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करीब 9000 दवा कंपनियों ने मांगी है ‘रिश्वत’ पर टैक्स में छूट

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा, डॉक्टर्स को गिफ्ट देना रिश्वत जैसा मेडिकल कंपनियों ने गिफ्ट देनदारी पर टैक्स में छूट की मांग की

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9000 pharmaceutical companies have demanded tax exemption on 'bribe'

नई दिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट में एक दिलचस्प मामला सामने आया है। ऐसे मामले कम ही देखने को मिलते हैं, जब कोई कंपनी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में 'रिश्वत' पर टैक्स छूट की डिमांड करती है। जी हां, यह मामला उठा है और वो भी मद्रास हाईकोर्ट में। यह डिमांड की है देश की फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने। वो भी एक या दो दर्जन कंपनियों ने बल्कि 8500 से ज्यादा कंपनियों ने।

जिसका खुलासा मीडिया रिपोर्टस में हुआ है। मौजूदा समय में देश की फार्मा कंपनियों का नाम दूसरी वजह से भी सुर्खियों में है। वो है कोरोना वायरस की वजह से देश में दवाओं का दाम बढऩा। पहले बात कंपनियों की रिश्वत पर टैक्स छूट की मांग पर करना जरूरी है।

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दवाओं ने मांगी रिश्वत टैक्स पर छूट
देश की फार्मा कंपनियों पर यह आरोप आम है कि वो अपनी दवाईयों को बेचने के लिए किए गए प्रचार और डॉक्टर्स को दिए गए रिश्वत का भार खरीदारों पर डालती हैं। ऐसे मामले भी देखे गए हैं कि कई बार कंपनियां लाइसेंस फीस और टैक्स का बोझ भी ग्राहकों पर डाल देती है। इस बार मामला थोड़ा अलग है।

वहीं डॉक्टर्स भी इन कंपनियों के साथ मिलकर बीमार लोगों को महंगी दवाएं लिख देते हैं। या फिर कई सारे टैस्ट ऐसे कराते हैं, जिनकी जरुरत नहीं होती है। जिसका भार आम जनता की जब पर पड़ता है। इस बार जो मामला सामने आया है वो बेहद अजीब है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने मद्रास हाईकोर्ट को बताया है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने मद्रास हाईकोर्ट में कहा कि वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 8667 मेडिकल कंपनियों ने गिफ्ट देनदारी या यू कहें कि 'रिश्वत' को लेकर टैक्स में छूट की मांग की है।

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मद्रास हाईकोर्ट ने माना गिफ्ट देना रिश्वत जैसा
इस मामले पूरे मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने हैरानी जताई है। कहा है कि यह काफी आश्चर्यजनक है कि सेल्स प्रमोशन और लाइसेंस और टैक्स में हुए खर्च पर कंपनियां टैक्स डिडक्शन मांग रही है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि डॉक्टर्स को दिया जाने वाला गिफ् रिश्वत के तहत है।

इस बात की सभी को जानकारी है कि कानून में रिश्वत देना और लेना दोनों गैरकानूनी है। लेकिन गिफ्ट, ट्रैवल सुविधा, कैश और भी तमाम तरीकों से यह रिश्वत ली और दी जा रही है। जिसके बाद नियमों को ताक पर रखकर दवाओं के दाम बढ़ाए जा रहे हैं। कोर्ट ने इस तरह की प्रैक्टिस को रोकने के निर्देश दिए हैं। ताकि इन सब चीजों का भार आम लोगों पर ना पड़े।

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दो दर्जन दवाओं की कीमतों में इजाफा
कोरोना वायरस की वजह से चीन से कच्चा माल ना आने और ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर एक्ट की डील के बाद दवा कंपनियों ने लगभग दो दर्जन दवाओं के दाम बढ़ा दिए हैं। पिछले एक साल से कच्चे माल का दाम बढऩे की वजह से दवा कंपनियां दवाओं के दाम बढ़ाने की मांग कर रही थी और दिसंबर 2019 में मंत्रालय की ओर से कीमतें बढ़ाने की अनुमति मिली थी।

आपको बता दें कि देश में दवा बनाने के लिए करीब 75 फीसदी एक्‍टिव फार्मास्‍युटिकल इंग्रीडिएंट्स चीन से आता है । कोरोना वायरस के कारण सप्लाई बंद है। जिसकी वजह से जेनरिक दवाओं की कीमतों में 10 से 50 फीसदी तक का इजाफा हो चुका है। डीपीसीओ एक्ट के बाद देश में करीब 2 दर्जन दवाओं के दाम बढ़ गए हैं। अब नया स्टॉक बढ़ी कीमतों के साथ आएगा।

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भारत की फार्मा इकोनॉमी
भारतीय फार्मा सेक्टर की बात करें तो 2017 में इसकी वैल्यू 33 बीलियन डॉलर थी। जबकि इसका सालाना टर्नओवर 2017 में 1,16,389 करोड़ से बढ़कर 2018 में 1,29,015 करोड़ रुपए का हो गया था। जिसमें 9.4 फीसदी की सालाना ग्रोथ देखने को मिली थी। जबकि नवंबर 2019 तक फार्मा सेक्टर का टर्नओवर 1.39 लाख करोड़ रुपए का पहुंच गया है। भारतीय फार्मा इंडस्ट्री में जेनरिक दवाओं का मार्केट शेयर 71 फीसदी है।