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MP CRIME: साइबर फ्रॉड का काला सच, अपराधी हुए हाईटेक लेकिन सिस्टम में भटकता पीडि़त

locationजबलपुरPublished: Sep 07, 2020 11:40:40 am

Submitted by:

Lalit kostha

मामले दर्ज होने में अभी भी है तकनीकी खामी हाइटेक सिस्टम! फिर भी ठगे जाने पर करना पड़ता है ऑफिस-ऑफिस

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जबलपुर. साइबर फ्रॉड के लगातार मामले बढ़ रहे हैं। नए-नए तरीकों से जालसाज लोगों को झांसे में फंसा रहे हैं। साइबर ठगी के शिकार लोगों के सामने अक्सर ये दोहरी दुविधा होती है कि वे पहले शिकायत कहां करें? बैंक जाएं तो थाने भेजा जाता है। थाने में जाने पर साइबर सेल जाने की सलाह दी जाती है। कई बार फ्रॉड होने पर पीडि़त समझ नहीं पाता कि वह इसकी शिकायत कहां और किस स्तर पर करे?

आंकड़ों की जुबानी साइबर फ्रॉड के मामलों पर नजर दौड़ाएं, तो तस्वीर चौंकाने वाली है। इस वर्ष एक जनवरी से अब तक जिला पुलिस के पास फ्रॉड के 257 प्रकरण पहुंचे। स्टेट साइबर सेल के पास सोशल फ्रॉड के 70 और फाइनेंशियल फ्रॉड के 131 प्रकरण आए हैं। जिला पुलिस 50 हजार तक के साइबर फ्रॉड की जांच करता है। स्टेट साइबर सेल 50 हजार रुपए से अधिक के फ्रॉड की जांच शिकायतें लेता है। साइबर अपराधियों ने इन 500 के लगभग सायबर फ्रॉड के मामलों में दो करोड़ से अधिक की ठगी की।

 

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इसमें जिला पुलिस 6.70 लाख रुपए वापस कराने में सफल रही। स्टेट साइबर सेल रकम होल्ड कराने सहित 28 लाख रुपए साइबर अपराधियों से निकालने में सफल हुई। ये ऐसे मामले थे, जिसमें पीडि़त ने साइबर फ्रॉड होने पर तुरंत शिकायत की थी। जिला साइबर सेल में पदस्थ नीरज नेगी ने बताया कि फ्रॉड होने पर बैंक या स्थानीय थाने के बजाय प्रारम्भिक डिटेल के साथ साइबर सेल में तुरंत शिकायत करने पहुंचें।

केस 1

रेलवे में क्लर्क अविनाश शर्मा को 350 रुपए का रिफंड करने जालसाज ने यूआरएल भेज एनीडेस्क ऐप डाउनलोड कराया और मोबाइल हैक कर ऑनलाइन बैंकिंग के माध्यम से 1.60 लाख रुपए निकाल लिए। वे बैंक व स्टेट साइबर सेल पहुंचे, लेकिन प्रक्रियाओं का हवाला देकर त्वरित मदद नहीं मिली।

केस 2
टीएफआरआई में पदस्थ वैज्ञानिक डॉ. अविनाश जैन दो अगस्त को स्वयं के मोबाइल पर इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से बीमा की किश्त जमा कर रहे थे। तभी मोबाइल पर पॉपअप खुल गया। अनजाने में बैंक सम्बंधी जानकारी दर्ज कर दी। खाते से 50 हजार रुपए निकल गए। साइबर सेल की मदद से पूरा पैसा वापस हो गया।

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