भगवान ऋषभदेव के उपदेशों में अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और अनुप्रवृत्ति जैसे मुख्य तत्व शामिल हैं। उन्होंने अहिंसा, संयम और तप के उपदेशों से समाज की आंतरिक चेतना को जगाया। उन्होंने कृषि, विद्या, असि, मसि, वाणिज्य, और शिल्प जैसे क्षेत्रों में योगदान दिया। वैदिक साहित्य में भी ऋषभदेव का उल्लेख मिलता है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को आदिनाथ भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव का अहिंसा, संयम तथा तप के उपदेश के माध्यम से भारतीय संस्कृति में योगदान विषयक राजस्थान पत्रिका परिचर्चा के दौरान महिलाओं ने अपने विचार रखे। प्रस्तुत हैं राजस्थान पत्रिका हुब्बल्ली संस्करण के 20 वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित परिचर्चा के प्रमुख अंश:
भगवान ऋषभदेव सरस्वती के स्वामी
पाली जिले के घाणेराव निवासी रसीला कोठारी ने कहा, भगवान ऋषभदेव सरस्वती के स्वामी थे। भगवान ऋषभदेव का विवाह नन्दा और सुनन्दा से हुआ। ऋषभदेव के 100 पुत्र और दो पुत्रियां थीं। उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े एवं प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। दूसरे पुत्र बाहुबली भी एक महान राजा एवं कामदेव पद से विभूषित थे। इनके अलावा ऋषभदेव के वृषभसेन, अनन्तविजय, अनन्तवीर्य, अच्युत, वीर, वरवीर आदि 98 पुत्र तथा ब्राम्ही और सुन्दरी नामक दो पुत्रियां भी हुईं।
हजार वर्षों तक तप के बाद केवल ज्ञान की प्राप्ति
जालोर जिले के रेवतड़ा निवासी मंजू मांडौत ने कहा, मौजूदा समय में जहां पाप में वृद्धि हुई हैं तो धर्म भी खूब बढ़ा है। भारत में अनेक स्थान पर ऋषभनाथ भगवान के जिनालय विद्यमान है इनमे कुछ अति प्राचीन है। जैन ग्रंथो के अनुसार लगभग एक हजार वर्षों तक तप करने के पश्चात ऋषभदेव को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और निर्वाण मोक्ष की प्राप्ति कैलाश पर्वत से हुई थी।
वर्षीतप की परम्परा
बालोतरा जिले के सिवाना निवासी ममता कानूंगा ने कहा, भगवान ऋषभदेव को प्रथम पारणा उनके पड़पौते ने करवाया। तब से वर्षीतप की परम्परा चल रही है। वैदिक दर्शन में ऋषभदेव एक महान राजा और महापुरुष थे।
अयोध्या में हुआ जन्म
बालोतरा जिले के सिवाना निवासी जया मुणोत ने कहा, इक्षु रस से पारणा करवाया। जैन पुराणों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज और महारानी मरुदेवी के पुत्र भगवान ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्ण नवमी को अयोध्या में हुआ था।
सिखाई जीवन जीने की कला
बालोतरा जिले के अरटवाड़ा निवासी अरूणा डूमावत ने कहा, भगवान ऋषभदेव ने पवित्र कला का ज्ञान दिया। जीवन जीने की कला सिखाई। उन्होंने पुरुषों की 72 कलाएं और स्त्रियों की 6 कलाएं सिखाईं। जैन पुराण साहित्य में असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प, कला का उपदेश ऋषभदेव ने दिया।
कई ग्रन्थों में ऋषभदेव का वर्णन
बालोतरा जिले के सिवाना निवासी संचल मेहता ने कहा, भगवान ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ। शिक्षा एवं गिनती का ज्ञान उनके समय से प्रारम्भ हुआ। वैदिक दर्शन में अथर्ववेद व अग्नि पुराण, मार्कंडेय पुराण और भी बहुत सारे ग्रंन्थो में ऋषभदेव का वर्णन आता है।
तीर्थंकर के पांच कल्याणक
पाली मूल की पिंकी भंडारी ने कहा, तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर यानी जन्म मरण के चक्र से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर के पांच कल्याणक होते हैं।
सिखाया प्रजा पालन करवाना
पाली मूल की रीना भंडारी ने कहा, 108 इक्षुरस से भगवान को प्रथण पारणा करवाया। ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को अक्षर ज्ञान दिया तो सुंदरी को अंक विद्या का ज्ञान दिया। ब्राह्मी लिपि आज भी प्राचीनतम है। सभी पुत्रों को शस्त्र और शास्त्रों का ज्ञान दिया और प्रजा पालन करना सिखाया।