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गांव में रहकर की पढ़ाई, क्रेक कर दिया IIT JEE, कोचिंग लेकिन घर में नहीं थे पैसे

locationइंदौरPublished: Oct 18, 2021 03:07:43 pm

Submitted by:

Hitendra Sharma

बगैर कोचिंग-गाइडेंस के किसान के बेटे ने लिखी सफलता की कहानी।

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मनीष यादव
इंदौर. ऐसा माना जाता है कि देश के नामी संस्थानों में इंजीनियरिंग के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा जेईई एडवांस में सफलता के लिए शहरों में महंगी कोचिंग और घंटों मेहनत करनी पड़ती है। हालांकि इंदौर के पास ही एक गांव के छात्र ने इस मिथक को किसी हद तक दूर कर दिया है। उसने गांव में ही रहकर तैयारी की और सफलता हासिल की। हम बात कर रहे हैं देपालपुर तहसील के गांव सेमदा के कपिल बमोत्रिया की।

किसान परिवार में जन्मे कपिल ने घर पर रहकर पढ़ाई की और जेईई एडवांस में 12045वीं रैंक, वहीं ओबीसी श्रेणी में 2482 नेशनल रैंक हासिल की है। कपिल के मुताबिक स्कूल के प्रिंसिपल विजय पाटीदार ने उन्हें आइआइटी के बारे में बताया था। कपिल ने इंदौर जाकर कोचिंग करने की सोची लेकिन घर के आर्थिक हालातों ने इसकी इजाजत नहीं दी। कपिल के पिता किसान हैं। वह मध्यम वर्गीय परिवार से हैं।

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कपिल ने हिमत नहीं हारी और घर पर रहकर ही पढ़ाई शुरू कर दी। कोरोना के चलते जेईई मेन्स की परीक्षा इस बार चार चरणों में हुई थी। इसमें से एक में कटऑफ में आना जरूरी था। तीसरी परीक्षा में उसकी रैंक 50 हजार के लगभग थी। अगली परीक्षा के लिए कपिल के पास एक महीने का वक्त था और इसके बाद एडवांस के लिए 45 दिन का समय था।
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खुद को क्वारंटीन किया
कपिल बताते हैं कि वे सुबह पांच बजे उठने के बाद बिना कोई प्लान के पढऩे बैठ जाते थे। तीन-चार घंटे का एक स्लॉट लेकर पढ़ाई करते। एडवांस का समय आया तो अपने आप को क्वारंटीन कर लिया था, ताकि पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आए। उन्हें अपनी विषयों को लेकर कमजोरी का अंदाजा था, इसलिए उसी हिसाब से योजना बनाई।

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आईआईटी या फिर किसानी
कोराना के चलते आइआइटी की इस बार जेइइ मेन्स की चार परिक्षा हुई थी। इसमें से एक में कटऑफ में आना जुरूरी है। तीसरी परीक्षा में उसकी रेंक थी। तीन लाख 50 हजार के लगभग की थी। तब सभी ने बोला कि आइआइटी को छोड़ दो। यह माना जाता है कि जिससे मेन्स नहीं क्लीयर हुई तो वह एडवांस किस तरह से पास करेगा। अगली मेन्स में एक महिने का समय था और इसकके बाद एडवांस के लिए 45 दिन का समय था।

इसी के चलते कपिल ने सोच लिया था कि या तो इस बार आईआईटी या फिर घर बैठकर किसानी ही करुगां। मेन्स दी तो ऐसा लगा कि परीक्षा ठीक नहीं था। उसका रिजल्ट आया तो तो 50 हजार वीं रैंक थी। उस समय भी सभी ने बोला कि एडवांस को छोड़ दो, लेकिन मन में ठान लिया था। कि इसे पास करके रहुंगा। रिजल्ट आया और ऑल इंडिया रैंक साढ़े 12 हजार आई थी। वहीं ओबीसी कैटगरी में दो हजार रैंक बनी है।

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टेस्ट नहीं दूंगा, उतना समय पढ़ाई के लिए लगाया
आइआइटी दिल्ली या फिर मुंबईअब देश की टॉप दो कमें आने वाली संस्था में आइआइटी दिल्ली और मुंबई में उनका एडमिश्न मिल रहा है। वह अभी ब्रांच और संस्थान को लेकर अभी सोच रहे है। वह इन दोनों ही संस्थानों में भी जाएंगे। ब्रांच के बारे में तय हो जाने पर वह अपना एडमिशन लेंगे।

माता-पिता नहीं पढ़े
कपिल के पिता लखन एक किसान हैं। पिता का कहना है कि वह तो पढ़ नहीं पाए लेकिन बच्चे को आईआईटी पहुंचा दिया। मां शोभा का कहना है कि यह तो समझ नहीं आता था कि क्या पढ़ रहा है, लेकिन उसकी मेहनत देखकर कभी उसे काम करने के लिए नहीं टोका। उसकी उम्र के बच्चे खेती का काम कर लेते हैं लेकिन हमने उससे सिर्फ पढ़ाई कराई।

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