जबलपुर। खड़े ट्रक में भिड़ी कार, दो की मौत। यात्रियों से खचाखच भरी बस पलटी, 10 घायल। दो ट्रकों की भिड़ंत, चपेट में आया बाइक सवार। बेलगाम डंपर ने मासूम को रौंदा। सड़क दुर्घटना में घायल हुए जेल अधीक्षक की मौत।
इस तरह की ख़बरें लगभग रोज अख़बारों की सुर्खियां बनती हैं। जबलपुर जिला समेत प्रदेशभर में सड़क दुर्घटनाओं का यही हाल है। तमाम दावों, चैकिंग अभियानों, निर्देशों के बावजूद सड़क हादसों पर लगाम नहीं लग पा रही है। हालात यह हैं कि रोजाना औसतन 27 लोग जान गवां रहे हैं।
गृह एवं परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह के निर्देश पर एक जनवरी से पूरे प्रदेश में वाहनों के लिए विशेष चैकिंग अभियान चलाया जा रहा है। कहने को अभियान आम जनता की सुरक्षा के लिए है, लेकिन नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट की मानें, तो सरकार का ये अभियान सड़क हादसों को रोकने में नाकाम साबित हो रहा है। वर्ष 2015 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में हर रोज 112 सड़क हादसे हो रहे हैं। इन हादसों में रोज 27 लोगों की जान जा रही है। सड़क हादसों के मामले में मध्य प्रदेश चौथे नंबर पर है।
ये है स्थिति
- पहले पायदान पर तमिलनाडू है, तमिलनाडू में 2014 में 67250 सड़क हादसे हुए, जबकि 2015 में ये ग्राफ बढ़कर 69059 हो गया।
- कर्नाटक दूसरे नंबर पर है, यहां पर 2014 में 43694, तो 2015 में 44011 हादसे हुए।
-तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, यहां भी 2014 में 44382, तो 2015 में 42250 हादसे हुए।
-देश में सड़क हादसों के मामले में मध्यप्रदेश चौथे पायदान पर है।
-मध्यप्रदेश में 2014 में 39698, तो 2015 में ये ग्राफ बढ़कर 40859 पहुंच गया।
-पांचवें नंबर पर केरल है, यहां 2014 में 35872, तो 2015 में 39014 सड़क हादसे हुए।
ये हैं कारण
खस्ताहाल सड़कें, ओवरलोडिंग, अनट्रेंड ड्राइवर, नशे में ड्राइविंग, खटारा वाहनों का संचालन, ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं, नो एंट्री में भी भारी वाहनों की एंट्री, नाबालिगों को भी वाहन की चाबी थमा देना आदि।