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interview: लेखिका वसुधा ने दिए रंग कर्म के ये खास टिप्स, बताई महिला कलाकारों की हकीकत

हिंदी रंगकर्म में महिलाओं का बड़ा योगदान

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Women in drama stage famous

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जबलपुर। हिंदी रंगकर्म में महिलाओं का भी बड़ा योगदान है। एक दौर था, जब महिलाओं को थिएटर जाने की छूट नहीं थी। अब महिलाएं इस क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। शहीद स्मारक गोल बाजार में शुक्रवार को आयोजित 'रचनारत स्त्री की चुनौतियां कार्यशाला में सिद्धार्थ महाविद्यालय मुम्बई में हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष और लेखिका वसुधा सहस्त्रबुद्धे ने ये बातें कहीं। उन्होंने नाटक में कदम बढ़ाने वाली महिलाओं को पर्याप्त सफलता मिली है। अरुंधति नाग ने अपने बूते ही बेंगलुरु में अंतरराष्ट्रीय स्तर का थिएटर बनाया। मृणाल पांडेय, मीराकांत और मृदला गर्ग का नाम आते ही रंगकर्म में महिलाओं के ऊंचाई तक पहुंचने का आभास होता है। आज महिलाओं ने रंगकर्म में अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। यह सब उनकी मेहनत का नतीजा है।

पानीपत का मंचन 15 को
उन्होंने बताया, विवेचना रंग मंडल के कलाकर १५ अगस्त को 'पानीपत नाटक का मंचन करेंगे। विश्वास पाटिल के उपन्यास को उन्होंने रूपारंतरित और अनुदित किया है। इस दौरान आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी, पूर्व न्यायाधीश एमएस तामस्कर, राजेन्द्र तिवारी, प्रज्ञा सावंते, बाबूसा कोहली, सुरेखा परमार, जादूगर एसके, विवेचना रंग मंडल के निगम, अरुण पांडे, नवीन बैनर्जी, आशुतोष दुबे मौजूद रहे।

उठो द्रोपदी शस्त्र उठाओ
उठो द्रोपदी शस्त्र उठाओ, अब गोविंद न आएंगे शहीद स्मारक गोल बाजार में आयोजित पांचाली के मंचन में ऐसे डॉयलाग और उम्मा अभिनय से छह युवतियों ने नारी शक्ति की चुनौतियों की मार्मिंक प्रस्तुति की। पूजा केवट के निर्देशन में हुए मंचन में बदलते किरदारों के साथ कलाकारों के भाव बदलते दिखे। इन छह युवतियों ने ही स्त्री और पुरुष दोनों की भूमिका निभाई। द्रोपदी और माता कुंती, भगवान श्रीकृष्ण के बीच संवाद में नारी शक्ति की विवशता दिखी। संवाद कौशल था। नृत्य मुद्राएं भी खास थीं। भाव के साथ स्वर-लय भी अलग-अलग थे। मंचन में दिखाया गया कि द्रोपदी के युग में जो चुनौतियां थीं, वे आज भी हैं।