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परदेश में परचम: राजस्थान की माटी से कर्नाटक की रसोई तक, संघर्ष से सफलता की मिसाल बने बाबूलाल प्रजापत

राजस्थान के पाली जिले के छोटे से गांव पदमसिंह जी का गुड़ा से निकलकर कर्नाटक की कर्मभूमि हुब्बल्ली में अपनी मेहनत, ईमानदारी और गुणवत्ता के बल पर एक बड़ी पहचान बनाने वाले बाबूलाल कालूजी प्रजापत आज नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। कभी स्कूल न जाने वाले बाबूलाल प्रजापत ने जीवन की पाठशाला में जो सीखा, उसी से सफलता की ऐसी कहानी लिखी, जो राजस्थान और कर्नाटक—दोनों राज्यों को जोड़ती है।

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बाबूलाल प्रजापत

बाबूलाल प्रजापत

दोनों राज्यों के बीच मजबूत सेतु
बाबूलाल प्रजापत की कहानी इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा की डिग्री नहीं, बल्कि मेहनत, ईमानदारी और संस्कार इंसान को ऊंचाइयों तक पहुंचाते हैं। राजस्थान की माटी से निकली यह मेहनतकश शख्सियत आज कर्नाटक की पहचान बनकर दोनों राज्यों के बीच एक मजबूत सेतु बन गई है।

स्वाद और गुणवत्ता की बारीकियां समझीं
बाबूलाल प्रजापत मात्र 15 वर्ष की उम्र में कर्नाटक पहुंचे। शुरुआती दौर बेहद संघर्षपूर्ण रहा। पहले हासन में तीन वर्षों तक घरेलू काम किया, जहां सालभर की मजदूरी महज 200 रुपए थी। तीन साल बाद कुल 600 रुपए लेकर राजस्थान लौटे, लेकिन हालात ने फिर कर्नाटक की राह दिखाई और वे हुब्बल्ली आ गए, जहां उनके जीजाजी रहते थे। हुब्बल्ली में उन्होंने घर-घर जाकर खाना बनाने का काम शुरू किया। करीब पांच साल तक रसोई का यह काम करते हुए उन्होंने मिठाई बनाने की कला भी सीखी। उस समय शहर की प्रसिद्ध स्वीट लेन की दुकानों से उन्होंने स्वाद और गुणवत्ता की बारीकियां समझीं। हालात कठिन थे, तीन वर्ष की उम्र में पिता का साया उठ चुका था। पिता कालूजी प्रजापत पारंपरिक रूप से मटकी बनाने का काम करते थे। अभावों के बावजूद बाबूलाल ने कभी हार नहीं मानी।

क्वालिटी से समझौता नहीं किया
करीब 38 वर्ष पहले उन्होंने हुब्बल्ली में भैरू कैटर्स की शुरुआत की। आज यह कैटर्स कर्नाटक के प्रतिष्ठित कैटरिंग संस्थानों में गिना जाता है। बाबूलाल प्रजापत कहते हैं, हमने कभी क्वालिटी से समझौता नहीं किया। भरोसा ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। यही वजह है कि भैरू कैटर्स को कई सरकारी टेंडर मिले और अखिल भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन में अब तक 14 बार लाखों लोगों के लिए भोजन तैयार करने का अवसर मिला। गंगावती, धारवाड़, हावेरी, रायचूर, मडगेरी, बेलगावी, विजयपुर, कलबुर्गी सहित कर्नाटक के कई शहरों में आयोजित बड़े आयोजनों और शादियों में भैरू कैटर्स ने अपनी सेवाएं दी हैं। एक साथ दस लाख लोगों तक के भोजन की व्यवस्था करने की क्षमता भैरू कैटर्स की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है। बाबूलाल प्रजापत को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को भोजन परोसने का गौरव भी प्राप्त हुआ है।

18 जोड़ों का सामूहिक विवाह करवाया
सफलता के साथ-साथ सेवा भी उनके जीवन का अहम हिस्सा है। उन्होंने अपने गांव पदमसिंह जी का गुड़ा में काला-गोरा भैरूजी मंदिर का निर्माण स्वयं करवाया। इसके अलावा राजस्थान में 18 जोड़ों का सामूहिक विवाह भी उन्होंने अपने खर्च पर आयोजित किया, जिसमें वर-वधु को आवश्यक सामग्री, भोजन और टेंट की पूरी व्यवस्था की गई।

सामाजिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हुए
कर्नाटक में उन्हें विभिन्न संस्थाओं द्वारा कई बार सम्मानित किया जा चुका है। वे पिछले छह वर्षों से हुब्बल्ली-धारवाड़ कैटरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। साथ ही सनातन सेवा संगठन चैरिटेबल ट्रस्ट, प्रजापत समाज सेवा संघ हुब्बल्ली, मरुधर रामदेव सेवा संघ सहित कई सामाजिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं।