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अंधेरीÓ जिंदगियां कर रहीं रोशन

30 साल पहले महाराष्ट्र के छोटे से गांव से इंदौर में बहू बनकर आई उमा झंवर ने अंधेरी जिंदगियों को रोशन करने का बीड़ा उठाया है। परिवार की जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाते हुए उन्होंने आई डोनेशन में भी उल्लेखनीय कार्य किए हैं।

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dheeraj sharma

Mar 03, 2016

इंदौर. जब हमारे आई बैंक से 2010 में पहली आई डोनेट हुई तो वो जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी थी। उसी खुशी ने मुझे खुद को आई बैंक के लिए समर्पित होने की प्रेरणा दी। मैं 24 घंटे इसके लिए तैयार रहती हूं।

ये कहना है एमके इंटरनेशनल आई बैंक की संस्थापक और एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर उमा झंवर का। एमके इंटरनेशनल प्रदेश का एकमात्र एेसा आई बैंक है जो किसी हॉस्पिटल से नहीं जुड़ा है। छह साल में पांच हजार आई डोनेशन इस बैंक से चुके हैं। ये 24 घंटे खुला रहता है। चार टेक्निशियन कॉल आते ही आई रिट्रीवल के लिए तैयार रहते हैं। उमा खुद भी इस काम में प्रशिक्षित हैं। उन्होंने हैदराबाद के रामायम्मा इंटरनेशनल आई बैंक में ट्रेनिंग ली है।

उमा बताती है, शादी करने के बाद संयुक्त परिवार बड़ा था, इसलिए घरेलू जिम्मेदारियां भी ज्यादा थीं। दो बच्चों की मां बनी और उनकी परवरिश में व्यस्त हो गईं, लेकिन मन में इच्छा थी कि समाज के लिए कुछ करें। बचपन में दादा जी को गांव के गरीब किसानों की मदद करते देखा था। उनके संस्कार मन में थे। 2009 में चाचा ससुर संपत झंवर की मदद से परिवार के ट्रस्ट के तहत आई बैंक खोलने का निर्णय लिया। तकनीकी जानकारियां जुटाने का काम चल ही रहा था कि पति को कैंसर हो गया। उनकी सेवा और इलाज के दौरान भी हमने मिशन को बंद नहीं किया।

उमा कहती है, 2010 में आई बैंक आकार लेने ही वाला था तब पति की मौत हो गई। सास- ससुर डिप्रेशन में आ गए। बेटे 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। उस वक्त मैंने खुद को मजबूत किया और सबकी संबल बनी। एेसे मुश्किल वक्त में भी आई बैंक का काम नहीं छोड़ा और उसी साल विजय नगर में आई बैंक शुरू भी हो गया।

हर महीने 60 से 70 डोनेशन
छ ह साल पहले आई बैंक शुरू किया था तब पूरे साल में 67 आई डोनेट हुई थी। अब हर महीने 60 से 70 डोनेशन होते हैं। ये सब जागरूकता बढऩे के कारण हुआ है। तकनीकी खराबी के कारण कोई आंख मरीज को नहीं लग पाती है तो उसे रिसर्च वर्क के लिए दे देते हैं। हमारे आई बैंक में एक साल तक आंख सुरक्षित रखने की सुविधा है, लेकिन डिमांड इतनी है कि चार दिन से ज्यादा रखने की जरूरत नहीं पड़ती। हमारा फोकस इंदौर है, लेकिन प्रदेश के सभी शहरों के साथ ही गुजरात और मुंंबई से भी डिमांड आती है। वेटिंग लिस्ट में 500 लोग हैं।

गांवों में बनाए टेक्निशियन
मुश्किल तब होती है जब कॉल दूरदराज गांव से आता है। यहां से टेक्निशियन भेजने में समय लगता है। मौत के 6 घंटे के अंदर ही आंख ली जा सकती है। इस मुश्किल को दूर करने के लिए झाबुआ, बड़वानी, आलीराजपुर में टेक्निशियंस को प्रशिक्षित किया है। वे अपने जिले में आई रिट्रीवल कर भेजते हैं।
अंगदान है अगला लक्ष्य : मेरा पहला लक्ष्य तो आई डोनेशन के लिए जागरूकता फैलाना है। इसके लिए क्लब, कॉलेज, हाउसिंग सोसायटीज में प्रचार करते हैं। अब अंगदान- त्वचा दान के लिए काम करना है।

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