
what is net neutrality
नई दिल्ली। केबल और डीटीएच ऑपरेटर्स की ओर से वसूले जाने वाले ऊंचे
कैरेज चार्ज न चुका पाने के कारण अब तक कई टीवी चैनल्स दम तोड़ चुके हैं, वहीं
ट्राई के नेट न्यूट्रिलिटी खम्त्म करने के प्रपोजल से मीडिया वेबसाइट्स का भी यही
हाल होने की संभावना बढ़ रही है। अगर ट्राई का यह प्रपोजल स्वीकार कर लिया गया तो
भारत भी चीन की राह पर चल पड़ेगा। गौरतलब है कि चीन ने इंटरनेट एक्सेस को कंट्रोल
कर रखा है, जबकि अमरीका ने हाल ही कठोर कानून पास कर नेट न्यूट्रेलिटी को सुरक्षित
किया है।
हाल ही "इरोजन ऑफ नेट न्यूट्रिलिटी : इम्पैक्ट ऑन द मीडिया" का
आयोजन किया गया। इस वर्कशॉप में यह बताया गया कि नेट न्यूट्रिलिटी खत्म करने से न
केवल मीडिया स्टार्टअप्स प्रभावित होंगे, बल्कि पहले से पैर जमा चुके न्यूज
ऑर्गेनाइजेशंस पर भी इसका असर पड़ेगा। एक बार अगर डिजिटल फ्रीडम के मामले में
समझौता किया गया तो हर वेबसाइट पर टेलिकॉम ऑपरेटर्स की हुकूमत होगी।
ट्राई
के प्रस्ताव के स्वीकार होने के बाद छोटे मीडिया हाउस पर बड़ा असर पड़ेगा, क्योंकि
टेलिकॉम कंपनियों को फास्ट और स्लो लेन्स बनाने और यहां तक कि कमर्शियल कारणों से
किसी कंटेंट को ब्लॉक तक कर देने की पावर मिल जाएगी। ऎसे में अगर छोटे मीडिया हाउस
की कंटेंट बनाने और शेयर करने की आजादी ही छिन जाएगी तो उनका बंद होना तय है। वहीं
टेलिकॉम कंपनियों को कैरेज फीस अदा करने वाले बड़े न्यूज पोर्टल्स का पूरा ध्यान
फिर खबरें एकत्रित करने की बजाए कॉस्ट डिस्ट्रीब्यूशन पर लग जाएगा, जिससे जर्नलिज्म
की क्वालिटी पर असर पड़ेगा।
Published on:
14 Jun 2015 11:55 am
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