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इस किले में है 45 किलोमीटर लंबी सुरंग, एक शहर से दूसरे शहर जाती थी ये वीर रानी, दफन है पारस पत्थर

locationजबलपुरPublished: Feb 18, 2021 02:09:51 pm

Submitted by:

Lalit kostha

भारत के राष्ट्रपति निहारेंगे वैभव इनका वैभवरानी के अदम्य शौर्य का साक्षी है ये किला

amazing fort of queen

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जबलपुर। जबलपुर से करीब 45 किमी दूर दमोह जिले के जबेरा के करीब स्थित सिंगौरगढ़ किले में विकास कार्यों का उद्घाटन करने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सात मार्च को जबलपुर से सिंगौरगढ़ जाएंगे। यह किला आज भी रानी दुर्गावती की वीरता के गौरवशाली इतिहास की साक्षी देता खड़ा है। जबलपुर से इस किले का सीधा नाता है। गोंड़ राजाओं के समय निर्मित गुप्त सुरंग मार्ग इस किले से सीधे जबलपुर स्थित मदन महल किले की ओर निकलता था। इस मार्ग को पुरातत्व विभाग ने बंद कर दिया है। इनके अवशेष आज भी मौजूद हैं। वहीं सैनिक टुकडिय़ों के लिए किले की सुरक्षा के लिए 32 किमी की दीवार यानि रास्ता आज भी सिंगौरगढ़ किले से पर्वत शृंखलाओं तक पूर्णतया सुरक्षित बना हुआ है।

रानी को ही थी जानकारी
स्थानीय निवासियों के मुताबिक किले की दीवारों को अत्यधिक मजबूती के साथ बनाया गया था। प्रकृति प्रदत्त भौगोलिक पर्वत शृंखलाओं के बीच बने किले की सुरक्षा में पहाड़ सुरक्षा दीवार बनकर खड़े थे। किले के तहखानों से निकली सुरंग का अंतिम छोर रानी व रानी की सैनिक टुकडिय़ों को ही पता था।

 

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आलोनी दीवार थी अजेय
स्थानीय निवासी राजू राय ने बताया कि समीपी पहाड़ों पर सैनिकों के पैदल चलने के लिए 32 किमी की आलोनी दीवार बनाई गई थी। इस रास्ते में सेंध लगाना किसी बाहरी सैन्य शक्ति के लिए नामुमकिन था। जबकि, इस किले का संरक्षण करना तक पुरातत्व विभाग भूल गया। सिंगौरगढ़ किला अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई पांच सौ वर्षों से लड़ रहा है।

तालाब के अंदर खजाना
सिंगौरगढ़ किले से निकट स्थित जलाशय की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। बताया जाता है कि तालाब के अंदर ही एक बावली बनी हुई है। जनश्रुति है कि वहां पर स्वर्ण मुद्राओं का खजाना छिपा हुआ है। सैकड़ों वर्ष पुराने जलाशय में पानी कभी खत्म नहीं होने की वजह से लाखों प्रयासों के बाद जलाशय के अंदर तक कोई पहुंच नहीं पाया। बताया जाता है कि इसके चलते बावली भूगर्भ में चली गई।

 

पारस पत्थर भी दफन
मान्यता है कि सिंगौरगढ़ तालाब के अथाह जल के अंदर अनेक रहस्य दफन हैं। आज तक इनकी खोज करने की हिम्मत कोई नहीं उठा पाया। स्थानीय निवासी मुलायम जैन के अनुसार जलाशय से जुड़ी एक किवदंती है। इसके अनुसार रानी दुर्गावती के शासनकाल की गदर में स्वर्ण मुद्राएं सहित रानी का पारस पत्थर भी इस जलाशय के अंदर डाल दिया गया था।

सिंगौरगढ़ के किले से राजस्व व गोपनीय सैन्य वस्तुएं, संदेश लाने ले जाने के लिए यह गुप्त सुरंग प्रयुक्त होती थी। सिंगौरगढ़ से गढ़ा कटंगा स्थित टकसाल होकर यह सुरंग मदनमहल किले तक आती थी। गुड़, चूना, बेल, मैथी व शीरा के मिश्रण से सिंगौरगढ़ के किले सहित तमाम गोंडवाना के किलों का निर्माण हुआ था। इसलिए ये बहुत टिकाऊ और मजबूत हैं। सिंगौरगढ़ की तीसरी लड़ाई के दौरान सुरंग के जरिए ही रानी दुर्गावती किले से निकलकर गढ़ा आई थीं।
– डॉ. आनंद राणा, इतिहासविद, जानकीरमण कॉलेज जबलपुर

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