कमीशनखोरी के गठजोड़ से बनती हैं करोड़ों की सडक़ें! गड्ढों में बदलते देर नहीं लगती यह है स्थिति
65 करोड़ की लागत से 50 सडक़ बनीं 2014-15 में
80 करोड़ से ज्यादा की लागत से पिछले सालों में बनी सडक़
30-35 लाख रुपये हर साल बारिश बाद मरम्मत पर खर्च
100 करोड़ से ज्यादा की लागत से स्मार्ट सडक़ निर्माणाधीन (अंडर ग्राउंड केबल, ड्रेनेज भी शामिल)
सडक़ों की गुणवत्ता सुधारने 2014-15 में नगर निगम ने निर्णय लिया था कि एक इंजीनियर के स्थान पर चार इंजीनियरों के दल से निगरानी कराई जाएगी। इंजीनियर की सक्षम संस्था से थर्ड पार्टी व स्थानीय ग्यारह लोगों की टीम से भी निगरानी का निर्णय लिया गया था। लेकिन सडक़ निर्माण में गुणवत्ता सुधार के लिए कोई पहल नहीं हुई।
गुणवत्ता पर सवाल
डामर से लेकर कॉन्क्रीट सडक़ के घटिया निर्माण को लेकर ढेरों सवाल उठ रहे हैं। निर्माण सामग्री की गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है या फिर निर्माण के दौरान सही मापदंडों का पालन नहीं हो रहा है। जबकि हर सडक़ के निर्माण से पहले बेस बिछाया जाता है। नए सिरे से निर्माण कार्य किया जाता है। तकनीकी विशेषज्ञों की मानें तो अच्छी गुणवत्ता की सामग्री का इस्तेमाल किया जाए तो कांक्रीटेड सडक़ पंद्रह से बीस साल खराब नहीं होती। इसी प्रकार अच्छी गुणवत्ता की डामर सडक़ भी चार-पांच साल तक टिकाऊ होती है।
सडक़ों की गुणवत्ता में सुधार के लिए तय किया है कि गारंटी पीरियड की सडक़ों की मरम्मत ठेकेदारों से कराई जाएगी। गारंटी पीरियड के बाद की सडक़ों की मरम्मत नगर निगम करेगा। सभी सब इंजीनियरों से उनके कार्यक्षेत्र में आने वाली सडक़ों की जानकारी मांगी है। सडक़ों की मरम्मत व पेंचवर्क का भी सर्टिफिकेट लिया जाएगा कि कितने समय तक सडक़ टिकाऊ होगी। इस अवधि में सडक़ खराब होती है, तो सम्बंधित सब इंजीनियर के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
– अनूप कुमार सिंह, आयुक्त, नगर निगम