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अब महंगी दवाएं नहीं बेच सकेंगी कंपनियां, सरकार ने की शिकंजा कसने की तैयारी

सरकार अब दवा कंपनियों की ओर से मनमानी कीमत तय करने की छूट को समाप्त करने की दिशा में कदम उठा रही है।

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अब महंगी दवाएं नहीं बेच सकेंगी कंपनियां, सरकार ने की शिकंजा कसने की तैयारी

नई दिल्ली। आम लोगों को हर मोर्चे पर राहत देने में जुटी केंद्र की मोदी सरकार ने अब लोगों को सस्ती दवाएं देने उपलब्ध कराने के लिए दवा कंपनियों पर शिकंजा कसने की तैयारी कर ली है। सरकार अब दवा कंपनियों की ओर से मनमानी कीमत तय करने की छूट को समाप्त करने की दिशा में कदम उठा रही है। एक अंग्रेजी वेबसाइट के अनुसार, सरकार दवाओं की कीमत तय करने के लिए एक नए फॉर्मूले पर विचार कर रही है। सरकार के इस फॉर्मूले के अनुसार, दवाओं के दाम ट्रेड मार्जिन के आधार पर कंट्रोल किए जाएंगे। इस फॉर्मूले को तैयार करने की जिम्मेदारी नीति आयोग को सौंपी गई है। फिलहाल सरकार चुनिंदा दवाओं पर ही एेसा कर पाती है।

इसलिए पड़ी जरूरत

जानकारी के अनुसार सरकार का मानना है कि दवा कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए एक ही साल्ट की दवाओं को अलग-अलग ब्रांड नेम से अलग-अलग प्रॉफिट पर बेचती हैं। इस कारण डॉक्टर और अस्पाल ज्यादा मुनाफा वाली दवाइयां ही लिखते हैं। इस कारण उन दवाओं की बिक्री बढ़ जाती है। इससे मरीजों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। दवा कंपनियों की इसी हेराफेरी पर शिकंजा कसने के लिए सरकार नए फॉर्मूले पर काम कर रही है। कीमतें तय करने के इस नए फॉर्मूले के जरिए सरकार दवा कंपनियों की मुनाफाखोरी पर लगाम कसना चाहती है। नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद पाल सिंह का कहना है कि इस नए फॉर्मूले को जल्द तैयार कर लिया जाएगा। नीति आयोग के सदस्य ने बताया कि आयोग के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय और फार्मा मंत्रालय के अधिकारी फॉर्मूला बनाने में जुटे हैं।

कुछ एेसा होगा नया फॉर्मूला

खबरों के अनुसार नीति आयोग फर्स्ट प्वाइंट ऑफ सेल यानी पहली बिक्री पर दवाओं की कीमत तय करना चाहता है। इससे कंपनियों को पहली जगह पर ही ट्रेड मार्जिन तय करना होगा। यदि इस फॉर्मूले को लागू किया जाता है तो जिस दर पर दवा कंपनी से निकलेगी, लोगों को भी उसी दाम पर दवा मिलेगी। इससे दवाएं सस्ती होंगी और लोगों को फायदा होगा। लेकिन दवा कंपनियां और डॉक्टर दोनों ने इस पर एेतराज जताया है। आपको बता दें कि अभी सरकार केवल जीवनरक्षक दवाओं की कीमत निर्धारित करती है। सरकार में दवाओं का घरेलू उद्योग करीब 1 लाख करोड़ रुपए का है। इसमें से केवल 17 फीसदी ही कीमत नियंत्रण दायरे में है।

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