
केंद्र को दिया एसोचैम ने सुझाव, एेसे कम करें पेट्रोल-डीजल के भाव
नई दिल्ली। तेल की आसमान छूती कीमतों को लेकर हर कोर्इ चिंतित है। हर संस्था आैर एजेंसी सरकार को अपने-अपने तरीके से सलाह देने की कोशिश देने में लगी है। इस बार इंडस्ट्री बॉडी एसोचैम ने पेट्रोल आैर डीजल की कीमतों को लेकर बयान दिया है। एसोचैम का कहना है कि तेल की बढ़ती कीमतों की जांच के लिए टैक्स को कम करना सबसे बेहतर समाधान है।
एसोचैम दिया समाधान
एसोचैम के सेक्रेटरी डीएस रावत ने आज एक बयान जारी कर कहा कि यह भारत को निर्यात के मामले में प्रतिस्पर्धी बना देगा, चालू खाता घाटा को कम करेगा और हम रुपए में और गिरावट को नहीं देख रहे हैं। एसोचैम ने यह सुझाव भी दिया कि केंद्र सरकार को ऑयल प्रोडक्ट को वस्तु एवं सेवा कर के दायरे में लाना चाहिए ताकि भारत में तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेल खा सकें। रावत ने कहा कि ऐसा होने की सूरत में कीमतें सरकार की ओर से नियंत्रित नहीं होंगी और ऑयल को एक अन्य कमोडिटी के जैसा ही माना जाएगा तो कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर निर्भर करेगा।
घरों का बजट भी होता है प्रभावित
उन्होंने कहा कि तेल की बढ़ती कीमतें सिर्फ अर्थव्यवस्था पर ही असर नहीं डालती हैं बल्कि इससे घरों का बजट भी प्रभावित होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब तेल की कीमतें बढ़ती है तो ट्रांसपोर्टेशन की लागत बढ़ जाती है इसलिए इन्फ्लेशन बास्केट की तमाम चीजों पर असर पड़ता है।
एसोचैम ने बताया कैसे होती पेट्रोल की कीमतें तय
भारत में ईंधन की कीमतों को निर्धारित करने की प्रक्रिया के पीछे का गणित समझाते हुए एक पेपर में उन्होंने उल्लेख किया कि एक लीटर आयातित पेट्रोल की कीमत 26 रुपये लीटर होती है, इसके बाद इसे तेल कंपनियों की ओर से परिष्कृत किया जाता है, इसमें एंट्री टैक्स, रिफाइनरी प्रोसेसिंग, लैंडिंग कॉस्ट और मार्जिन शामिल होता है। फिर इसे डीलर को 30 रुपये प्रति लीटर के भाव से बेच दिया जाता है। इसके बाद इसमें केंद्र सरकार की ओर से 19 रुपए प्रति लीटर के भाव से एक्साइज ड्यूटी जोड़ी जाती है। इसमें 3 रुपए प्रति लीटर का डीलर का कमीशन और राज्य सरकारों की ओर से लगने वाला वैट भी जुड़ता है। तब जाकर आम आदमी के लिए एक लीटर पेट्रोल की कीमत तय होती है।
Published on:
09 Jun 2018 01:17 pm
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