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भारत का एक ऐसा गांव जहां बहुओं के साथ होता है देह व्यापार

भारत का एक ऐसा गांव जहां बहुओं के साथ होता है देह व्यापार

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banchada community rituals in india

banchada community rituals in india

जबलपुर। एक समय था जब वेश्याओं को समाज में अच्छी नजर से देखा जाता था। खासकर राजवंशों के समय, ये वेश्याएं उनके लिए दूसरे देशों से आने वालों के भेज जानने से लेकर गुप्तचरों की पूरी जानकारियां अपने राजाओं को दिया करती थीं। इसके बाद धीरे धीरे वेश्याओं के प्रति समाज में घृणा पैदा हो गई। अंतत: आज उनसे बात करना या उनके क्षेत्र से गुजरना भी लोगों को अच्छा नहीं लगता है।

वहीं देश में एक ऐसा समुदाय भी है जो अपनी बहुओं को वेश्यावृत्ति कराने के लिए मशहूर है। कहा तो यहां तक जाता है कि इस समुदाय में लड़की पैदा होने पर खुशियां मनाई जाती हैं। लोग इसे बाछड़ा जाति के नाम से भी जानते हैं। यह मालवा के नीमच, मन्दसौर और रतलाम ज़िले में रहते हैं। इतिहासकारों के अनुसार मालवा अंचल में 200 वर्षों से बेटी को सेक्स बाज़ार में धकेलने की परंपरा चली आ रही है। दरअसल इन गांवों में रहने वाले ‘बांछड़ा समुदाय’ के लिए बेटी के जिस्म का सौदा आजीविका का एकमात्र ज़रिया बना हुआ है, यहां वेश्यावृती एक परंपरा है। भले ही देश में वेश्यावृत्ति पर कानूनी सख्ती हो, लेकिन ये जाति अब भी इसी धंधे में लिप्त है। आइये इसी कड़ी में हम आपको बताते हैं जबलपुर के रेड लाइट एरिया कहे जाने वाले बेलबाग के बारे में। जहां एक ऐसी भी तवायफ हुआ करती थी। जिसे देखने दूर दूर से सेठ आया करते थे।

जिस्म की बोली लगती लेकिन गलत बात न करती बर्दाश्त
मेरा शरीर, मेरा घर, मेरा देश, मेरे नियम- ये महज फिल्मी डायलाग्स ही नहीं हैं। जबलपुर की बेगम जान जैसी सितारा बेगम का कुछ ऐसा ही रसूख था। चालीस और पचास के दशक में इस तवायफ के नाम से ही शहर के शोहदे कांप उठतेे थे। अपने सौंदर्य और नृत्य के दम पर सितारा बेगम ने जितना नाम कमाया उतनी ही वे नृत्यांगनाओं और तवायफों की तरफदारी के लिए जानी जातीं थीं। किसी की क्या मजाल कि नाचनेवालियों, तवायफों के बारे में कुछ उल्टा-सीधा बोल भी दे, ऐसी धाक थी उनकी।

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कहे-सुने जाते हैं किस्से
इतिहास के लिहाज से महाकौशल क्षेत्र में तवायफों, नृत्यांगनाओं का ज्यादा उल्लेख नहीं है पर जबलपुर की तवायफ सितारा बेगम के किस्से आज भी कहे-सुने जाते हैं। जिस दौर में कोठे बर्बाद होने लगे थे, नाचने-गानेवालियों को बुरी नजर से देखा जाने लगा था, उस दौर में इस औरत ने आगे आकर नृत्यांगनाओं को इज्जत बख्शी। सन 1950-60 का समय जबलपुर में सितारा बेगम के जलवे के दौर के रूप में याद किया जाता है। उनकी सुंदरता और नृत्य की ख्याति सुनकर दूर-दूर से लोग यहां आते। बेलबाग के पास उनकी कोठी थी, जहां शाम से देर रात तक उनकी महफिलें सजतीं थीं। नृत्यांगनाओं से कोई ऊल-जुलूल हरकत करने की कोशिश करता तो उसकी शामत तय थी। सितारा बेगम ने उस दौर के कई रईस शोहदों को यहां से खदेड़ दिया था।

नहीं बेचने दिए कोठे
कोठों पर भू-माफिया की नजर पडऩे लगी थी। तरह-तरह के प्रलोभन देकर, उल्टी-सीधी बातें फैलाकर लोगों ने इन कोठों को खाली कराने की कोशिश की पर सितारा बेगम तवायफों, नृत्यांगनाओं के पक्ष में डटी रहीं। इतिहासकार डा. राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि सितारा बेगम के साथ ही शहर में एक और तवायफ जमुना बेगम का भी काफी नाम था। जमुना बेगम को तो पास के एक राजा के वंशजों ने जमीन, भवन दे दिए थे।

अलग-अलग था ठिकाना
डा. गुप्ता बताते हैं कि शहर में बेलबाग, लकडग़ंज में तवायफों और नृत्यांगनाओं के कई कोठे थे। लकडग़ंज में एक ओर जहां तवायफों के कोठे बने हुए थे वहीं सड़क के दूसरी तरफ नाचनेवालियों का ठिकाना था। शाम होते ही ये ठिकाने रोशन हो जाते थे और फिर देर रात तक यहां तबलों की थाप गूंजती रहती थी।