगे, स्वर्गीय खलीफा पटवा दादा की घूमती लाठी और शेर नृत्य उन्हें जानने वालों की आंखें नम कर देंगे।
Published on:
19 Mar 2018 06:28 pm
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