
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने जिला न्यायालय बालाघाट द्वारा गुजारा भत्ता दिए जाने के पारित आदेश की पुष्टि करते हुए इसे चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि पुरुष के साथ काफी समय तक रहने वाली महिला अलग होने पर भरण-पोषण की हकदार है, भले ही वे कानूनी रूप से विवाहित नहीं हों।
ये है मामला : मामला बालाघाट का है। जहां के निवासी शैलेश बोपचे एक महिला के साथ लिव इन रिलेशन में थे। दोनों सालों तक साथ रहे। बाद में दोनों अलग हुए तो महिला ने शादी का झांसा देकर पत्नी की तरह रखने का आरोप लगाया और गुजारा भत्ता का आवेदन बालाघाट कोर्ट के समक्ष पेश किया। महिला ने बताया कि वे पति-पत्नी की तरह रहे और उनका बच्चा भी है। बाद में शादी से इनकार कर दिया अतएव उसे गुजारा भत्ता दिलाया जाए। बालाघाट कोर्ट ने महिला के आवेदन पर 1500 रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता दिए जाने का आदेश दिया। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
कोर्ट रूम से
याचिकाकर्ता के तर्क याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट के समक्ष बताया कि महिला ने मंदिर में शादी किए जाने और पत्नी के तौर रहने की बात कही है। लेकिन वह इसके किसी तरह के साक्ष्य कोर्ट में पेश नहीं कर पाई।
कोर्ट का निर्णयहाईकोर्ट ने कहा, महिला विवाह साबित करने में भले विफल रही हो पर इनके बीच संबंध बनाने का सबूत है। कोर्ट ने कहा बच्चा इस बात का सबूत है कि दोनों के बीच रिश्ते पति-पत्नी जैसे ही थे।
इसलिए यह फैसला अहम : लिव इन रिलेशनशिप को लेकर देशभर की कोर्ट और अथॉरिटी के मंचों पर महिलाओं के अधिकारों को लेकर ढेरों प्रकरण लंबित हैं। मप्र हाईकोर्ट के इस फैसले से लव इन रिलेशन में महिलाओं के अधिकारों को मान्यता मिली।
Published on:
07 Apr 2024 01:42 pm
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