
12वीं में फेल हुए थे श्रीनिवास रामानुजन फिर भी बने महान गणितज्ञ, विश्व में मनवाया अपना लोहा
नई दिल्ली: कहते हैं इंसान अपने नाम से नहीं बल्कि अपने काम से पहचाना जाता है। इसलिए कहा जाता है कि हमेशा अच्छे काम करने चाहिए। ऐसे ही एक शख्स थे जिन्हें दुनिया श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan ) के नाम से जानती है। वैसे तो भारत में आर्यभट, भास्कर, हरीश चंद्र जैसे कई गणितज्ञ हुए, लेकिन रामानुजन जैसे गणितज्ञ एक ही हुए। इनका जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु ( Tamil Nadu ) के इरोड में हुआ था। उस वक्त शायद किसी को इस बात का अहसास नहीं था कि वो आगे चलकर कितना बड़ा नाम बनेंगे।
रामानुजन ने साल 1897 में प्राथमिक परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया। वहीं साल 1903 में उन्होंने 10वीं कक्षा पास की। आपको ये बात हैरान करेगी कि इसी साल उन्होंने घन और चतुर्घात समीकरण हल करने का सूत्र खोज निकाला। वहीं एक किस्सा ऐसा भी हुआ जिसे सुन लोग यकीन नहीं कर पाते। दरअसल, जब रामानुजन ने 12वीं की परीक्षा दी तो वो गणित की परीक्षा को छोड़कर बाकी अन्य सभी विषयों में फेल हो गए। इसके बाद उन्होंने साल 1906 में स्वतंत्र परीक्षार्थी के तौर पर 12वीं कक्षा पास करने की कोशिश तो की, लेकिन वो ये नहीं कर पाए। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई को छोड़ दिया।
वहीं वो अपने अध्ययन के बल पर कभी डिग्री नहीं ले सके, लेकिन उनके कामों और उनकी योग्यता को देखते हुए ब्रिटेन ( Britain ) में उन्हें बीए की मानद उपाधि दी गई। वहीं बाद में उन्हें पीएचडी की भी उपाधि दी गई। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और कामयबी की नई सीढ़ियां चढ़ते चले गए। साल 1911 में रामानुजन का सम प्रोपर्टीज ऑफ बारनालीज नंबर्स शीर्षक से पहला शोध पत्र जनरल ऑफ मैथमेटिक्स सोसायटी में प्रकाशित हुआ। मद्रास ( Madras ) के इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर सीएलओ ग्रिफिक्स ने इस शोध पत्र को गणित के विद्वानों को भिजवा दिया। इस पत्र से प्रोफेसर हार्डी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने रामानुजर को कैंब्रिज आने का न्यौता दिया।
रामानुजन मार्च 1914 में लंदन ( London ) गए, जहां उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज में एडमिशन मिल गया। इसके बाद उन्हें 28 फरवरी 1918 को रॉयल सोसायटी ने अपना सदस्य बना कर सम्मानित किया। लेकिन दुबले-पतले शरीर वाले रामानुजन को क्षय रोग ने घेर लिया। उस वक्त इस रोग का इलाज उपलब्ध नहीं था। वहीं उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई और 27 फरवरी 1919 को उन्हें भारत ( India ) वापस आना पड़ा। इसके बाद 33 साल की उम्र में 26 अप्रैल 1920 को उनका कावेरी नदी के तट पर स्थित कोडुमंडी गांव में निधन हो गया।
Published on:
26 Apr 2019 07:30 am
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