
हिंदू साधुओं के केसरिया रंग पहनने और मजार के हरे रंग के पीछे का ये है रहस्य, जानकारी है जरूरी
नई दिल्ली। रंगों का इंसान की जिंदगी में बहुत ही अहम स्थान होता है। बेरंग जिंदगी भला किसे पसंद! जैसा कि हम जानते हैं कि हर इंसान को किसी न किसी एक रंग से खास लगाव होता है और वो ज्यादातर उसी रंग का इस्तेमाल करता है।
आज हम आपको रंग से ही जुड़ी एक खास बात बताने वाले हैं। अकसर हम देखते हैं कि ज्यादातर हिंदू साधु-संत गेरूया रंग के परिधान धारण करते हैं। वहीं मस्जिदों में हरे रंग का प्रयोग किया जाता है। आखिर ऐसा क्यों?
आपको बता दें कि हर धर्म में एक रंग विशेष को महत्व दिया जाता है। धर्म के अनुसार इन्हें काफी पवित्र माना जाता है।
जैसा कि हम जानते हैं कि हिंदू धर्म में केसरिया रंग का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है क्योंकि हिंदू धर्म में इस रंग को पवित्र माना जाता है। शायद यही वजह है कि ज्यादातर साधु-संन्यासी केसरिया रंग के वस्त्र धारण करते हैं।हिंदू धर्म में केसरिया रंग का संबंध अग्नि से माना जाता और यह मन में ऊर्जा का संचार करता है।
अब बात करते हैं सिख धर्म के बारे में। बता दें इस धर्म में भी केसरिया रंग को महत्व दिया जाता है। सिखों में इस रंग को पवित्र माना जाता है। आपको बता दें कि सिख धर्म में ध्वजा भी केसरिया रंग का होता है। ऐसा कहा जाता है कि गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों को देश और धर्म के लिए त्याग-बलिदान की प्रेरणा दी थी। केसरिया रंग उसी दिव्य संदेश को याद दिलाने का कार्य करता है।
इस्लाम धर्म में हरे रंग को पवित्र माना जाता है। शायद यही वजह है कि ज्यादातर मस्जिद या मजार में इस रंग को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि हरा रंग शांति, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। इससे जीवन में खुशियां आती हैं।
बौद्ध धर्म में भी केसरिया रंग का खास महत्व है। इस रंग को आत्मत्याग और बंधनों से मुक्ति का माध्यम माना गया है। इसीलिए ज्यादातर बौद्ध भिक्षु केसरिया रंग के वस्त्र धारण करते हैं। यह रंग बेहद पवित्र होता है।
ईसाई धर्म में सफेद रंग का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है। सफेद रंग शांति और सादगी का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए ईसाईयों में शादी जैसे पवित्र समारोह में भी दुल्हन सफेद लिबास में नजर आती है। चर्च के पादरी भी सफेद रंग के वस्त्र पहनते हैं।
Published on:
15 Jun 2018 09:45 am
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