यहूदियों से सख्त नफरत करता था हिटलर। यहूदियों की जान लेने के लिए निकाला था ख़ास तरीका। यहूदियों को नहीं समझता था इंसान।
नई दिल्ली: दुनिया में जब भी कहीं तानाशाह की बात होती है तो एडोल्फ हिटलर का नाम सबसे पहले आता है। साल 1933 में एडोल्फ हिटलर जर्मनी ( Germany ) की सत्ता पर काबिज हुआ था। हिटलर एक बेहद ही क्रूर तानाशाह ( dictator ) था और उसके लिए लोगों को जान से मरवाना आम बात थी। हिटलर यहूदियों से नफरत करता था। दरअसल वो यहूदियों को इंसान ही नहीं समझता था यही वजह है कि उसने यहूदियों को जान से मारने के लिए मौत के कैंप खुलवाए हुए थे जहां पर वो उनकी जान लेता था।
ये कैंप पोलैंड ( Poland ) में चलाए जाते थे जो खास तौर पर यहूदियों के लिए होते थे। कैंप में कई गैस चेंबर होते थे जिनमें यहूदियों को डालकर बंद कर दिया जाता था। इसके बाद चेंबर में जहरीली गैस भेजी जाती थी जिसकी वजह से अंदर बंद लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाता था और उनकी मौत हो जाती थी।
हिटलर का गैस चेंबर प्रयोग
आपको बता दें कि हिटलर ने जो गैस चेंबर बनवाए थे उनमें बड़े, बुजुर्ग, बूढ़े, बच्चे सभी को डाल दिया जाता था और गैस की मदद से उन्हें मार दिया जाता था। यह गैस इतनी जहरीली होती थी कि इसकी वजह से मिनटों में ही लोगों की मौत हो जाती थी। लेकिन कई बार ऐसा भी होता था जब लोग इस खतरनाक गैस चेंबर से बच जाते थे। लेकिन इस तरह भी उन लोगों को छोड़ा नहीं जाता था बल्कि उनसे जानवरों की तरह काम लिया जाता था।
हिटलर के ये चेंबर दरअसल एक प्रयोग का हिस्सा थे जिनमें वो लोगों को भेजकर उनके ऊपर जहरीली गैस का परीक्षण करता था। इससे वो लोगों को मौत के घाट भी उतार देता था और परीक्षण भी कर लेता था। इस चेंबर में कई और प्रयोग भी हो चुके हैं जो बेहद अमानवीय और डरावने थे।
जब गैस चेंबर में लोगों की मौत हो जाती थी तो यहां लाशों का ढेर लग जाता था ऐसे में लाशों को दफनाने के लिए हिटलर ने जमीन में गड्ढे बनवाए थे जहां पर वो सभी लाशों को फेंक दिया करते थे। यह सिलसिला सालों तक चलता रहा और 30 अप्रैल 1945 को हिटलर ने आत्महत्या कर ली।