10 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

हिन्दी दिवस विशेष: इनके प्रयास से मिला था हिन्दी को राजभाषा का दर्जा

हिन्दी के लिए जबलपुर के व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने अमेरिका में किया था भारत का प्रतिनिधित्व

2 min read
Google source verification

image

neeraj mishra

Sep 14, 2016

beohar rajendra sinha

beohar rajendra sinha


जबलपुर। आज पूरे देश में हिन्दी दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि हिन्दी को राजभाषा का दर्जा कैसे मिला। किनके प्रयासों से हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। यहां हम ऐसे ही एक हिन्दी के पुरोधा व्यौहार राजेन्द्र सिंह (सिंहा) के बारे में आपको बता रहे हैं, जिनने हिन्दी को राजभाषा बनाने के लिए संर्घष किया। उनके 50 वें जन्मदिन के दिन ही हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया।

आज से 116 साल पहले 14 सितंबर को हिन्दी के पुरोधा व्यौहार राजेन्द्र सिंह का जन्म जबलपुर में हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास के साथ मिलकर राजेन्द्र ने काफी प्रयास किए। जिसके चलते उन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएं भी कीं।

जन्मदिन पर मिली सौगात

व्यौहार राजेन्द्र सिंह के पौत्र डॉ. अनुपम सिंहा ने बताया कि लगातार प्रयासों को चलते व्यौहार राजेन्द्र सिंह के 50 वें जन्मदिवस पर 14 सितम्बर 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अंतर्गत हिंदी को भारतीय-संघ की आधिकारिक (राष्ट्रीय) राजभाषा, और देवनागरी को आधिकारिक (राष्ट्रीय) लिपि, की मान्यता मिली।

अमेरिका में लहराया हिन्दी का परचम

व्यौहार राजेन्द्र सिंह हिंदी साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष रहे। उन्होंने अमेरिका में आयोजित विश्व सर्वधर्म सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने सर्वधर्म सभा में हिन्दी में ही भाषण दिया। जिसकी जमकर तारीफ हुई।

100 से अधिक ग्रंथों की रचना

हिंदी के लगभग 100 से अधिक बौद्धिक ग्रंथों की रचना उन्होंने की, जो सम्मानित-पुरस्कृत भी हुईं और कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से संस्तुत-समाविष्ट भी की गईं। गोस्वामी तुलसीदास की समन्वय साधना (1928), त्रिपुरी का इतिहास (1939), हिंदी गीता (1942), आलोचना के सिद्धांत (1956), हिंदी रामायण (1965), सावित्री (1972) आदि ने विशेष प्रसिद्ध पाई। संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि पर उनका अच्छा अधिकार था।

ये मिले पुरस्कार

साहित्य वाचस्पति, हिंदी भाषा भूषण, 'श्रेष्ठ आचार्य आदि कई अलंकरणों से व्यौहार राजेन्द्र सिंह को विभूषित किया गया। उनके नाम से ही जबलपुर के एक हिस्से को व्यौहार बाग के नाम से जानते हैं। दो मार्च 1988 को जबलपुर में हिन्दी के पुरोधा व्यौहार राजेन्द्र सिंह का निधन हुआ।