हिंदी के लगभग 100 से अधिक बौद्धिक ग्रंथों की रचना उन्होंने की, जो सम्मानित-पुरस्कृत भी हुईं और कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से संस्तुत-समाविष्ट भी की गईं। गोस्वामी तुलसीदास की समन्वय साधना (1928), त्रिपुरी का इतिहास (1939), हिंदी गीता (1942), आलोचना के सिद्धांत (1956), हिंदी रामायण (1965), सावित्री (1972) आदि ने विशेष प्रसिद्ध पाई। संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि पर उनका अच्छा अधिकार था।